भारत में साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इसे लेकर सभी पार्टियों ने दांव-पेंच अजमाना शुरू कर दिया है. बीजेपी ने भी सत्ता में बने रहने के लिए कई राज्यों में अपनी स्ट्रेटजी बनानी शुरू कर दी है. इस बार पार्टी का मुख्य लक्ष्य दक्षिण के दुर्ग को भेदने का है. दरअसल पार्टी अब तक इस दुर्ग को भेदने में नाकाम रही है.


यही कारण है कि बीजेपी ने तमिलनाडु में साल 2022 में के अन्नामलाई को अपना नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. पार्टी के इस फैसले ने उस वक्त तमिलनाडु की राजनीति को समझने वाले लोगों को हैरानी में डाल दिया था.  


हालांकि भारतीय जनता पार्टी ये बात बखूबी जानती है कि अगर दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत करनी है तो स्थानीय स्तर पर युवा नेताओं को मौका देना होगा. अब अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी तमिलनाडु में बेहतर प्रदर्शन करती है तो तमिलनाडु बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई दक्षिण के सबसे बड़े रणनीतिकार साबित हो जाएंगे. 


आखिर कौन है के अन्नामलाई, कैसे बने IPS से प्रदेश अध्यक्ष?


तमिलनाडु के करूर जिले से आने वाले अन्नामलाई का जन्म कोईंबतूर में एक साधारण कृषि परिवार में हुआ था. वह कोंगु-वेल्लार जाति के हैं. ये जाति आजादी के समय तो अगड़ी जाति थी, लेकिन साल 1975 से इसे पिछड़ी जाति का दर्जा दे दिया गया.


अन्नामलाई ने डेक्कन क्रोनिकल अखबार को दिए एक इंटरव्यू में अपनी निजी जिंदगी के बारे में बताते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश जाना मेरे लिए एक सदमे जैसा था. यहां 5-5 रुपये के लिए किसी की हत्या कर दी जाती थी. इस प्रदेश ने मुझे हमेशा के लिए बदल दिया. मैंने इतनी गरीबी पहले कभी नहीं देखी थी. उसी वक्त मैंने तय किया कि मैं एक ऐसा जीवन जिऊंगा, जहां मैं लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकूं.  


अन्नामलाई आगे कहते हैं कि सिविल सेवा मुझे ऐसी ही जिंदगी जीने का एक तरीका लगा. मैंने आईआईएम में आए इंटरनेशनल कंपनियों में प्लेसमेंट लेने की जगह सिविल सेवा की परीक्षा दी. मुझे आईएएस बनना था लेकिन कम नंबर आने की वजह से मैं आईपीएस बन गया. मैं वर्दी में खुश था."


हालांकि 25 मई 2019 को उन्होंने पुलिस से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के वक़्त अन्नामलाई बेंगलुरु दक्षिण के डीसीपी थे और लोग उन्हें सिंघम के टाइटल से बुलाते है. उन्होंने स्टेपिंग बियॉन्ड खाकी के नाम से एक किताब भी लिखी है. 


25 अगस्त 2020 को अन्नामलाई बीजेपी में शामिल हो गए और लगभग एक साल बाद ही यानी 9 जुलाई 2021 को उन्हें तमिलनाडु बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. 


साल 2021 तमिलनाडु में हुए विधानसभा चुनाव में अन्नामलाई भारतीय जनता पार्टी की तरफ से चुनाव भी लड़े थे. लेकिन उस चुनाव में उन्हें हार मिली. अरवाकुरुच्ची सीट से चुनाव लड़ने वाले अन्नामलाई 24300 वोटों से हार गए. 


अन्नामलाई कैसे बीजेपी के लिए फायदेमंद 


दक्षिण भारत में भारतीय जनता पार्टी साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में, मोदी लहर के बावजूद कुछ खास नहीं कर पाई थी. ऐसे में अन्नामलाई का प्रदेश अध्यक्ष होने का पार्टी को फायदा मिल सकता है. दरअसल अन्नामलाई न सिर्फ तमिलनाडु के लोकल नेता हैं बल्कि युवा नेताओं में भी शामिल हैं. 


इससे लोगों के बीच संदेश जाएगा कि बीजेपी समय के साथ चलने वाली पार्टा है. ये न सिर्फ स्थानीय लोगों को मौका दे रही है बल्कि युवाओं और शिक्षित लोगों को भी अपनी पार्टी में शामिल कर रही है. 


अन्नामलाई कर सकते हैं पलानिस्वामी के वोट बैंक में सेंधमारी


दरअसल अन्नामलाई जिस समुदाय से आते हैं उसी से पलानीस्वामी भी आते हैं. पलानीस्वामी वेल्ला गौंडर जाति के बड़े नेता भी माने जाते हैं. और इस जाति का तमिलनाडु में एक रणनीतिक महत्व भी है. ऐसे में अन्नामलाई पलानिस्वामी के वोट बैंक में सेंधमारी कर बीजेपी को फायदा पहुंचा सकती है. 


अब समझते हैं दक्षिण के सियासी समीकरण को जिस पर बीजेपी की नजर है


अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं ऐसे में दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में लोकसभा की कुल 129 सीटें हैं. केंद्रशासित पुडुचेरी में भी एक सीट है. ऐसे में दक्षिण भारत में कुल सीटों की संख्या 130 हो जाती है. 


2019 में भारतीय जनता पार्टी ने 303 सीटें अपने नाम की थी लेकिन दक्षिण भारत के इन 130 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ 29 सीटें ही मिली थी, जिसमें कर्नाटक की 25 सीटें शामिल हैं. दक्षिण के 3 राज्यों (तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश) में भारतीय जनता पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी. 


तमिलनाडु पर ही क्यों है पार्टी का फोकस


दक्षिण भारत की 3 राज्यों की सीमा तमिलनाडु की सीमा से सटी हुई है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल शामिल हैं. जयललिता के निधन के बाद इन राज्यों में विपक्ष पूरी तरह कमजोर पड़ गई है. बीजेपी को जड़ें जमाने के लिए यही आसान मौका दिख रहा है.  


अन्नामलाई की चुनौतियां


तमिलनाडु में अपनी पकड़ बनाने के लिए अन्नामलाई की सबसे बड़ी चुनौती होगी प्रदेश में नया कैडर खड़ा करना. इसके अलावा अन्नामलाई को मजबूत विपक्ष बनना पड़ेगा जिससे जनता के बीच अपनी जमीन तैयार कर सके.  नए मुद्दों को जन्म देना भी अन्नामलाई और भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. इसके अलावा पार्टी को सभी को साथ लेकर चलना होगा और केंद्र की योजनाओं को जनता तक पहुंचकर जनता में माहौल बनाना होगा.


बीजेपी को बदलना होगा नैरेटिव
 
द्रविड़ विचारधारा के वर्चस्व वाले राज्य तमिलनाडु में अगर बीजेपी को अपनी जीत सुनिश्चित करनी है तो सबसे पहले अन्नामलाई को जनता के बीच पार्टी के नैरेटिव को बदलने पर काम करना होगा. यह नैरेटिव भारतीय जनता पार्टी को खलनायक के रूप में चित्रित करता है और हिंदी के प्रति उसके प्रेम को उजागर करता है. 


तमिलनाडु के लिए बीजेपी की रणनीति 


अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए बिहार और पंजाब में बीजेपी के गठबंधन टूटने के बाद रणनीतिकारों ने अपनी समग्र संख्या बनाए रखने के लिए दक्षिण में एंट्री करने की आवश्यकता महसूस की है. दक्षिण भारत में अपनी पकड़ बनाने के लिए पार्टी ने 'ऑपरेशन दक्षिण विजय' को तैयार किया है. इस मिशन को मूल उद्देश्य उत्तर-दक्षिण विभाजन को कम करना और साल 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी करना है. 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह सहित भारतीय जनती के कई शीर्ष नेताओं ने दक्षिण भारत के अलग-अलग राज्यों का दौरा करना शुरू कर दिया है. 


जाते-जाते उन नेताओं की कहानी जानिए, जो दक्षिण जाकर चुनाव लड़े...


सत्ता वापसी की कोशिश में जुटी इंदिरा गांधी साल 1980 में आंध्र प्रदेश के मेदक सीट से लोकसभा चुनाव लड़ी थी. उन्होंने इस चुनाव में भारी मार्जिन से जीत हासिल की.


कर्नाटक के बेल्लारी से सोनिया गांधी भी साल 1999 में चुनावी मैदान में उतरीं थी. उनके मुकाबले बीजेपी ने दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं सुषमा स्वराज को बेल्लारी सीट से उतारा. इस चुनाव में सुषमा की हार हुई. 


साल 2019 के चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी केरल के वायनाड सीट से चुनावी मैदान में उतरे. वे यूपी की अमेठी सीट से भी कैंडिडेट थे, लेकिन अमेठी में उन्हें हार मिली. 
 
तमिलनाडु बीजेपी प्रमुख अन्नामलाई को चुनाव आयोग की क्लीन चिट


हाल ही में तमिलनाडु बीजेपी प्रमुख के अन्नामलाई को चुनाव आयोग ने हेलीकॉप्टर में भारी मात्रा में कैश रखकर उडुपी पहुंचने वाले आरोप से मुक्त कर दिया है. दरअसल उन पर ये आरोप कांग्रेस नेता विनय कुमार सोराके द्वारा लगाया गया था. विनय ने इसकी शिकायत निर्वाचन अधिकारियों से करते हुए कहा था कि अन्नामलाई हेलीकॉप्टर से बहुत सारा रुपया लेकर कथित तौर पर उडुपी पहुंचे थे. 


कांग्रेस नेता विनय ने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी केवल झूठे राजनीतिक प्रचार के सहारे बीते विधानसभा चुनाव में तटीय जिले से सारी सीटें जीत ली थी. लेकिन इस बार उनकी यह साजिश काम में नहीं आयेगी.


हालांकि इस आरोप पर चुनाव आयोग ने बुधवार को स्पष्ट करते हुए कहा कि अन्नामलाई के हेलीकॉप्टर से न तो कैश मिला है और न ही उन्होंने किसी प्रकार से चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन किया है. 


अन्नामलाई को भेजा गया कानूनी नोटिस


तमिलनाडु के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने पिछले हफ्ते 'डीएमके फाइल्स' जारी की थी, जिसके तहत उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन सहित पार्टी  के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे. इस आरोप के जवाब में, सत्तारूढ़ DMK ने अन्नामलाई और बीजेपी को कानूनी नोटिस जारी किया और 500 करोड़ रुपये के नुकसान के लिए माफी की मांग की. 


इस नोटिस भेजने के बाद अन्नामलाई ने अपने वकील के जरिए दिए एक बयान में कहा कि नोटिस उनकी आवाज को दबाने की कोशिश है. बयान में कहा गया, "कोई माफी मांगने या हर्जाना देने का कोई सवाल ही नहीं है, अगर किसी को कुछ भी भुगतान करना है, तो वह डीएमके पार्टी और उसके तथाकथित स्वर्ण अध्यक्ष और उसके नेता हैं जिन्हें अपनी सारी अवैध संपत्ति वापस करनी होगी. तमिलनाडु के लोगों के लिए." 


राज्य में गठबंधनों का गणित कब-कब कैसा रहा


साल 1998, साल 2004 और साल 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद दिल्ली की सत्ता का रास्ता तमिलनाडु से होकर खुला था.


दरअसल 1998 में एआईडीएमके के 18 सांसदों ने एनडीए की पहली सरकार बनाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने थे.


यही सरकार साल 1999 में मात्र एक वोट के कारण गिर गई थी. इसके बाद साल 2004 और साल 2009 के चुनाव आए. साल 2004 में हुए चुनाव के दौरान राज्य में डीएमके, कांग्रेस, पीएमके, एमडीएमके, सीपीआई और सीपीएम का गठबंधन हुआ था और यह गठबंधन सभी 39 सीटों को जीतने में कामयाब रहा था.


साल 2009 के चुनाव में कांग्रेस, डीएमके, वीसीके का गठबंधन 27 सीटें लाने में कामयाब हुआ था. जबकि एआईडीएमके, एमडीएमके, सीपीआई और सीपीएम के गठबंधन के खाते में 12 सीटें आई थीं.