चीन के लिए SSF कमांडो ने खड़ी कीं मुश्किलें, इस फोर्स के गठन में CIA ने निभाई थी अहम भूमिका
एसएफएफ के सबसे पहले कमांडर मेजर-जनरल सुजान सिंह उबन थे, जो सेना की 22वीं माउंटेन डिवीजन का हिस्सा थे.कई सालों तक एसएफएफ का इस्तेमाल ना होने के चलते इसके अस्तित्व को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे थे.
नई दिल्ली: 29-30 अगस्त की रात को भारतीय सेना ने जो प्रिम्टिव-कारवाई करते हुए पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिणी छोर पर जो सामरिक-महत्व के दर्रों और इलाकों पर अपना अधिकारी जमाया है उसमें भारत की स्पेशल क्रैक-यूनिट, एसएफएफ की एक विशेष भूमिका बताई जा रही है. हालांकि, सेना मुख्यालय से लेकर सुरक्षा-तंत्र स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को लेकर कुछ भी बोलने से इंकार कर रहा है, लेकिन एबीपी न्यूज को विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि भारत की इस बड़ी कारवाई में एसएफएफ के कमांडोज़ ने चीन के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.
आपको बता दें कि एसएफएफ में अमूमन तिब्बत मूल के सैनिक होते हैं, और पूर्वी लद्दाख से सटे चीन के उन इलाकों से भलीभांति परिचित होते हैं जहां 29-30 अगस्त की रात को भारतीय सेना ने बड़ी कारवाई करते हुए पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण में रैकिन-पास (दर्रा) और हानान-कोस्ट पर अपना अधिकारी जमा लिया था. क्योंकि अभी भी एलएसी पर तनाव बरकरार है इसीलिए सेना ने ऑपरेशनल जानकारी देने से साफ इंकार कर दिया है.
लेकिन एबीपी न्यूज को जानकारी मिली है कि इस प्रिम्टिव-कारवाई में चीन के खिलाफ पहली बार भारत ने एसएफएफ के कमांडोज़ का इस्तेमाल किया है. एसएफएफ ना केवल पैंगोंग लेक के दक्षिण में हुए ऑपरेशन में शामिल थी, बल्कि पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल पर जगह जगह तैनात की गई है. कुछ दिन पहले ही एलएसी पर पैट्रोलिंग के दौरान एसएफएफ के एक अधिकारी की जान लैंड-माइनस की चपेट में आने से हो गई थी.
ये लैंडमाइन 1962 के युद्ध के दौरान बिछाई गई थी. क्योंकि ‘62 के युद्ध के बाद से भारत और चीन दोनों की ही सेनाएं एलएसी के विवादित इलाकों में पैट्रोलिंग नहीं करती थी इसलिए इन लैंड माइनस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. लेकिन मई के महीने से यानि जब से दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनातनी शुरू हुई है, एलएसी के उन इलाकों की पैट्रोलिंग भी हो रही जहां कोई नहीं जाता था. क्योंकि भारत का अंदेशा है कि चीनी सेना को एलएसी पर जहां कही भी गैप दिखाई पड़ा को कब्जा कर सकती है. इस लैंड माइन वाली घटना में एसएफएफ का एक सैनिक घायल भी हुआ है.
आपको बता दें कि एसएफएफ का गठन 1962 के युद्ध के तुरंत बाद ही किया गया था. इस फोर्स में तिब्बत मूल के ही सैनिकों की भर्ती की जाती है. हालांकि, हाल के दिनों में इसमें चीन सीमा से लगे पहाड़ी इलाकों के युवाओं को भी मौका दिया जाता है. एसएफएफ को ‘विकास’ के नाम से भी जाना जाता है और इसका मुख्यालय और ट्रेनिंग सेंटर उत्तराखंड के चकराता में है. कई सालों तक एसएफएफ का इस्तेमाल ना होने के चलते इसके अस्तित्व को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे थे. इसका एक बड़ा कारण एसएफएफ का किसी ऑपरेशन या युद्ध में इस्तेमाल ना होना था. लेकिन 29-30 अगस्त की रात को जिस तरह एसएफएफ कमांडोज़ ने ऑपरेशन किया है उससे सेना की विकास-रेजीमेंट की जमकर तारीफ हो रही है. ये कारवाई उरी के बाद पीओके में घुसकर सेना की पैरा-एसएफ रेजीमेंट की तरह ही थी. चीनियों को एसएफएफ के ऑपरेशन की भनक तक नहीं मिली.
एसएफएफ के सबसे पहले कमांडर मेजर-जनरल सुजान सिंह उबन थे, जो सेना की 22वीं माउंटेन डिवीजन का हिस्सा थे. इसीलिए उनकी रेजीमेंट के नाम पर एसएफएफ को टूटू (2-2) फोर्स या फिर ‘एसटेबिलशमेंट-22’ के नाम से भी जाना जाता है. एसएफएफ में भर्ती की जिम्मेदारी, देश की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी, रॉ (रिसर्च एंड एनेलेसिस विंग) की है. तिब्बत, भूटान और भारत के तिब्बती शरणार्थियों में से ही रॉ के अधिकारी इस फोर्स के लिए सैनिकों को चुनते हैं और फिर चकराता में कड़ी ट्रेनिंग के बाद उन्हें सेना की विकास-रेजीमेंट में शामिल कर दिया जाता है. विकास-रेजीमेंट में ऑफिसर, सेना की दूसरी रेजीमेंट्स से डेप्यूटेशन पर आते हैं. शुरूआती सालों में इस 22-फोर्स को खड़ा करने में अमेरिकी सीक्रेट एजेंसी, सीआईए के अहम भूमिका थी. यही वजह है कि एसएफएफ देश की उन पहली रेजीमेंट्स में से एक थी जिसकी ट्रेंनिग अमेरिकी में सीआईए के एक सीक्रेट बेस पर हुई थी. एसएफएफ कमांडो अमेरिकी हथियार ही इस्तेमाल करते थे.
कहा जाता है कि ’71 के युद्ध के दौरान बांग्लादेश की मुक्ति-बाहनी की ट्रेनिंग एसएफएफ के चकराता ट्रेनिंग सेंटर में ही दी जाती थी. सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत में भी एसएफएफ ने एक अहम भूमिका निभाई थी.
एसएफएफ को पिछले कुछ सालों में एक अलग चार्टर भी दिया गया. एसएफएफ को केवल चीन से सटी सीमा पर ही तैनात या ऑपरेशन के लिए ही सीमित नहीं किया गया है. बल्कि इसे एक क्रैक-यूनिट में तब्दील कर दिया गया है. यानि देश के अंदर और बाहर दोनों जगह अपने मिशन्स को अंजाम देने के लिए तैयार किया गया है. एसएफएफ के इस बदले स्वरूप का पता इसी स्वतंत्रता दिवस के दौरान लगा, जब थलेसना प्रमुख ने एसएफएफ यूनिट के एक स्निफर-डॉग को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेंडेशन कार्ड (बैच) से नवाजा था.
इस डॉग को राजधानी दिल्ली में हाल के दिनों में कैमिकल और एक्सपलोजिव की गैरकानूनी खेंप को पकड़वाने में मदद करने के लिए दिया गया था. इस खेप का इस्तेमाल राजधानी दिल्ली में आईईडी ब्लास्ट के लिए किया जाना था. यानि एसएफएफ यूनिट्स अब राजधानी दिल्ली में भी ऑपरेशन्स कर रही है. लेकिन क्योंकि एसएफएफ को इंवेस्टीगेशन का अधिकार प्राप्त नही है, इसलिए बहुत संभव है कि ऑपरेशन के बाद मामले की जांच पुलिस या फिर किसी जांच एजेंसी को सौंप दी गई होगी.