उड़ीसा स्टेट कमीशन प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (OSCPCR), यूनिसेफ और ओडिशा चैप्टर ऑफ सेव द चिल्ड्रेन ऑर्गनाइजेशन द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक रैपिड आकलन में यह बात सामने आई है कि महामारी के दौरान ओडिशा के शहरों में रहने वाले 57 प्रतिशत स्ट्रीट चिल्ड्रन मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा से वंचित ही रहे. स्टडी में इस बात का खुलासा भी किया गया है कि इनमें से लगभग 17 प्रतिशत बच्चे असुरक्षित परिस्थितियों में असुरक्षित स्थानों पर रह रहे थे और विभिन्न रूपों में शोषण के शिकार भी हुए.
पांच शहरों के सड़को पर रहने वाले 972 बच्चों पर किया गया सर्वे
गौरतलब है कि ये आंकलन उड़ पांच शहरों, भुवनेश्वर, कटक, राउरकेला, बेरहामपुर और पुरी की सड़कों पर रहने वाले 972 बच्चों पर किया गया था. क्वांटिटेटिव सर्वे में कहा गया है कि इनमें से 47 प्रतिशत बच्चे पांच साल से अधिक समय से एक ही स्थान पर रह रहे थे, लेकिन उनकी कभी भी पहचान नहीं की गई या उनका पुनर्वास भी नहीं किया गया.
राज्य सरकार के साथ साझा की जाएगी स्टडी
वहीं इस सर्वे टीम के एक सदस्य ने कहा है कि, “स्टडी करने का ये आइडिया उन बच्चों की स्थिति का अध्ययन करने और समझने का था जो महामारी के दौरान या तो अपने माता-पिता या अपने रिश्तेदारों के साथ सड़कों रहने को मजबूर थे. उन्होंने कहा कि इस स्टडी को. राज्य सरकार के साथ भी साझा किया जाएगा और नीतिगत स्तर पर इन बच्चों को मदद प्रदान करने के लिए उपाय किए जाएंगे.”
87 प्रतिशत बच्चों को कोविड-19 के बारे में जानकारी थी
स्टडी के दौरान ये बात भी सामने आई कि इन बच्चों की पारिवारिक आय 5,000 रुपये से 10,000 रुपये के बीच है. परिवारों की आय का स्रोत दैनिक मजदूरी, भीख, घरों में नौकर बनकर काम करना या स्ट्रीट वेंडर रहा. सर्वे में महामारी के बारे में जागरूकता पर भी ध्यान दिया गया और पाया गया कि 87 प्रतिशत बच्चों को कोवड -19 के बारे में पता था और उन्हें इस बात की भी जानकारी थी कि कोरोना से सुरक्षित रहने के लिए कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए.
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