नई दिल्ली: देश के सत्ता सिंहासन के सभी शीर्ष पदों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा वाले नेताओं के काबिज होने के बाद अब नरेंद्र मोदी की सरकार आजादी के नायकों को विस्तार देने की रणनीति पर काम कर रही है. गांधी-नेहरू और बहुत अधिक हुआ तो भगत सिंह-चंद्रशेखर आजाद तक सिमटी भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी में अब आजादी के उन गुमनाम नायकों का गान भी होगा,जिन्हें आम जनमानस से छुपा कर रखा गया. मंगलवार को भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं सालगिरह पर आयोजित संसद के विशेष सत्र में भी 1942 के नायकों को याद कर मोदी सरकार कमोबेस यही संदेश देना चाहती है.


9 अगस्त को मनाई जाती है  भारत छोड़ो आंदोलन की सालगिरह


नौ अगस्त को देश अंग्रेजों के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई के रूप में चर्चित भारत छोड़ो आंदोलन की सालगिरह के रूप में मनाता है. यूं तो नौ अगस्त काकोरी कांड के लिए भी जाना जाता है. नौ अगस्त 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से सहारनपुर रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हुई ट्रेन को क्रांतिकारियों ने लूट कर अंग्रेजों को चुनौती दी थी. इस घटना के ठीक 17 साल बाद नौ अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' का एलान किया था. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने नौ अगस्त को संसद का विशेष सत्र आहूत कर आजादी की इन क्रांति गाथाओं को एक बार पुनः स्मरण करने का संकल्प लिया है.


मंगलवार को प्रस्तावित इस विशेष सत्र में लोकसभा अध्यक्ष संकल्प पढ़ेंगी और इसके बाद बीजेपी की ओर से चर्चा की शुरुआत की जाएगी. हाल ही में विदेश नीति पर अपने दमदार भाषण से देशवासियों की तारीफ बटोरने वाली विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, लोकसभा में इस विशेष सत्र में चर्चा शुरू करेंगी. राज्यसभा में यह जिम्मेदारी वित्त मंत्री अरुण जेटली की होगी. उसके बाद दिन भर पक्ष-विपक्ष के नेता चर्चा में हिस्सा लेंगे और फिर प्रधानमंत्री मोदी शहीदों को श्रद्धांजलि के साथ इस विशेष सत्र की चर्चा का समापन करेंगे.


पहले भी हुए हैं विशेष सत्र


संसद पहले भी विशेष सत्रों की गवाह बनी है. हाल ही में 30 जून की आधी रात को जीएसटी के लिए विशेष सत्र बुलाया गया था. इसी तरह 14 अगस्त 1972 को भारतीय स्वतंत्रता के 25 साल पूरे होने के मौके पर भी संसद का विशेष सत्र आधी रात को बुलाया गया था. उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री और वीवी गिरि राष्ट्रपति थे. इसी तरह 14 अगस्त 1997 को आजादी की 50वीं सालगिरह के मौके पर आधी रात को संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था. उस समय इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री और केआर नारायणन राष्ट्रपति थे.


होगी स्वातंत्र्य समर की चर्चा


संसद के दोनों सदनों की इस चर्चा में स्वातंत्र्य समर और क्रांतिकारी विमर्श का मुख्य हिस्सा होंगे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारकों से लेकर वीर सावरकर तक 1857 से शुरू स्वतंत्रता आंदोलन को आजादी की लड़ाई का मूल आधार मानते रहे हैं. इन लोगों का मानना रहा है कि आजादी की लड़ाई के तमाम ऐसे नायक हैं जिन्हें भुला दिया गया. इसके विपरीत सिर्फ कुछ लोगों को आजादी की लड़ाई का नायक बनाकर पेश किया गया है.


इस विशेष सत्र में बीजेपी की ओर से जो भी वक्ता अपनी बात रखेंगे, माना जा रहा है कि वे आजादी के नायकों को विस्तार देने की अपनी रणनीति पर फोकस करेंगे. तमाम ऐसे भूले-बिसरे योद्धा, क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी याद किये जाएंगे, जिन्हें देश ने भुला दिया है या कहा जाए तो इतिहासकारों से लेकर देश के नीति-नियंताओं तक सबने उन्हें याद ही नहीं रखा. इस विशेष सत्र में उन्हें याद कर बीजेपी नेतृत्व उन शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को ना सिर्फ इतिहास से जोड़ने का काम करेगा, बल्कि संसदीय कार्रवाई में आ जाने के बाद वे औपचारिक रूप से इतिहास का हिस्सा भी बन सकेंगे.