साल था 1984, अप्रैल का महीना था. दिल्ली के विज्ञान भवन में देश भर के साधु-संत जुटे थे. धर्म संसद का मौका था  और इसका आयोजन किया था 29 अगस्त, 1964 को बनी एक संस्था ने जिसका नाम था विश्व हिंदू परिषद. इस आयोजन के दौरान तय हुआ कि अब वक्त आ गया है कि रामजन्मभूमि को आजाद करवाया जाए, उसपर लगा ताला खुलवाया जाए और वहां पर फिर से पूजा-पाठ शुरू किया जाए. इसके लिए रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनाने का प्रस्ताव रखा गया और ये प्रस्ताव पास हो गया. जून में गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ के नेतृत्व में रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बन गई. तय हुआ कि देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों को राम मंदिर आंदोलन के लिए प्रोत्साहित करना होगा और इसके लिए एक रथयात्रा का प्रस्ताव रखा गया. नाम रखा गया राम जानकी रथयात्रा. 24 सितंबर, 1984 को बिहार के सीतामढ़ी से राम जानकी रथ यात्रा शुरू हुई. हजारों लोग इस यात्रा के साथ जुड़े. सात अक्टूबर, 1984 को यात्रा अयोध्या पहुंची. सरयू नदी के तट पर हजारों लोग इकट्ठा हुए. वहां पर अयोध्या में भव्य राम मंदिर का संकल्प लिया गया और फिर यात्रा लखनऊ होते हुए दिल्ली के लिए निकल गई. 31 अक्टूबर, 1984 को फिर से विज्ञानभवन में संतों को जुटना था और इस यात्रा का समापन होना था. लेकिन उसी दिन सुबह-सुबह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी और रथयात्रा को बीच में ही खत्म करना पड़ा.



लेकिन इस रथयात्रा ने लोगों को ट्रिगर कर दिया था. वहीं 23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया था, जिसकी वजह से मुस्लिम समुदाय नाराज था. 1985 के अंत में हुए कुछ उपचुनावों में कांग्रेस को मुसलमानों की नाराजगी का खामियाजा भी भुगतना पड़ा था. इसकी वजह से राजीव गांधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाने की सोच रहे थे. ये पता लगते ही राजीव गांधी पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगने लगे. वहीं 1984 में मिले प्रचंड बहुमत को बचाने की कवायद में राजीव गांधी को हिंदू वोटों को भी लामबंद करना था और इसके लिए अयोध्या का राम मंदिर मुफीद था. इस बीच 31 अक्टूबर से 1 नवंबर 1985 के दौरान कर्नाटक के उडूपी में एक और धर्मसंसद हुई. इसमें तय किया गया कि अगर ताला नहीं खुलता है तो फिर संत 9 मार्च, 1986 से अनशन शुरू कर देंगे. महंत परमहंस रामचंद्र दास ने आत्मदाह तक की धमकी दे डाली.



तब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री थे और मामला पहले से ही फैजाबाद जिला जज केएम पांडेय की अदालत में था. उस वक्त राजीव गांधी के कहने पर सीएम वीर बहादुर सिंह अयोध्या का ताला खुलवाने के लिए तैयार हो गए. तत्कालीन डीएम इंदु कुमार पांडेय और एसपी कर्मवीर सिंह ने कोर्ट में हलफनामा दिया कि ताला खुलने से किसी तरह की कानून-व्यवस्था की दिक्कत नहीं होगी. 1 फरवरी, 1986 की शाम चार बजकर 40 मिनट पर जज केएम पांडेय ने अपना फैसला सुनाया. आदेश दिया कि एक घंटे के अंदर ताला खोल दिया जाए. अभी पुलिस और प्रशासन अदालत के आदेश की तामील करता, उससे पहले ही हजारों की संख्या में लोग विवादित स्थल पर पहुंच गए और किसी ने ताला खोल दिया. अब आदेश चूंकि अदालत का था, तो फिर प्रशासन ने ये भी पता लगाने की कोशिश नहीं की कि ताला किसने खोला. लेकिन अब ताला खुल गया था. यानि कि राजीव गांधी का एक मकसद पूरा हो गया था. दूसरा मकसद यानि कि मुस्लिम वोटों को साधने की कवायद उन्होंने संसद के जरिए पूरी कर ली और शाहबानो पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संसद के जरिए बदल दिया. चुनाव नज़दीक थे, तो राजीव गांधी को दोनों तरफ के वोटों को साधना ज़रूरी लगा और उन्होंने वही किया.


लेकिन ताला खुलने से मुस्लिम समुदाय नाराज हो गया. नाराजगी जाहिर करने और बाबरी मस्जिद पर अपना हक कायम करने के लिए 1986 में ही बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी का गठन कर दिया. वहीं राम लला की पूजा वहां शुरू हो गई. इस दौरान विश्व हिंदू परिषद की ओर से राम जन्म भूमि के लिए आंदोलन चलता रहा. इसी साल उज्जैन में बजरंग दल का शिविर लगा था. उस शिविर में एम कॉम की पढ़ाई कर रहा एक शख्स मौजूद था, जिसका नाम था सत्यनारायण मौर्य. शिविर के दौरान शाम को जब सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे थे, सत्यनारायण मौर्य ने एक नारा उछाला, राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे. फिर क्या था. देखते ही देखते पूरी भीड़ इस नारे का उद्घोष करने लगी. धीरे-धीरे ये नारा राम जन्म भूमि आंदोलन का प्रतीक बन गया. वहीं 1 जुलाई, 1989 को एक मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट के पास दाखिल हुआ. इसे दाखिल किया था रिटायर्ड जज देवकीनंदन अग्रवाल ने. उन्होंने कहा कि संपत्ति के असली मालिक खुद रामलला हैं औऱ वो रामलला के मित्र के तौर पर ये केस लड़ेंगे. इसके बाद जिला अदालत में चल रहे सारे केस एक साथ हाई कोर्ट में आ गए.



इस बीच 1989 के लोकसभा चुनाव भी नज़दीक आ रहे थे. राजीव गांधी के सामने अपना प्रदर्शन दोहराने की चुनौती थी. वहीं जनसंघ से जनता पार्टी में विलय के बाद 6 अप्रैल 1980 को स्वतंत्र अस्तित्व के साथ निकली भारतीय जनता पार्टी भी चुनावी मैदान में थी. 1984 में दो सीटों पर सिमटी इस पार्टी के पास खोने के लिए कुछ नहीं था और पाने के लिए पूरा देश था. 1989 में पार्टी का अधिवेशन हुआ पालमपुर में. पार्टी ने तय किया कि वो विश्व हिंदू परिषद के राम मंदिर की मांग का समर्थन करेगी. पार्टी ने इसे अपने चुनावी घोषणापत्र में भी शामिल किया था. वहीं राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स घोटाले का जिन्न साये की तरह चिपका था, जिसे कभी उनके कैबिनेट में मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह बाहर लेकर आए थे.


इस बीच 1989 में हरिद्वार के संत सम्मेलन में मंदिर निर्माण की तारीख घोषित कर दी गई. तारीख थी 9 नवंबर, 1989. बोफोर्स और बीजेपी की रणनीति के बीच फंसे राजीव गांधी ने रास्ता निकाला. उन्होंने 9 नवंबर, 1989 को अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास की इजाजत दे दी. कामेश्वर चौपाल ने ईंट रखकर शिला पूजन किया. लेकिन इस दौरान ऐसा ध्रवीकरण हुआ कि जो राजीव गांधी मंदिर के जरिए चुनाव जीतना चाहते थे, वही राजीव गांधी अयोध्या से अपना चुनावी अभियान शुरू करने के बाद भी इतनी सीटें नहीं जीत पाए कि सरकार बना सकें. उन्हें मिलीं मात्र 197 सीटें. वहीं एक साल पहले ही बने जनता दल को 143 सीटें मिलीं और राम लहर पर सवार बीजेपी को मिलीं 85 सीटें. बीजेपी ने जनता दल का समर्थन कर दिया और बोफोर्स की डायरी दिखाकर और राजीव गांधी का नाम घोटाले में उछालकर भाषण देने वाले वीपी सिंह प्रधानमंत्री बन गए.


वहीं राम लहर पर सवार होकर 85 सीटें जीतने वाली बीजेपी अब मंदिर आंदोलन को धार देने लगी. इसके लिए लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में 25 सितंबर, 1990 को एक रथयात्रा निकली. इसे 10 राज्यों के 200 लोकसभा क्षेत्रों से गुजरना था. 30 अक्टूबर को यात्रा के समापन पर कारसेवा होनी थी. लेकिन 23 अक्टूबर को बिहार के समस्तीपुर में तब के बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने आडवाणी की यात्रा रोक दी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. यात्रा खत्म हो गई. लेकिन 30 अक्टूबर को कारसेवा की उम्मीद में हजारों कारसेवक अयोध्या में जमा थे. पुलिस ने कारसेवकों को रोकने की कोशिश की.. कर्फ्यू लगाया गया. लेकिन भीड़ नहीं मानी. और तब यूपी के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया. कई लोग मारे गए और भीड़ तितर-बितर हो गई. 2 नवंबर को भीड़ ने फिर से कारसेवा की कोशिश की और उस दिन भी फायरिंग हुई, जिसमें कई लोग मारे गए. आधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 17 है, लेकिन बीजेपी इसे 50 से ज्यादा बताती रही है.



इस बीच 1991 के चुनाव में केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो गई थी. वहीं उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में सत्ता में आई बीजेपी. अब यूपी में सरकार उस पार्टी की थी, जो अयोध्या में राम मंदिर बनाना चाहती थी. 30 अक्टूबर, 1992 को राम मंदिर आंदोलन की अगुवाई करने वाली विश्व हिंदू परिषद की ओर से एक ऐलान किया गया. कहा गया कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कारसेवा होगी. इस बार विश्व हिंदू परिषद को भी पता था कि सरकार बीजेपी की है तो गोली तो नहीं ही चलेगी. विहिप की ओर से ये भी कहा गया कि मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचेगा. खुद मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि मस्जिद पूरी तरह से सुरक्षित रहेगी. लेकिन कारसेवा के लिए जुटे लाखों कारसेवकों ने 6 दिसंबर, 1992 को मस्जिद ढहा दी. मस्जिद गिरने के तुरंत बाद कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया.



मस्जिद किसने ढहाई, इसकी प्लानिंग किसने की, कौन-कौन इस षड्यंत्र में शामिल था और कैसे बाबरी विध्वंस को अंजाम दिया गया, इसको लेकर दो मुकदमे दर्ज हुए. साथ ही इस दौरान पत्रकारों पर हमले को लेकर 47 मुकदमे दर्ज हुए. इन मुकदमों में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, अशोक सिंघल, विष्णु हरि डालमिया, गिरिराज किशोर, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, बाल ठाकरे, कल्याण सिंह, मोरेश्वर सवे, पवन कुमार पांडेय, जय भगवान गोयल, फैजाबाद के तत्कालीन डीएम आनंद श्रीवास्तव, तत्कालीन एसपी डीबी राय और 26 दूसरे लोगों के नाम शामिल हैं. ये मामला सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में है, जहां 31 अगस्त तक इस मामले की सुनवाई पूरी होनी है. बाकी मस्जिद गिरने के बाद से अदालती चक्कर काटते हुए मामला कैसे अपने अंजाम तक पहुंचा, कैसे सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को अपना अंतिम फैसला दिया और कैसे इस फैसले के बाद पांच अगस्त, 2020 की तारीख भूमि पूजन के लिए तय की गई, बताएंगे आपको अयोध्या स्पेशल की अगली किस्त में.