नई दिल्ली: नागरिकता कानून में हुए संशोधन का विरोध करने वाले छात्रों पर पुलिस कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे वकीलों को आज चीफ जस्टिस ने आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा, ''जो सड़क पर उत्पात करना चाहते हैं, उन्हें वहीं रहने दीजिए. हमारे पास आने की क्या जरूरत है? पहले हिंसा रुके, तभी हम सुनवाई करेंगे.''


क्या है मामला


कल दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी इलाके में प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया था. इसके बाद पुलिस ने जिस तरह विश्वविद्यालय के अंदर घुस कर कार्रवाई की, उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का ऐलान कुछ वकीलों ने आज सुबह ही कर दिया था. सुबह 10:30 बजे चीफ जस्टिस की कोर्ट बैठने से पहले ही वहां पर इंदिरा जयसिंह, सलमान खुर्शीद, कॉलिन गोंजाल्विस समेत 6 7 वकील मौजूद थे.


इंदिरा जयसिंह की दलील


चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस सूर्यकांत और बी आर गवई की बेंच करीब 10:31 पर बैठी. कोर्ट में मौजूद वकीलों में सबसे वरिष्ठ इंदिरा जयसिंह ने बात रखनी शुरू की. उन्होंने कहा, ''अलीगढ़ समेत देशभर के विश्वविद्यालय में छात्रों के शांतिपूर्वक आंदोलन को कुचला जा रहा है. उनके खिलाफ पुलिस बर्बर तरीके से कार्रवाई कर रही है. जगह-जगह पुलिस की पिटाई से छात्र घायल हो गए हैं. छात्रों के ऊपर तमाम धाराओं में मुकदमे भी दर्ज कर लिए गए हैं. उन्हें कोर्ट की सहायता की जरूरत है. कोर्ट मामले पर संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू करे.''


CJI के सख्त तेवर


इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, ''हम वह सब जरूर करेंगे, जो करना जरूरी होगा. लेकिन पहले हमें यह बताइए कि जब हिंसा हो रही हो तो पुलिस को क्या करना चाहिए? इंदिरा जयसिंह ने कहा, ''हिंसा छात्रों ने नहीं की है. यह सब पुलिस का गढ़ा हुआ नाटक है. छात्रों के आंदोलन को बदनाम करने के लिए बसों में आग लगाई गई. इस बयान पर नाराजगी जताते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, ''आप यह क्या कह रही है? सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हम बर्दाश्त नहीं कर सकते. पहले हिंसा रुके तभी कोई सुनवाई होगी.''


सड़क पर उत्पात बर्दाश्त नहीं


इसके बाद कई वकीलों ने एक साथ बोलना शुरु कर दिया. कोई घटना के वीडियो देखने की मांग कर रहा था, कोई कोर्ट से तत्काल पुलिस की कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश देने की मांग कर रहा था. वकीलों के शोर-शराबे के बीच चीफ जस्टिस ने कहा, ''आप लोग कोर्ट पर दबाव नहीं बना सकते कि वह आपकी मर्जी के मुताबिक आदेश दे. आप जो कह रहे हैं सिर्फ उसे सुनकर कोई आदेश नहीं दिया जाएगा. जिन लोगों को सड़क पर उत्पात करना है, उनकी पैरवी आप क्यों कर रहे हैं?''


सुनवाई को कोर्ट तैयार


कोर्ट का रुख देखकर वकीलों के तेवर कुछ नरम पड़े. उन्होंने कहा, ''हम सुनवाई की मांग कर रहे हैं. कोर्ट को मामले के सभी पहलुओं को देखना चाहिए. आप रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जजों की एक कमिटी बना कर उसे मामला देखने के लिए कहें. इससे हिंसा पर भी रोक लगेगी और पुलिस के दमन पर भी. इसके बाद चीफ जस्टिस ने कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ''कल आप तैयारी के साथ कोर्ट में आएं. हम इस मामले की सुनवाई करेंगे.'' CJI ने प्रदर्शनकारियों के पैरवी कर रहे वकीलों से भी कहा, ''हम सुनवाई के लिए तैयार हो गए हैं. लेकिन पहले हिंसा रुकनी चाहिए.''


चीफ जस्टिस के तेवरों से यह साफ लग रहा था कि उन्हें दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल तक नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों और उनमें सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने की घटनाओं की जानकारी है. सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई फैसलों में विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने वाले लोगों पर सख्त कार्यवाही का निर्देश पुलिस को दे चुका है. ऐसे में छात्रों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा पर कोर्ट का सख्त रूख चौंकाने वाला नहीं था. हालांकि, इस सख्ती के दौरान भी CJI ने बार-बार कहा कि संवैधानिक रूप से जो भी करने की जरूरत है, कोर्ट वह जरूर करेगा.


कानून को चुनौती पर बुधवार को सुनवाई


प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की सख्ती पर सुनवाई के लिए कोर्ट के सहमत होने के बाद वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने कोर्ट का ध्यान उन याचिकाओं की तरफ खींचा जिनमें नए नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती दी गई है. इस तरह की 15-16 याचिकाएं अब तक सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो चुकी है. इन याचिकाओं में धर्म के आधार पर भारत के बाहर से आने वाले लोगों को नागरिकता देने के संशोधन को संविधान के खिलाफ बताया गया है. सिब्बल और सिंघवी ने कोर्ट से इन पर सुनवाई की मांग की. चीफ जस्टिस ने उन्हें बताया कि कुछ याचिकाओं को पहले ही बुधवार 18 दिसंबर को सुनवाई के लिए लगा दिया गया है. बाकी याचिकाओं को भी उनके साथ सुना जाएगा.


गौरतलब है कि 18 दिसंबर को सर्दी की छुट्टियों से पहले सुप्रीम कोर्ट में कामकाज का आखरी दिन है. याचिकाकर्ताओं की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट नए नागरिकता संशोधन कानून पर रोक लगा दे. लेकिन इस तरह का आदेश सरकार के पक्ष को विस्तार से सुने बिना संभव नहीं है. ऐसे में लगता यही है कि कोर्ट इन याचिकाओं पर सरकार को नोटिस जारी करके जवाब तो जरूर मांगेगा, लेकिन मामले की विस्तृत सुनवाई जनवरी के महीने में ही हो सकेगी.