कोटा: राजस्थान के कोटा के जे के लोन अस्पताल में बच्चों को खोने वालों में से एक बूंदी जिले के देहित गांव के राधेश्याम भी हैं. राधेश्याम ने अपनी 2 दिन की बच्ची को खोया. विडंबना ये है कि इसी अस्पताल में उन्होंने अपने पहले बच्चे को भी खोया था. जे के लोन अस्पताल में साढ़े 3 साल पहले राधेश्याम और उनकी पत्नी संजू के पहले बच्चे की जन्म के बाद मौत हो गई थी.
साढ़े 3 साल बाद राधेश्याम की पत्नी को एक बेटी हुई, लेकिन जन्म के दो दिन बाद ही 17 दिसंबर को बच्ची की जान चली गई. अस्पताल से मिली बच्ची की मौत की पर्ची राधेश्याम अपने बटुए में रखे हुए हैं क्योंकि बच्ची की सिर्फ यही निशानी बची हुई है. उनकी पत्नी संजू बीमार है. संजू ने बच्ची को नौ महीने कोख में रखकर प्रसव पीड़ा सहकर जन्म दिया लेकिन अपनी गोद मे ढंग से खिला भी ना सकी. उसे ठीक से पता भी नहीं चला कि बच्ची को क्या हुआ था. बस ये बताया गया कि अब वो इस दुनिया मे नहीं है. संजू ने कहा कि गरीब और क्या करेगा, सरकारी अस्पताल में ही डिलीवरी करानी पड़ती है.
राधेश्याम ने कहा, "अस्पताल में स्टाफ पैसे की डिमांड करता है. कोई भी काम करने के लिए 50-100 रुपए की मांग करना आम बात है. लड़का पैदा हो तो पैसे ज्यादा मांगे जाते हैं." यानि सरकारी अस्पताल में जहां इलाज मुफ्त होना चाहिए वहां बख्शिश के नाम पर रिश्वतखोरी भी चल रहा रही है. जबकि अस्पताल की दीवारों पर लिखा है कि यहां रिश्वत देना मना है. राधेश्याम का कहना है, "मरीज के इलाज में कोई दिक्कत ना हो इस डर से परिवार वाले पैसे दे भी देते हैं." राधेश्याम ने भी पैसे दिए लेकिन अपनी बच्ची को बचा नहीं पाए. जे के लोन अस्पताल से जुड़ी खामियों की तो कई बातें सामने आई हैं, लेकिन अस्पताल के स्टाफ के ऊपर पैसे लेने के लगे ये आरोप यहां के संवेदनहीन रवैये को उजागर करते हैं.
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