श्रीनगर के रैनावारी के रहने वाले 44 साल के बशीर अहमद बाबा 11 साल तक गुजरात की जेल में रहने के बाद अब घर लोट आये है. बशीर को इस बात का अफसोस है कि वह पिता का आखिरी समय में दर्शन नहीं कर सका.
इग्नू से उर्दू में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद बशीर श्रीनगर में एक एनजीओ- माया फाउंडेशन के साथ काम करता था - कंप्यूटर भी चला लेता था और बाकी काम काज में भी तेज़ था. इसी लिए उच्च ट्रेनिंग के लिए, फाउंडेशन ने बशीर को 2010 में गुजरात भेजने का फैसला किया.
एनजीओ- माया फाउंडेशन के किमाया क्लेफ्ट सेंटर के लिए कैंप कोर्डिनेटर का काम कर रहा था. क्लेफ्ट लिप- के साथ जन्मे बच्चों को ढूंढ़ने और उनके उपचार का काम यह NGO करता था और जम्मू कश्मीर में दूर दराज़ के इलाकों में जाकर कैंप भी लगाया करता था.
गुजरात एटीएस के हथे चढ़ गया बशीर
17 फरवरी 2010 में बशीर घर से गुजरात के अहमदाबाद की तरफ निकला जहां पर उसको पहले एक कंप्यूटर सेंटर में ट्रेनिंग लेनी थी और उसके बाद फाउंडेशन के एक और कार्यालय में 1-2 महीने काम सीखना था. लेकिन अहमदाबाद में आने के एक हफ्ते के भीतर ही वह गुजरात एटीएस के हथे चढ़ गया.
बशीर के साथ एक और व्यक्ति को भी गिरफ्तार किया गया था लेकिन उसको पुलिस ने छोड़ दिया और बशीर को कई दिनों तक इंट्रोगेशन किया गया. लेकिन इस दौरान बशीर को पता ही नहीं था कि उसका जुर्म क्या है और उसको क्यों गिरफ्तार किया गया.
बशीर ने कहा. "पहले मुझे पता ही नहीं था क्यों पकड़ा गया. लेकिन जब जुडिशल रिमांड के लिए ले जाया गया तो मुझे पता चला कि एटीएस मुझे हिज़्बुल मुजाहिदीन का आतंकी बता रही थी और मुझ पर गुजरात में इसी संगठन के लिए रिक्रूटमेंट कराने का आरोप भी लगाया"
मैं पहले दिन से ही जानता था कि मैं बेगुनाह हूं- बशीर
एटीएस ने अपनी चार्जशीट में बशीर को आतंकी रिक्रूइटेर बताया था- और उसके खिलाफ ईपीसी की धारा 120 (B) के सेक्शन 16, 17, 18, 20 of the गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए). बशीर ने कहा, लेकिन मैं पहले दिन से ही जानता था कि मैं बेगुनाह हूं- और मैंने इन 11 सालो में हर दिन अपनी बेगुनाही की ही बात कही. बशीर ने नम आंखों से कहा और आखिर 11 साल के लंबे समय के बाद ही सही मेरी बेगुनाही साबित हुई और में वापस घर लौट आया. लेकिन मुझे एक अफसोस है कि मेरे पिता इस दिन को नहीं देख सके.
बशीर के पिता की मृत्यु 2017 में हुई और आखिरी समय में भी बशीर अपने पिता का मुंह नहीं देख सका, जिस का उससे काफी दुख है.
बशीर की रिहाई के आदेश गुजरात के वडोदरा के अतिरिक्त सत्र जज एस ए नकुम ने सुनाते हुए आतंंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) की सारी दलीलों को फ़र्ज़ी बताया और बशीर के पास से मिले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट और अन्य सामान से इस बात का कोई सबूत नहीं मिला जिस के आधार पर उसके आतंकियों से संबंध साबित हो. .
बशीर अब नयी जिंदगी शुरू करना चाहता है और पड़ा लिखा तो पहले से ही था लेकिन 11 साल जेल में भी उस ने अपना समय और पढ़ाई में लगाया. "मैंने जेल में बीए भी किया और दो एमए भी किये. इस के अलावा कई डिप्लोमा और पीजी-डिप्लोमा के कार्य भी किये. सारी डिग्री पूरी भी हो गई और इसके साथ साथ रिहाई भी हो गई.
मुझे अपनी बेगुनाही का भरोसा था- बशीर
बशीर की मां के अनुसार उसकी गिरफ्तारी के बाद वह सब राजनीतिक नेताओं के पास गई. पुलिस के पास गए. पुलिस ने उसकी बेगुनाही की बात भी गुजरात पुलिस को बोली- लेकिन फिर भी उस को नहीं छोड़ा गया. अब हम ने सब कुछ अल्लाह को सौंपा था क्योंकि हमको अपने बच्चे पर भरोसा था कि यह बेगुनाह है.
"आप देख सकते हो मेरे मां कितनी कमज़ोर हो गई है और मेरे पिता 2017 में मुझे छोड़ कर चले गए. लेकिन मुझे अपनी बेगुनाही का भरोसा था और शायद यह आज़माइश मेरे नसीब में लिखी हुई थी. लेकिन मैं इस में कामयाबी के साथ अपने आप को सच्चा साबित कर पाया.
लेकिन शायद यह सवाल हमेशा रहेगा - बशीर की ज़िन्दगी के 11 कीमती साल कौन लोटायेगा?
यह भी पढ़ें.
पीएम मोदी बोले- अगर आज डिजिटल कनेक्टिविटी नहीं होती तो सोचिए कोरोना में क्या स्थिति होती