नई दिल्लीः भारत ने बीते दो दशकों के दौरान अफगानिस्तान के विकास में बड़ी भूमिका निभाई. सलमा बांध डेला सारांश जैसी महत्वपूर्ण सड़क और कई पावर ट्रांसमिशन लायंस से लेकर देश के संसद भवन तक की इमारत तक कई सौगातें दीं. मगर तालिबानी बंदूकों के बढ़ते आतंक के बीच अब मदद का हाथ बढ़ाकर अफगानिस्तान को खड़ा करने की इन कोशिशों का रास्ता रुकता जा रहा है. सुरक्षा खतरों और चिंताओं के बीच भारत को अब विकास सहायता परियोजनाएं रोक अपने पेशेवरों को वापस लौट आना पड़ा है.


अफगानिस्तान में स्कूली शिक्षा मजबूत करने के लिए काम कर रही भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर बरखा वर्षा भी उन लोगों में शामिल हैं जिन्हें सुरक्षा खतरों के चलते अपना काम बीच में छोड़कर भारत लौटना पड़ा. 2 दिन पहले अफगानिस्तान से लौटी डॉक्टर वर्षा ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा कि अफगानिस्तान के हालात लगातार बद से बदतर होते चले जा रहे हैं. हर जगह डर का माहौल है. 


अपनी आपबीती सुनाते हुए डॉ वर्षा बताती हैं कि भारत ने अफगानिस्तान के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसे अफगान लोग मानते भी है. मगर तालिबानी आतंक से खराब हुए हालात के मद्देनजर भारत की परियोजनाएं लगभग रुक गई है. उन्होंने बताया कि वह जिस फ्लाइट से वापस लौटी उसमें कई भारतीय इंजीनियर और कामगार भी वापस आए जो अफगानिस्तान में अनेक विकास परियोजनाओं पर काम कर रहे थे.


गौरतलब है कि भारत 2005 से लेकर अब तक अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं के लिए 12 करोड़ डॉलर का निवेश कर चुका है. साल 2019 20 के दौरान भारत में 37 हाई वैल्यू कम्युनिटी इंपैक्ट डेवलपमेंट परियोजनाएं अफगानिस्तान में पूरी की. इतना ही नहीं दोनों देशों के बीच करीब 80 मिलियन डॉलर की विकास परियोजनाओं के लिए भी बातचीत का सिलसिला चल रहा था. हालांकि अब बदले हुए हालात में इन तमाम परियोजनाओं और निवेश का भविष्य संकट में नजर आता है.


अफगानिस्तान में करीब 1 महीना बिता कर लौटी डॉ बरखा कहती है की तस्वीरों में नजर आ रहे हालात से कहीं ज्यादा गंभीर हैं अफगानिस्तान की स्थितियां. तालिबान अपने उसी रंग धन के साथ वापस लौट रहे हैं जिसके साथ वह करीब ढाई दशक पहले सत्ता पर काबिज हुए थे.
कुंदूज हेरात कंधार मजार ए शरीफ समेत अफगानिस्तान के कई इलाकों पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने फतवे निकालना शुरू कर दिया है जिसमें महिलाओं के कामकाज करने पर रोग जैसी रूढ़िवादी ताकीद की गई हैं. इसके अलावा खासतौर पर उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जो सामाजिक प्रगति के लिए काम करते हैं.


इतना ही नहीं सारे चौराहे लोगों को फांसी पर लटकाने जैसी बर बर हरकतों का दौर भी अफगानिस्तान में फिर लौटता नजर आ रहा है. यही वजह है कि पत्रकार कलाकार सामाजिक कार्यकर्ता और पढ़ा-लिखा तबका अपनी जान की सलामती के लिए अफगानिस्तान छोड़ने को मजबूर हो रहा है. सरकारी सूत्रों के मुताबिक बड़े पैमाने पर भारतीय दूतावास के पास वीजा आवेदन मिल रहे हैं. हालांकि मानवीय आधार पर वीजा आवेदनों को स्वीकार करने के साथ-साथ भारत को यह एहतियात भी बरतना होगा कि कहीं इसका गलियारा लेकर गलत तत्व भारत में दाखिल ना हो जाए.


ध्यान रहे कि सुरक्षा चिंताओं के चलते ही भारत में विशेष विमान भेज कर मजार ए शरीफ वाणिज्य दूतावास से अपने राजनयिकों और कर्मचारियों को सुरक्षित निकाला. सूत्र बताते हैं कि करीब 50 लोगों को लेकर भारतीय वायुसेना का विमान बुधवार सुबह 6:00 बजे इंडियन एयरफोर्स स्टेशन पहुंचा. इस विमान में सरकारी कर्मचारियों के अलावा कई नागरिक भी शामिल थे.


सरकार ने अफगनिस्तान में मौजूद


सभी भारतीयों को पूर्ण एहतियात बरतने के साथ-साथ इस बात की भी हिदायत दी है कि वह जल्द से जल्द वापस अपने देश लौट आएं. सूत्रों की माने तो सुरक्षा हालात पर लगातार नजर रखी जा रही है और इसके आधार पर ही भारत के काबुल स्थित राजनयिक मिशन को लेकर भी फैसला किया जाएगा. हालांकि फिलहाल काबुल स्थित भारतीय मिशन सक्रिय तौर पर काम कर रहा है.


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