चेन्नई: नागरिकता संशोधन बिल 2019 लोकसभा और राज्यसभा से पारित हो गया है, लेकिन इस बिल के पारित होने के बाद श्रीलंका के तमिल शरणार्थियों में प्रत्‍यर्पण का डर बढ़ गया है. वे किसी भी हालत में अपने देश नहीं लौटना चाहते हैं. श्रीलंका में 1990 में छिड़े गृह युद्ध के दौरान वहां के तमिल अपने परिवारों को बचाने की जद्दोजहद में भटक रहे थे.


चेन्‍नई से करीब 50 किमी दूर गुम्मिडीपंडी शरणार्थी शिविर में तीन हजार शरणार्थी हैं. इनमें से कुछ ही लोग निजी कंपनियों में काम कर रहे हैं. बाकी लोग मजदूरी कर अपना गुजर बसर कर रहे हैं. शिविर में एक शरणार्थी स्‍कूल भी है, जिसमें दो सौ से ज्‍यादा बच्चे पढ़ रहे हैं. लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद इन लोगों को वापस श्रीलंका भेद दिए जाने का डर सता रहा है. इन शरणार्थियों का कहना है कि वे किसी भी हाल में श्रीलंका वापस नहीं लौटना चाहते हैं.


इन्हीं में से एक शरणार्थी नंदिनी ने बताया कि, हम यहां 1990 से हैं. हम यहीं रहना चाहते हैं. अगर हम श्रीलंका लौटते हैं तो सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है. हमारे बच्‍चे यहां पढ़ रहे हैं. नंदिनी ने बताया कि उनकी शादी तमिलनाडु के ही रहने वाले शख्स से हुई थी लेकिन उन्हें कोई सिटिजनशिप नहीं मिली है. उनका कहना है कि पति की मौत के बाद श्रीलंका जाने का कोई मतलब नहीं है. नंदिनी ने केंद्र सरकार से मदद की अपील की है.


वहीं ऐसा ही कुछ मामला एक अन्य शरणार्थी सुहासिनी का है. सुहासिनी का कहना है कि नागरिकता नहीं होने के कारण यहां गुजारा मुश्किल है. डिग्री होने के बावजूद मजदूरी करनी पड़ रही है. उन्होंने बताया कि वह भी श्रीलंका से नाव के जरिए रामेश्वरम पहुंचीं थी, फिर उन्हें इस कैंप में भेज दिया गया. कैंप में ही श्रीलंकाई तमिल से शादी की और दो बेटियां है, लेकिन पति नहीं रहे. ऐसे में वह श्रीलंका वापस नहीं जाना चाहती.

कैंप की एक और शरणार्थी परमेश्वरी ने बताया कि वह 28 साल की थीं जब अपने पति के साथ श्रीलंका से वोट के सहारे रामेश्वरम पहुंची. परमेश्वरी ने भी उस ग्रह युद्ध के दौरान अपनों की जान गवाते देखा है. परमेश्वरी का कहना है कि पिछले कई सालों से यहां मौजूद सभी तमिल शरणार्थी इसी इंतजार में थे कि भारत सरकार उन्हें नागरिकता देगी, लेकिन नागरिकता संशोधन बिल में श्रीलंकाई तमिलों को शामिल नहीं करने से वे काफी दुखी हैं.


शरणार्थियों के इस कैंप में एक शरणार्थी तिरु सेल्वम, श्रीलंकाई तमिल जो कि शरणार्थी बनकर भारत पहुंचे. इन्होंने एबीपी न्यूज़ से बातचीत करने के दौरान अपनी आपबीती बताई. 30 साल गुजारने के बाद वे हर दिन इसी इंतजार में थे कि किसी दिन भारत सरकार यहां मौजूद श्रीलंकाई तमिलों को नागरिकता दे देगी. उनका कहना है कितनी साल तक रहने के बाद भारत सरकार को श्रीलंकाई तमिलों को नागरिकता देनी चाहिए. यहां मौजूद कोई भी श्रीलंकाई तमिल फिर अपने देश नहीं जाना चाहता. उन्हें डर है कि कहीं उन्हें और यहां मौजूद बाकी श्रीलंकाई तमिलों को श्रीलंका ना भेज दिया जाए.


तमिलनाडु में बनाए गए 107 शिविरों में करीब 65 हजार से ज्‍यादा श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी रह रहे हैं. इनमें ज्‍यादातर लोग किसी भी तरह से भारतीय नागरिकता हासिल करना चाहते हैं. तमिलों के एक समूह ने भारतीय नागरिकता के लिए मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच में याचिका भी दायर की हुई है. इन श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों का कहना है कि अगर हम वापस लौटते हैं तो हमें सब कुछ नए सिरे से शुरू करना होगा. यहां शरणार्थियों को राज्‍य सरकार की ओर से हर महीने राहत राशि दी जाती है. इसके तहत महिलाओं को एक हजार और पुरुषों को 750 रुपये मिलते हैं. वहीं, हर बच्‍चे को चार सौ रुपये तक सहायता दी जाती है. इसके अलावा उनके बच्‍चों की पढ़ाई की जिम्‍मेदारी भी सरकार ही उठाती है.


वहीं नागरिकता संशोधन बिल में श्रीलंकाई तमिलों को नहीं शामिल करने को लेकर तमिलनाडु में राजनीति भी गरमाई हुई है. गेम के प्रेसिडेंट एमके स्टालिन, मक्कल नीधी मैयाम के प्रेसिडेंट कमल हासन केंद्र सरकार पर इस मुद्दे को लेकर हमला बोल चुके हैं. लगातार तमिलनाडु के राजनेता इस मामले को लेकर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा कर रह हैं. उधर तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी एआईएडीएमके ने जहां इस बिल का समर्थन किया है इसलिए विपक्ष सत्ताधारी पार्टी पर भी लगातार हमलावर है.


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