India Independence Day Speech: देश के ‘एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री’ मनमोहन सिंह ने लाल किले की प्राचीर से साल दो हजार चार से लेकर दो हजार तेरह तक देश को लगातार दस बार संबोधित किया. नेहरू और इंदिरा के बाद लाल किले की तरफ सबसे ज्यादा जिस पीएम के कदम बढ़े वो मनमोहन सिंह ही थे. राजीव गांधी की तरह ही मनमोहन सिंह ने अपने 2007 के भाषण में विविधता में भारत की एकता की वकालत की. मनमोहन सिंह ने साल 2011 में कहा था- “मैं बिल के कुछ पहलुओं पर मतभेद से अवगत हूं. जो लोग इस बिल से सहमत नहीं हैं, वे संसद, राजनीतिक दलों और यहां तक कि प्रेस के सामने अपने विचार रख सकते हैं. हालांकि, मेरा यह भी मानना है कि उन्हें भूख हड़ताल और आमरण अनशन का सहारा नहीं लेना चाहिए.”
मनमोहन के भाषण में उत्तराखंड की त्रासदी का जिक्र
मनमोहन सिंह ने साल 2013 में लाल किले से अपने भाषण में भारत को "गरीबी, भूख, बीमारी और अज्ञानता" से मुक्त करने की बात कही. उन्होंने कहा कि देश पिछले 10 वर्षों से जिस रास्ते पर चल रहा था, उस पर आगे बढ़े. उन्होंने उत्तराखंड में भूकंप से लेकर आर्थिक हालात तक कई चीजें के देश के सामने रखी.
उन्होंने अपने भाषण के दौरान कहा था- “आज निश्चित रूप से हम सभी के लिए खुशियों का दिन है. लेकिन आज के आजादी के जश्न के दौरान हमारे दिलों में दर्द है कि हमारे उत्तराखंड के भाईयों और बहनों को दो महीने पहले आपदा का सामना करना पड़ा. उन सभी परिवारों के साथ हमारी गहरी संवेदना है, जिन्हें जान-माल का नुकसान हुआ है. हमें इस बात का भी गहरा दुख है कि हमने कल एक दुर्घटना में पनडुब्बी आईएनएस सिंधुरक्षक खो दिया.”
लाल किले से भ्रष्टाचार की चुनौतियों की बात
मनमोहन सिंह ने कहा कि भाईयों और बहनों, हमने महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1947 में आजादी पाई. अगर हम अपनी बाद की यात्रा पर नजर डालें तो पाएंगे कि हमारे देश में हर दस साल में बड़े बदलाव हुए हैं. ऐसे वक्त में जब उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर चिंता जताई जा रही थी, मनमोहन सिंह ने लाल किले से अपने भाषण के करीब एक चौथाई हिस्से के दौरान वह इसकी चुनौतियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत लोकपाल की बात की.
मनमोहन सिंह को बताया गया ‘एक्सीडेंटल’ पीएम
मनमोहन सिंह ने खुद भी ऐसा कभी नहीं सोचा होगा कि वह एक दिन देश के प्रधानमंत्री बन जाएंगे और वह भी एक या दो साल नहीं बल्कि पूरे दस साल तक देश चलाएंगे. साल 2004 के चुनाव में जब सोनिया गांधी की अगुवाई में यूपीए की जीत मिली तो उन्हें प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया. इसके बाद मनमोहन सिंह को देश की कमान सौंपी गई.
मनमोहन सिंह ने पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान बतौर वित्तमंत्री देश को जिस उदारीकरण के रास्ते पर ले गए थे, प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें देश की गरीबी और अशिक्षा से आगे लेकर जाना था. उन सभी चीजों को लागू करना था, जिन्हें वह उस वक्त नहीं कर पाए थे.
लेफ्ट के विरोध के बावजूद अमेरिकी से परमाणु करार
मनमोहन सिंह को नेहरू गांधी परिवार के इशारे पर काम करने वाला प्रधाननमंत्री करार दिया गया. लेकिन, सरकार पर दांव लगाते हुए वामपंथी दलों के भारी विरोध और समर्थन खींचने के बावजूद साल 2008 में अमेरिका से परमाणु करार कर विपक्ष का मुंह बंद कर दिया.
लेकिन, महंगाई के सवाल पर उनको कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई. उनकी सरकार के दौरान महंगाई के चलते विपक्ष इसे मुद्दे बनाकर उस पर हमला करता रहा. हालांकि, मनमोहन कभी अर्थव्यवस्था को कभी गरीबी का मुद्दा बनाकर बोलते रहे. साल 2009 में मुंबई आतंकी हमले के बाद लोकसभा का चुनाव हुआ, लेकिन मनमोहन सिंह फिर चुनाव जीतकर सत्ता में आए और बीजेपी की अगुवाई करने वाले आडवाणी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.
मनमोहन सरकार से भ्रष्टाचार के चलते हुआ मोहभंग
मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ एक दो नहीं बल्कि कई आरोप लगे. 2 जी, कॉमन वेल्थ गेम्स घोटाला, कोयला घोटाला, रेलवे घूसकांड यानी उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान घोटाले की बरसात होने लगी. इसके बाद समाजसेवी अन्ना हजारे ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आंदोलन छेड़ दिया. उनकी मांग जनलोकपाल बिल पास कराने की थी. प्रदर्शन को देखते हुए मनमोहन सिंह को आश्वासन देना पड़ा.
पहले कार्यकाल के दौरान जिस तरह उन्होंने सरकार चलाया दूसरे कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार की चोट ने उनकी सरकार की छवि को बिगाड़ कर रख दिया. एक तरफ महंगाई तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार की चोट के चलते मनमोहन सरकार का ग्राफ गिर गया. उसके बाद कांग्रेस हाशिए पर चली गई और मनमोहन सिंह को सत्ता से हटना पड़ा.
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