नई दिल्ली: जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक केस राज्य सरकारें अब मनमाने तरीके से वापस नहीं ले सकेगीं. सुप्रीम कोर्ट ने आज यह आदेश दिया कि कोई भी राज्य सरकार वर्तमान या पूर्व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक केस बिना हाई कोर्ट की मंजूरी के वापस नहीं ले सकती. सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों के तेज निपटारे से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है.
2016 से लंबित इस मामले में कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से तमाम लंबित मुकदमों का ब्यौरा मांगा था. साथ ही केंद्र सरकार से कहा था कि वह हर राज्य में विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट बनाने के लिए फंड जारी करे. इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में मामले की सुनवाई हुई थी. तब से लेलर अब तक केंद्र ने कोर्ट के सवालों पर विस्तृत जवाब दाखिल नहीं किया है. चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई. कोर्ट ने सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाए.
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता के अनुरोध पर कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने का अंतिम मौका दिया. कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 25 अगस्त तय करते हुए केंद्र से 2 बिंदुओं पर जवाब देने को कहा. पहला, सीबीआई, ईडी, एनआईए जैसी केंद्रीय एजेंसियां सांसदों/विधायकों के खिलाफ कितने मामलों की जांच कर रही हैं. कोर्ट ने सभी आरोपियों के नाम और केस की वर्तमान स्थिति की जानकारी देने को कहा है. दूसरा, केंद्र के प्रयास से अब तक कितने विशेष कोर्ट बने. आगे की क्या योजना है?
मामले में कोर्ट की तरफ से एमिकस क्यूरी नियुक्त किए गए वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने बताया था कि देश भर में वर्तमान और पूर्व सांसदों/विधायकों के खिलाफ 4,800 से ज़्यादा केस लंबित हैं. हंसारिया ने कोर्ट को यह भी बताया था कि यूपी सरकार मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी संगीत सोम, सुरेश राणा समेत कुछ अन्य के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की कवायद कर रही है. जजों ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत राज्यों को मिली शक्ति के दुरुपयोग पर चिंता जताई. कोर्ट ने कहा कि कोई भी राज्य सरकार जनप्रतिनिधियों के मुकदमा वापस लेने से पहले हाई कोर्ट की अनुमति ले.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार से भी फिलहाल जनप्रतिनिधियों के मुकदमे सुन रहे निचली अदालत के जजों की लिस्ट सौंपने को कहा है. कोर्ट ने कहा है कि फिलहाल इन जजों को उनके पद पर बने रहने दिया जाए. यह आदेश रिटायर हाप्य रहे जजों पर लागू नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर किसी जज को दूसरे पद पर भेजना बहुत ज़रूरी हो तो हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार पहले उसकी अनुमति लें.
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