Karpoori Thakur Honesty: किस्सा कर्पूरी ठाकुर का, जब जननायक को विदेशी दौरे के लिए मांगना पड़ा था कोट, फटे लिबास को देख फिरंगी मार्शल ने दिया था तोहफा
Karpoori Thakur Story: करीब दो दशक तक बिहार की राजनीति में पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तित्व इमानदारी की मिसाल रहा है. विधायक रहते उन्हें कपड़े तक उधार मांगने पड़े थे.
Karpoori Thakur Honesty Stories: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न की घोषणा के बाद उनकी सादगी और ईमानदारी के किस्से सुर्खियों में हैं. करीब दो दशक तक सियासत में रहने के बावजूद परिवार के लिए पुश्तैनी संपत्ति के अलावा कोई भी विरासत नहीं बनाने वाले कर्पूरी ठाकुर ने न केवल बिहार के पिछड़े गरीब-गुरबे समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ा बल्कि सामाजिक बदलाव की भी नींव रखी.
जननायक के नाम से मशहूर बिहार के नेता ने व्यक्तित्व और कार्यों के जरिए भी कई उदाहरण पेश किए थे. किस कदर गरीबी से निकल कर वह जनप्रतिनिधि बने और तब भी ईमानदारी बरत रहे थे, इसकी एक बानगी उनके विदेश दौरे के किस्से से मिलती है. उन्हें ऑस्ट्रिया जाने के लिए अच्छे कपड़े नहीं होने की वजह से दोस्त से कोट उधार मांगना पड़ा था. आइए, जानते हैं उस किस्से के बारे में:
'देवीलाल ने हरियाणवी मित्र से कहा था उधार दे देना'
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेताओं में शामिल रहे हेमवती नंदन बहुगुणा ने संस्मरण में कर्पूरी ठाकुर का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा था, "कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल (चौधरी देवीलाल भारत के उप-प्रधानमंत्री रहे) ने पटना में हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरी जी कभी आपसे पांच-दस हजार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा. बाद में देवीलाल ने मित्र से कई बार पूछा- भाई कर्पूरी ने कुछ मांगा. हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं."
1952 में विदेश जाने के लिए उधार मांगने पड़े थे कपड़े
कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ के हवाले से बीबीसी ने बताया कि कर्पूरी ठाकुर 1952 में विधायक बने थे. एक प्रतिनिधिमंडल ऑस्ट्रिया जा रहा था जिसमें कर्पूरी ठाकुर भी थे. उनके पास कोट ही नहीं था. सारे लोग सूट-बूट में थे इसीलिए कर्पूरी ठाकुर को भी दोस्त से कोट उधार मांगना पड़ा. इतना ही नहीं, जब वह विदेश पहुंचे तब भी उनकी सादगी पर वहां के मार्शल टीटो फिदा हो गए. दरअसल, कर्पूरी ठाकुर ऑस्ट्रिया से यूगोस्लाविया भी गए तो मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा है और इसके बाद उन्हें एक कोट भेंट किया था."
बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर की 24 जनवरी, 2024 को 100वीं जंयती थी. उनका जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर में हुआ था. 1967 में पहली बार उप मुख्यमंत्री बने और 1971 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. वे पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे. राजनीति में कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक चालों को भी समझते थे और समाजवादी खेमे के नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी. वे सरकार बनाने के लिए लचीला रुख अपना कर किसी भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे लेकिन अगर मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे.
यही वजह है कि उनके राजनीतिक दोस्त और दुश्मन दोनों को ही उनके राजनीतिक फैसलों के बारे में अनिश्चित रहते थे. इसी राजनीतिक पारंगत व्यक्तित्व की वजह से उन्होंने हमेशा जातिगत समीकरण साधते हुए उम्मीदवारों का चुनाव किया और ऐसी सरकार चलाई जो पिछड़े वर्ग को अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा करने में सफल रही. कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था.