नई दिल्ली: अगर आपसे पूछा जाए कि बच्चों को दूछ कैसे पिलाया जाता है तो आप आसानी के साथ कहेंगे बोतल में डालकर, लेकिन अगर आपसे पूछा जाए कि इतिहास के जन्म से पहले कैसे पिलाया जाता था तो आप थोड़ा सोचने पर मजबूर हो जाएंगे. हम आपको बता दें कि इतिहास के जन्म से पहले के दौर में भी शिशुओं को बोतलों से जानवरों का दूध पिलाया जाता था. इस बात का पता एक अध्यन में चला है.


पुरातत्वविदों ने प्राचीन मिट्टी के जहाजों के अंदर पशु वसा के निशान पाए हैं जो ब्रॉन्ज और आयरन युग के शिशुओं की दुर्लभ जानकारी देते हैं. खोज से पता चला है कि शिशुओं को स्तनपान के विकल्प के तौर पर पशुओं का दूध बोतल में दिया जाता था. हालांकि दूध किस जानवर का होता था इसको लेकर संशय की स्थिति है. पुरातत्वविदों का कहना है कि यह बकरी या गाय का कुछ भी हो सकता है.


ब्रिस्टल विश्वविद्यालय की डॉ जूली डन ने कहा कि यह इस बात का पहला प्रत्यक्ष प्रमाण है कि इतिहास के जन्म से पहले शिशुओं को कैसे खिलाया गया था. उन्होंने कहा, '' यह पहला तथ्य है जिससे पता चलता है कि इतिहास के जन्म से पहले शिशुओं को दूध कैसे पिलाया जाता था. कई हज़ार साल पहले बच्चों को को पालने के लिए मां और उसका परिवार कैसे काम कर रहे थे.''


बता दें कि इससे पहले जो तथ्य थे वो बताते थे कि प्रागैतिहासिक शिशुओं को संभवतः छह महीने के बाद स्तन के दूध के अलावा कुछ प्रकार के शिशु आहार दिए गए थे, लेकिन उनका आहार अज्ञात था. इस अध्यन में पुरातत्वविदों ने तीन छोटी "बोतलों" का परीक्षण किया जो कि ब्रॉन्ज और आयरन युग (1,200 और 450 ईसा पूर्व के बीच) के कब्रों में शिशुओं के साथ दफन की गई थीं. इस के बाद पता चला कि उस समय भी पशु का दूध शिशु को बोतल से दिया जाता था. अध्यन में सामने आया कि बावरिया में शिशुओं को टोंटीदार बर्तन में दूध दिया जाता था.


हालांकि इस तरह से दूध पिलाना जोखिम भरा भी था क्योंकि साफ-सुथरी बोतल न होने की वजह से शिशुओं को संक्रमण का खतरा था. ऐसा करने के पीछे का कारण प्रजनन क्षमता को बढ़ाना था जिससे उस समय जनसंख्या वृद्धि ज्याद हो सके.


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