सरकारी वादे पूरे नहीं होने से खफा हैं घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडित, इन मांगों को लेकर बैठे आमरण अनशन पर
श्रीनगर के पुराने शहर के हब्बा कदल इलाके में बने गनपतयार मंदिर में कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) के अध्यक्ष संजय टिक्कू आमरण अनशन पर बैठे हैं.
श्रीनगर: खतरे के बावजूद कश्मीर में रहने का फैसला करने वाले कश्मीरी पंडित अपनी मांग और पुनर्वास के वादे को पूरा नहीं करने पर मोदी सरकार से खफा हैं. मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इन पंडितों के लिए आर्थिक मदद और नौकरियों में आरक्षण का आदेश भी दिया था, लेकिन दो साल से ज्यादा का समय गुजरने के बाद भी अभी तक ज़मीन पर कुछ नहीं हुआ.
श्रीनगर के पुराने शहर के हब्बा कदल इलाके में बने गनपतयार मंदिर में कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) के अध्यक्ष संजय टिक्कू आमरण अनशन पर बैठे हैं. टिक्कू के साथ कोरोना के SOP का पालन करते हुए कुछ और भी कश्मीरी हिन्दू इस अनशन में शामिल हैं. उनकी मांग है कि मोदी सरकार द्वारा लिए गए आरक्षण और पुनर्वास के फैसले को ज़मीन पर लागू किया जाए.
2017 में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कश्मीरी विस्थापितों के लिए बनाए गए प्रधानमंत्री पुनर्वास योजना में आर्थिक मदद, शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण की घोषणा की थी. 2017 में ऐसे कश्मीरी पंडितों के लिए जिन्होंने पलायन नहीं किया था, 560 नौकरियां आरक्षित रखी गईं, लेकिन तीन साल गुजरने के बाद भी कोई भर्ती नहीं हुई.
26 साल की वसुंधरा तुल्लो, जो श्रीनगर के हब्बा कदल में अपने परिवार के साथ रहती हैं, वो इस बात से खासी नाराज़ हैं. वसुंधरा ने कश्मीर यूनिवर्सिटी से 2018 में इलेक्टरोनिक्स में Msc पूरा किया, लेकिन दो साल बाद भी नौकरी के लिए तरस रही हैं और शिकायत कर रही हैं कि कश्मीर में हिंदुत्व को जिंदा रखने वालों के साथ यह सरकार अनदेखी कर रही है.
इस देरी के नतीजे में बहुत सारे कश्मीरी हिन्दू लड़के लड़कियां अब नौकरी पाने की उम्र की सीमा को पार कर गए हैं. जम्मू कश्मीर में सरकारी नौकरी पाने की उम्र की सीमा 35 से 38 साल है, जो कि अलग अलग क्षेत्रों के लिए अलग अलग है.
34 साल के कश्मीरी पंडित भूपिंदर सिंह जामवाल ने MA-M.ED की पढ़ाई पूरी की है, लेकिन नौकरी के लिए तरस रहे हैं. दक्षिण कश्मीर के आतंकवाद ग्रस्त कुलगाम के तंगबल के रहने वाले भूपिंदर ने कठिन परिस्थितियों में पढ़ाई पूरी की. ऐसे हालात में जहां कॉलेज में वह सैंकड़ों बच्चों में अकेले हिन्दू थे और हालात के चलते ना तो कॉलेज ही जा सकते थे और ना ही ट्यूशन. इसीलिए आज वह समझ नहीं पा रहे कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के आदेश के बाद भी उनको नौकरी क्यों नहीं मिली.
कश्मीर से पलायन नहीं करने वाले हिन्दुओं के इसी संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए ही KPSS का घठन हुआ और ऐसे कश्मीरी पंडित परिवारों, जिन्होंने 1990 में आतंकी खतरे और धमकियों के बावजूद कश्मीर में ही रहने का फैसला लिया, उनके हक की लडाई लड़ता आ रहा है. लेकिन आज इस संगठन के लोग इस बात से खफा हैं कि 370 और 35A के हटने के बाद कश्मीर सीधे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के अधीन हो गया, लेकिन कश्मीरी पंडित परेशानियों के बीच चले गए.
ये भी पढ़ें: सुशांत सिंह राजपूत की विसरा में AIIMS जांच टीम को मिले केमिकल ट्रेसेज़ अनुराग-पायल केस में कंगना का कबूलनामा- यहां लड़कियों के साथ होता है सेक्स वर्कर जैसा बर्ताव, मेरे साथ भी हुआ