नई दिल्ली: केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के नए निदेशक सुबोध कुमार जायसवाल ने आज सीबीआई मुख्यालय में औपचारिक तौर पर अपना पदभार संभाल लिया. इसके साथ ही उन्होंने सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अपनी पहली बैठक की, जिसमें सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें सीबीआई में चल रहे तमाम महत्वपूर्ण घटनाक्रमों की जानकारी दी.
महाराष्ट्र कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुबोध कुमार जायसवाल 1985 बैच के आईपीएस हैं और इसके पहले वह महाराष्ट्र में पुलिस महानिदेशक के तौर पर भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. वर्तमान में वह (सीबीआई में चयन के पूर्व तक) केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में महानिदेशक के पद पर कार्यरत थे. सुबोध कुमार जायसवाल का चयन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 3 सदस्य कमेटी ने किया. इस कमेटी में भारत के मुख्य न्यायाधीश एम वी रमनना समेत लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी भी शामिल थे. कार्मिक मंत्रालय ने इसके लिए हुई बैठक में पहले 107 नाम दिए थे जो बाद में घटाकर 10 नाम और फिर अंत में तीन नामों की एक सूची रह गई थी.
विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कार्मिक मंत्रालय के इस क्रियाकलाप पर खासा रोष जाहिर किया और अपनी असहमति बाकायदा रजिस्टर में दर्ज की. माना जा रहा है कि बैठक के दौरान मुख्य न्यायाधीश एमवी रमन्ना ने कहा कि इस सूची में उन आईपीएस अधिकारियों को अलग कर दिया जाए जिन की सेवाएं मात्र 6 माह के भीतर समाप्त हो रही हैं. मुख्य न्यायाधीश के इस कथन के साथ ही 1984 बैच के आईपीएस अधिकारियों के नाम इस सूची से निकाल दिए गए.
ध्यान रहे कि 1984 बैच के दो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना और वाईसी मोदी को सीबीआई निदेशक के पद के लिए अहम दावेदार माना जा रहा था. इनमें राकेश अस्थाना बीएसएफ में और वाईसी मोदी एनआईए में महानिदेशक के पद पर वर्तमान में तैनात हैं. प्राप्त जानकारी के मुताबिक विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने तीन नामों के पैनल पर कोई असहमति नहीं दर्ज की. तीन नामों के इस पैनल में राजेश चंद्रा वीएसके कौमुदी और सुबोध कुमार जायसवाल के नाम थे.
इसके बाद सुबोध कुमार जायसवाल के नाम पर फैसला हुआ और इस बाबत कार्मिक मंत्रालय ने मंगलवार देर शाम को आदेश जारी कर दिए. आदेश जारी होने के बाद आज जायसवाल सीबीआई मुख्यालय पहुंचे. जहां पहले सीबीआई के कार्यकारी निदेशक समेत अन्य अधिकारियों ने उनका स्वागत किया और इसके बाद हुई बैठक में वरिष्ठ अधिकारियों ने नए निदेशक को सीबीआई में चल रहे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों की जानकारी दी.
ध्यान रहे कि सीबीआई में इस समय महाराष्ट्र के गृह मंत्री रह चुके अनिल देशमुख के खिलाफ घूस का मामला भी जांच के लिए चल रहा है और सुबोध कुमार जायसवाल इसके पहले महाराष्ट्र में ही डीजीपी के पद पर तैनात थे. बताया जाता है कि अपनी कार्यशैली के चलते उनकी महाराष्ट्र की सरकार से नहीं जमी और इसके बाद में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बतौर महानिदेशक सीआईएसएफ में आ गए. सुबोध कुमार जायसवाल इसके पहले रिसर्च एंड एनालिसिस विंग में भी लंबे समय तक काम कर चुके हैं.
सीबीआई के आला अधिकारियों के मुताबिक, सुबोध कुमार जायसवाल बतौर निदेशक पद पर हुई तैनाती इस बात की तरफ इशारा करती है कि प्रधानमंत्री सीबीआई को लेकर किसी तरह की कोई कंट्रोवर्सी नहीं चाहते, जैसा कि इसके पहले सीबीआई में हो चुकी है. जब सीबीआई में ही सीबीआई के बड़े अधिकारियों के खिलाफ आपस में चल रही गुटबाजी के चलते मुकदमे बाजी शुरू हो गई थी, जिसके चलते सीबीआई की खासी छीछालेदर हुई थी और सीबीआई के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को अपना कार्यकाल पूरा करने के पहले ही अपना सीबीआई निदेशक का पद छोड़ना पड़ा था. फिलहाल सुबोध कुमार जायसवाल के लिए सीबीआई निदेशक की यह कुर्सी कांटों का ताज साबित होती है या फिर सफलता का ताज. यह तो आने वाला समय ही बताएगा.