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कैसे भारत में बढ़ती गई ट्रेनों की रफ्तार, फास्ट ट्रेन से वंदे भारत तक की कहानी

भारत में ट्रेनों की इतनी अहमियत है कि एक दिन के लिए अगर ये ट्रेनें रुक जाएं तो मानो आधा भारत अपनी जगह पर जड़ हो जाएगा. 

भारत में इस महीने रेल सेवा के 171 साल पूरे हो गए हैं. पहली भारतीय रेल 16 अप्रैल 1853 में चली थी. इन 170 सालों में ट्रेन के इंजनों से कोच तक, कई बदलाव हुए और देखते ही देखते ट्रेनें बिल्कुल बदल गईं. आज आलम ये है कि विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क भारतीय रेल का ही है. भारत में ट्रेनों की इतनी अहमियत है कि एक दिन के लिए अगर ये ट्रेनें रुक जाएं तो मानो आधा भारत अपनी जगह पर जड़ हो जाएगा. 

स्कूल में हम सबने पढ़ा होगा कि जेम्स वाट ने भाप का इंजन बनाकर रेलवे की दुनिया में क्रांति की शुरुआत कर दी थी. भाप इंजन से चलने वाली ट्रेन से लेकर बुलेट ट्रेन तक, इस सफर में कई बदलाव देखने को मिले. वो भी एक जमाना था जब ट्रेन के डब्बे इतने भारी भरकम होते थे कि ये सिर्फ 20 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चल पाती थी. लेकिन आज यही ट्रेन 300 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से हवा में बातें करती हैं. 

भारत की पहली ट्रेन

16 अप्रैल 1853, ये वो ऐतिहासिक दिन था जब भारत में पहली ट्रेन चलाई गई थी. इस ट्रेन ने 35 किलोमीटर की दूरी तय की थी. यानी यह छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से ठाणे के बीच चलाई गई थी. भारत की पहली ट्रेन में 20 बोगी थे और इसे 3 इंजनों की मदद से चलाया गया था, इसमें 400 यात्रियों ने सफर किया था. 

सन् 1856 में हमारे देश में भाप का इंजन बनना शुरू हुआ, जिसके बाद धीरे-धीरे सभी राज्यों में रेल की पटरियां बिछाई गई, पहले नैरोगेज पर रेल चली, उसके बाद मीटर गेज और ब्रॉड गेज लाइन बिछाई गई. वहीं देश की पहले सुपरफास्ट ट्रेन 1 मार्च 1969 को दिल्ली से हावड़ा के बीच चलाई गई थी.

भाप ट्रेन से सुपरफास्ट ट्रेन तक का सफर 

भाप से शुरू हुआ ट्रेन का सिलसिला अब आधुनिकता के सर्वोच्च पर पहुंच गया है. इन 170 सालों में टेक्नोलॉजी के मामले में देश इतना आगे बढ़ गया है कि न सिर्फ कोयला, बल्कि बिजली के ट्रेन को पीछे छोड़ बिना ड्राइवर के सफर पर निकलने को तैयार है. 

इन 170 सालों के सफर में ट्रेन ने कई रूप बदलें. इसका सबसे आधुनिकतम रूप मेट्रो और वंदे भारत है. वन्दे भारत को टी18 के नाम से भी जानते हैं. यह भारत की पहली इंजन रहित सेमी बुलेट ट्रेन है. यह ट्रेन महज 52 सेकेंड में 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ लेती है. 

कितनी स्पीड में चलने वाली ट्रेन को सुपरफास्ट कहा जाता है

भारतीय रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट indianrailways.gov.in के अनुसार किसी ट्रेन की अप और डाउन दोनों दिशाओं की गति बड़ी लाइन पर 55 किलोमीटर प्रतिघंटा और छोटी लाइन पर 45 किलोमीटर प्रतिघंटा हो तो उस ट्रेन को सुपरफास्ट ट्रेन माना जाएगा. यानी उस ट्रेन पर सुपरफास्ट सर चार्ज लगाया जाएगा.

हालांकि, कुछ सुपरफास्ट ट्रेनें 110 किलोमीटर प्रतिघंटा कि रफ्तार से भी चलती हैं. इन ट्रेनों  की खासियत होती है कि इनमें स्टॉपेज बहद कम होते हैं. यानी ये एक या दो स्टेशनों पर ही रुकती हैं.

एक्सप्रेस ट्रेन किसे कहते हैं

आइए जानते हैं कि भारत की सबसे तेजी से चलने वाली टॉप 5 ट्रेनें कौन सी हैं

वंदे भारत एक्सप्रेस: मेक इन इंडिया पहल के तहत बनाया गया वंदे भारत एक्सप्रेस भारत की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन है. इसकी रफ्तार 180 से 200 तक है. फिलहाल देश में वंदे भारत दो रूट पर चलती है. पहली शताब्दी दिल्ली से वाराणसी के लिए और दूसरी दिल्ली से कटरा के लिए जाती है. 

गतिमान एक्सप्रेस: यह एक सेमी स्पीड ट्रेन है जो 160 किलोमीटर प्रति घंटा के रफ्तार पर भागती है. इस ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों को यात्रा के दौरान वीआईपी ट्रीटमेंट मिलता है. यात्रियों को फूल और चॉकलेट देकर स्वागत किया जाता है. गतिमान एक्सप्रेस दिल्ली से झांसी के बीच चलती है.

मुंबई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस: इस ट्रेन की रफ्तार 140 किलोमीटर है. ये ट्रेन मुंबई से दिल्ली के बीच चलती है.

शताब्दी एक्सप्रेस: यह ट्रेन तेज रफ्तार से चलने वाली भारत की सबसे पुरानी ट्रेन है. यह 150 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से चलती है. शताब्दी एक्सप्रेस राजधानी दिल्ली से लेकर अलग-अलग राज्यों की राजधानी तक चलती हैं. 

भारतीय ट्रेनों की औसत कितनी रफ्तार है 

भारत की औसत पैसेंजर ट्रेन की रफ्तार 30 प्रतिशत तक है जिसे बढ़ाकर 80 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार करने की योजना पर रेलवे काम कर रहा है. आने वाले 2-3 सालों में रेलवे के कुछ मालगाड़ियों की रफ्तार 80 प्रतिशत तक बढ़ाने का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है.

प्रधानमंत्री मोदी के सामने साल 2019 में ही रेलवे मंत्रालय ने इससे संबंधित प्रेजेंटेशन पेश किया था. जिसमें मिशन रफ्तार योजना का खाका पेश किया था. इस योजना के तहत मालगाड़ियों की औसत गति को दोगुना करने और अगले 5 सालों में सभी पैसेंजर ट्रेनों की औसत गति बढ़ाने का भी लक्ष्य रखा गया था. 

रेलवे स्टेशन और स्टेशन परिसर बेहतर होंगे की जरूरत

सांसद की एक रिपोर्ट की मानें तो हमारे देश की ट्रेनें हर दिन तकरीबन 37,689 ऐसे जर्जर पुलों से होकर गुजरती हैं, जो लगभग 100 साल या उससे भी ज्यादा पुराना हैं. वहीं इस देश में कुल रेल पुलों की संख्या 1 लाख 47 हजार 523 है. यानी कि हर तीसरा पुल 100 साल से भी ज्यादा पुराना है.

भारत की सबसे कम स्पीड में चलने वाली ट्रेन 

सबसे धीमी रफ्तार में चलने वाली ट्रेन का नाम मेट्टुपलायम ऊटी नीलगिरी पैसेंजर ट्रेन है. यह ट्रेन 10 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भी कम में चलती है. इसके अलावा इसकी खासियत ये है कि ये ट्रेन भाप के इंजन से चलती है. 

यह ट्रेन 46 किलोमीटर की दूरी लगभग 5 घंटे में तय करती है वक्त लगता है. हालांकि इस सफर में यह दर्जनों स्थानों पर रूकती भी है. बता दें कि नीलगिरी माउंटेन रेलवे का निर्माण अंग्रेजों ने करवाया गया. ब्रिटिश काल में इस ट्रेन में बैठकर अंग्रेज ऊटी और इसके आस पास की हसीन वादियों का लुफ्त उठाया करते थे.

इस राज्य में है देश की सबसे छोटी ट्रेन

भारत की सबसे छोटी ट्रेन केरल राज्य में है. इसमें सिर्फ तीन ही बोगियां हैं. यह ट्रेन हर दिन सुबह और शाम को कोच्चि हार्बर टर्मिनस और एर्नाकुलम जंक्शन के बीच दौड़ती है. रूट भी बहुत छोटा है. दरअसल यह ट्रेन सिर्फ 9 किमी का सफर तय करती है. और इसकी रफ्तार  साइकिल जैसी है.

1945 में लगाया गया एसी कोच

पहली बार वातानुकूलित यानी एसी कोच पंजाब मेल ट्रेन में साल 1945 में जोड़े गए थे. वर्तमान में सभी ट्रेन में एसी फ‌र्स्ट, एसी सेकेंड, एसी थर्ड के कुल आठ डिब्बे, लगभग 12 स्लीपर क्लास और चार जनरल क्लास के डिब्बे लगाए जाते हैं. अब यह ट्रेन मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से फिरोजपुर कैंट स्टेशन तक जाती है. 

काफी समय बाद मिली थी टॉयलेट्स की सुविधा

आज भारतीय रेलवे बोगियों में प्लेन जैसी सुविधाएं हैं. लेकिन आपको पता है कि ब्रिटिश इंडियन रेलवे में टॉयलेट्स नहीं हुआ करता था. साल 1909 तक ब्रिटिश इंडियन रेलवे में टॉयलेट्स नहीं हुआ करते थे. यात्रा करने वाले पैसेंजर्स ट्रेन के रुकने के बाद पटरियों के किनारे या आसपास के इलाके में टॉयलेट करते थे. कई बार इसी कारण लोगों की ट्रेन छूट जाया करती थी. 

ऐसा ही कुछ वेस्ट बंगाल से सफ़र कर रहे ओखिल चंद्र सेन नाम के शख्स के साथ हुआ था. दरअसल उन्होंने ने साहिबगंज डिविजनल रेलवे ऑफिस को मजाकिया अंदाज में एक चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने बताया कि वह शौचालय करने निकले ही थे कि उनकी ट्रेन चल पड़ी. गाड़ी की आवाज सुनते वह दौड़े और गिर पड़े.

ओखिल चंद्र सेन ने इस चिट्ठी में उन्होंने धोती खुलने और लोगों के हंसने का भी जिक्र किया था. इस चिट्ठी के बाद ही रेलवे ने ट्रेन में टॉयलेट्स की सुविधा दी. आज भी ये चिट्ठी दिल्ली के रेलवे म्यूजियम में रखा गया है. 

बायो टॉयलेट से लेकर लग्जरी बाथरूम तक का सफर 

जैसे जैसे साल बीतता गया भारतीय रेलवे के कोच में कई बदलाव आए. शौचालय को हाईटेक बनाया गया और कुछ साल पहले ही सरकार ने बायो टॉयलेट्स ट्रेनों में लगाए. 

केंद्र सरकार की योजनाएं

रेल कौशल विकास योजना: इस योजना के तहत रेलवे ऐसे बेरोजगारों को फ्री में ट्रेनिंग दे रहा है जो अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते हैं. योजना के तहत 15 से 18 दिनों की ट्रेनिंग कराई जाती है और उसके बाद युवा उस ट्रेनिंग से जुड़ा अपना खुद का स्टार्टअप शुरू कर सकते हैं. इस ट्रेनिंग के लिए बहुत ज्यादा पढ़ाई लिखाई की भी जरूरत नहीं है. महज दसवीं पास युवा का लाभ उठा सकते हैं.

हाल ही में शिवहर, सीतामढ़ी और मोतिहारी जिले के लोगों को रेलवे ने एक बड़ी खुशखबरी दी है. यानी रेलवे ने पूर्व में स्वीकृत सीतामढ़ी-मोतिहारी रेल मार्ग के निर्माण के लिए राशि की स्वीकृत दे दी है. प्रथम फेज में सीतामढ़ी-शिवहर तक रेल लाइन का निर्माण होगा. इसके लिए रेल मंत्रालय की ओर से 566.83 करोड़ रुपये की राशि की स्वीकृति दी.

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