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कोरोना की मार के बाद फिर स्ट्रॉबेरी बनेगी फायदे का सौदा, जल्दी फसल पकने से खिले किसानों के चेहरे

Jammu Kashmir News: श्रीनगर से 16 किलोमीटर दूर गासू गांव को स्ट्रॉबेरी विलेज के नाम से जाना जाता है. यहां बड़ी संख्या में युवा  "कैश क्रॉप" के तौर पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे है.

Strawberry Farmers: कश्मीर में गर्मियां आते ही फलों का सीजन शुरू हो जाता है और पहले आने वाले फलों में स्ट्रॉबेरी का नंबर पहला होता है. लेकिन पिछले दो साल में कोरोना के चलते स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ा लेकिन इस बार भी अप्रैल में कम बारिश के बावजूद भी फसल अच्छी है, जिससे किसान खुश हैं. 

श्रीनगर से 16 किलोमीटर दूर गासू गांव को स्ट्रॉबेरी विलेज के नाम से जाना जाता है. यहां बड़ी संख्या में युवा  "कैश क्रॉप" के तौर पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे है. आम दिनों में एक एकड़ के खेत से परिवार आराम से 4-5 लाख कमा लेता है लेकिन पिछले दो साल से किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. 

28 साल के मंज़ूर अहमद पिछले 5 साल से स्ट्रॉबेरी की खेती करते आ रहे हैं लेकिन अब वह इस बात से परेशान हैं कि तैयार माल कहां बेचें. स्ट्रॉबेरी की फसल बहुत जल्दी खराब हो जाती है और इसलिए दो दिन के अंदर ही इसको या तो मार्किट या फिर कोल्ड स्टोरेज में ले जाना पड़ता है. लेकिन इस बार जल्दी फसल पकने से कीमत अच्छी मिल रही है और मांग भी ज्यादा है.  


कोरोना की मार के बाद फिर स्ट्रॉबेरी बनेगी फायदे का सौदा, जल्दी फसल पकने से खिले किसानों के चेहरे

साल 2020 में कोरोना लॉकडाउन के चलते किसान लोकल मार्केट में ही स्ट्रॉबेरी काफी कम दामों में बेचने पर मजबूर हो गए थे और यही हाल 2021 में भी रहा. लेकिन इस बार मंज़ूर जैसे स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले बाकी किसान भी अच्छी कमाई की उम्मीद कर रहे हैं. 

खेती करने वालों की परेशानी समझते हुए प्रदेश के हॉर्टिकल्चर विभाग ने प्रशासन से स्ट्रॉबेरी के लिए विशेष ट्रांसपोर्ट के प्रबंध का आग्रह किया ताकि स्ट्रॉबेरी और उसके बाद तैयार होने वाले चेरी की खेती को देश के विभिन्न इलाकों में बानी मंडियों तक पहुंचाया जा सके. लेकिन ना तो सरकार ने अभी तक इनके लिए कोई आदेश दिया है और ना ही फलों को मंडियों तक पहुंचाने का कोई इंतजाम किया है.

डायरेक्टर हॉर्टिकल्चर एजाज़ अहमद भट्ट के अनुसार स्ट्रॉबेरी की खेती कश्मीर में बहुत कम इलाके में होती है और प्रति वर्ष 400 मीट्रिक टन स्ट्रॉबेरी उगाई जाती है. इसमें से 350 मीट्रिक टन कश्मीर घाटी में और करीब 41 मीट्रिक टन जम्मू से आती है. जम्मू-कश्मीर में कुल 52 हेक्टेयर में स्ट्रॉबेरी की खेती होती है और एक कनाल ज़मीन से किसान आसानी से एक लाख रुपये तक कमा सकता है. 


कोरोना की मार के बाद फिर स्ट्रॉबेरी बनेगी फायदे का सौदा, जल्दी फसल पकने से खिले किसानों के चेहरे

लेकिन मार्च में पड़ने वाली गर्मी और फिर अप्रैल में कम बारिश के चलते कम सिंचाई वाले इलाकों में किसानों को उपज में कमी की भी शिकायत रही. 70 साल के किसान गुलाम नबी यतू के अनुसार मार्च में खुश्क-गर्म मौसम के बाद जब किसानों के खेतों में मजबूरी में पानी भरा तो उससे काफी नुकसान हुआ. 

यतू ने कहा, फसल अच्छी आई और उम्मीद है कि इसकी कीमत भी अच्छी मिलेगी क्योंकि अभी बड़ी संख्या में टूरिस्ट भी कश्मीर घाटी में आए हैं. लगातार दो साल से किसानों को होने वाले नुकसान के बाद अब विभाग ने इन सभी को स्ट्रॉबेरी के साथ साथ कोई और फल भी उगाने  का मशविरा दिया है और अगर इन लोगों ने मिक्स्ड क्रॉप शुरू नहीं की तो उनके लिए आगे काफी मुश्किल हो सकती है. पिछले दो साल से लगातार स्ट्रॉबेरी और चेरी के सीजन में कोरोना लॉकडाउन के चलते अब किसानों को उम्मीद है कि  इस बार उनके लिए स्ट्रॉबेरी फायदे का सौदा बनेगा.

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