बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी क्यों बता रहे हैं ममता बनर्जी को पीएम पद का चेहरा?
लोकसभा चुनाव नजदीक है, सभी पार्टियां चुनाव की तैयारियों में लग चुकी हैं. वहीं ममता बनर्जी 2021 से ही खुद को पीएम पद का उम्मीदवार बताती आई हैं. अब इसी की की वकालत सुब्रमण्यम स्वामी ने भी कर दी है.
बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 9 मई को कोलकाता में एक कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक साहसी महिला बताया, जिन्हें भारत का प्रधानमंत्री होना चाहिए था. देश की सबसे शक्तिशाली महिला के बारे में राय रखते हुए स्वामी ने ये भी कहा कि एक समय था जब जयललिता पीएम हो सकती थीं, एक समय था जब मैं मायावती के बारे में ऐसा सोचता था. वर्तमान स्थिति में ममता बनर्जी एकमात्र महिला हैं जो पीएम बन सकती हैं. यह पहली बार नहीं है जब स्वामी ने ममता का समर्थन किया है.
नौ महीने पहले उन्होंने कोलकाता में राज्य सचिवालय नबन्ना में मुलाकात की थी और ममता को एक करिश्माई और साहसी राजनेता बताया था, जो बीजेपी का मुकाबला करने के लिए फिट हैं. नवंबर 2021 में ममता नई दिल्ली में शीतकालीन सत्र से पहले विपक्षी नेताओं से मुलाकात करने आई थी, तब स्वामी ममता बनर्जी से मिले थे. इस बार 9 मई को स्वामी ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख की तारीफ की और उन्हें पीएम पद का उम्मीदवार बताया.
ममता बनर्जी का पीएम पद का उम्मीदवार बता कर स्वामी ने बीजेपी को उहापोह की स्थिति में डाल दिया है. ये बात तब और बड़ी हो जाती है जब टीएमसी राष्ट्रीय पार्टी भी नहीं है. सवाल बयान की टाइमिंग को लेकर भी है. कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस की शानदार जीत हुई है. कर्नाटक में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर हुई थी. ऐसे में स्वामी का बयान किसी भी विपक्षी गठबंधन को और मजबूत करने के लिए फेंका गया हथियार हो सकता है.
एक तरफ जहां कर्नाटक में कांग्रेस की जीत को भारत जोड़ो यात्रा के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है, वहीं ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य करार कर दिए जाने की सार्वजनिक सहानुभूति मिली है. राहुल गांधी को लेकर ये धारणा भी है कि वह अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले राजनीतिक नौसिखिया हैं लेकिन जिस तरह से राहुल गांधी लगातार उद्योगपति गौतम अडानी और हिंडनबर्ग पर सवाल करते आये वो कहीं न कहीं ये इशारा कर रहा है कि राहुल की छवि में सुधार हो रहा है.
कर्नाटक में मिली जीत के बाद विपक्षी एकता और मजबूत हो सकती है. हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये कहा था कि लोकसभा चुनाव के लिए कोई भी संभावित बीजेपी विरोधी मंच कांग्रेस के बिना अधूरा होगा. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ने यकीनन इसके बिना किसी भी मजबूत विपक्षी गठबंधन की संभावना को कम कर दिया है, जिसे कई क्षेत्रीय नेता तीसरे मोर्चे को एक साथ लाने की उम्मीद में योजना बना रहे थे.
क्या सुब्रमण्यम स्वामी का ये बयान विपक्षी एकता को धार देगा?
कई मौकों पर ममता विपक्षी एकता के बल पर पीएम बनने की आंकाक्षा सबके सामने रखती रही हैं. दूसरी तरफ बिहार के मुख्यमंत्री जहां कांग्रेस के बिना किसी विपक्षी गठबंधन के पक्ष में नहीं है. ऐसे में विपक्ष की इस तस्वीर को देखते हुए कांग्रेस बीजेपी विरोधी दलों को एक साझा मंच पर लाने में अग्रणी भूमिका निभा सकती है.
इस बीच सब के बीच स्वामी ने ममता की वकालत की है, जो विपक्षी खेमे के भीतर क्षेत्रीय आकांक्षाओं को हवा दे सकता है. ममता की महत्वाकांक्षा को हवा देकर और उन्हें प्रधानमंत्री बनने के लिए उपयुक्त बता कर कहीं न कहीं उन्होंने विपक्षी एकता को एकजुट होने का संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं.
स्वामी ने जिस तरह ममता की आकांक्षाओं को हवा दी है उसके दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं. ममता का समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव, आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और दक्षिण के मुख्यमंत्रियों एमके स्टालिन और जगन मोहन रेड्डी जैसे कई विपक्षी नेताओं के साथ ठीक समीकरण हैं.
इससे पहले भी स्वामी की तरफ से बीजेपी और मोदी सरकार की लगातार आलोचना और ममता बनर्जी की तारीफ के सियासी मायने निकाले जा चुके हैं. पिछले साल नवंबर में उन्होंने ट्वीट करके ममता बनर्जी की तारीफ की और उन्हें जेपी और राजीव गांधी के कद का नेता बताया था.
ममता 2021 से ही मोदी के खिलाफ कर रही हैं तैयारी
2021 में ममता बनर्जी की तस्वीर के साथ एक हैशटैग #BengaliPrimeMinister पहले से ही सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है. ममता भी 2024 के लोकसभा में विपक्ष का चेहरा बनने की तैयारी 2021 से ही कर रही हैं.
2021 में शहीद दिवस में ममता ने हिंदी और अंग्रेजी में भाषण दिया. पिछले 28 साल से वो 21 जुलाई को बंगाल में एक प्रदर्शन के दौरान मारे गए अपने 13 कार्यकर्ताओं की याद में शहीद दिवस मनाती आ रही हैं, लेकिन कभी भाषण हिंदी या अंग्रेजी में नहीं दिया. लेकिन ममता ने अपनी लीक तोड़ी.
पश्चिम बंगाल में आयोजित इस कार्यक्रम में अकाली दल, समाजवादी पार्टी, एनसीपी, राष्ट्रीय जनता दल, आम आदमी पार्टी, डीएमके, टीआरएस, शिवसेना और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों के नेता वर्चुअली मौजूद थे. इस कार्यक्रम के लिए ममता का पोस्टर पश्चिम बंगाल से लेकर त्रिपुरा तक, गुजरात से लेकर तमिलनाडु तक लगा था.
लेकिन ममता ढाई साल पहले से ही एक कोशिश करती दिख रही हैं. याद दिला दें कि बीजेपी ने पूरी ताकत से पश्चिम बंगाल का चुनाव लड़ा लेकिन ममता बनर्जी की रणनीति ने बीजेपी के सोनार बांग्ला के सपने को तोड़ दिया.
बीबीसी में छपी एक खबर के मताबिक वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का ये मानना है कि ममता ने ये भी बता दिया कि उनकी प्राथमिकता भारत के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी नहीं है, वो केवल केंद्र से बीजेपी को हटाना चाहती हैं, जिसमें उनकी निर्णायक भूमिका होगी.
2024 में काम आएगा विपक्षी नेताओं का समर्थन
ममता बनर्जी अपने लक्ष्य को लेकर साफ हैं. 2021 के वर्चुअल संबोधन में ममता बनर्जी ये कह चुकी हैं, "मैं नहीं जानती 2024 में क्या होगा? लेकिन इसके लिए अभी से तैयारियाँ करनी होंगी. कई विशेषज्ञों का मानना है कि 2014 के चुनाव के दौरान बीजेपी उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रभावशाली विरोधियों की कमी थी, और 2014 का लोकसभा चुनाव बीजेपी आसानी से जीत गई.
वहीं ममता 2018 से ही गैर बीजेपी और गैर कांग्रेसी पार्टियों को एकजुट करके तीसरा मोर्चा बनाने की तैयारी में जुट गई थी. ऐसा करके वह कई पार्टियों के सदस्यों का समर्थन पाने में कामयाब रहीं, लेकिन कोई एक चेहरा उभर कर सामने नहीं आ सका जिसे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जा सके. इस वजह से 2018 में इस महागठबंधन को कामयाबी नहीं मिली.
2018 की असफलता के बावजूद ममता ने अपने सपने को कमजोर नहीं होने दिया. वो सभी क्षेत्रीय दलों के नेताओं के साथ संपर्क साधने में जुटी रहीं. ऐसा करते हुए उन्हें केजरीवाल, लालू और अखिलेश यादव जैसे कई दिग्गज नेताओं का समर्थन भी मिला. अब उनका अगला टारगेट 2024 का लोकसभा चुनाव है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद से ही ममता बनर्जी, नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक बड़ा चेहरा बन कर उभरीं हैं.
केजरीवाल भी हैं रेस का हिस्सा
2024 के लोकसभा निर्वाचन में मुख्यमंत्री से सीधा प्रधानमंत्री बनने का सपना केजरीवाल भी देख रहे हैं. केजरीवाल की पार्टी दिल्ली से बाहर पंजाब में रूलिंग पार्टी बन गयी है, लेकिन आम आमदी पार्टी की पकड़ दिल्ली और पंजाब से बाहर कहीं भी नहीं है, तो वहीं ममता की पार्टी का पश्चिम बंगाल से बाहर कोई पकड़ नहीं है.
2024 में ममता के आगे सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस को साथ लाना होगा. कांग्रेस खुद को राष्ट्रीय पार्टी मानती है. कई राजनीतिक जानकार इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि केंद्र से बीजेपी को हटाने के मकसद से विपक्ष को एकजुट करना ही ममता के लिए बहुत बड़ी चुनौती है.
क्या ममता का बयान पैदा कर सकता है परेशानी
ममता पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय बीजेपी के नेताओं को बाहरी नेता बताती आई हैं. लेकिन अब 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान ममता अलग-अलग राज्यों में चुनाव लड़ने वाली हैं. ऐसे में उनका बाहरी नेता वाला बयान खुद उनके लिए परेशानी खड़ा कर सकता है.
कई मौकों पर प्रधानमंत्री की कुर्सी से चूकें हैं बंगाली नेता
अतीत में बंगाली नेता कई मौकों पर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पाने से चूक गए हैं. ज्योति बसु इसका एक बेहतरीन उदाहरण हैं. बसु 1996 में केंद्र-वाम संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री बनने के करीब पहुंचे, लेकिन उनकी पार्टी, सीपीआई (एम) ने उन्हें अनुमति नहीं दी. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में और 1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद और फिर 2004 में जब सोनिया गांधी ने प्रणब मुखर्जी को पीएम पद की कुर्सी की संभावनाएं दीं लेकिन पीएम की कुर्सी मनमोहन सिंह को मिली.
पीएम बनने के लिए ममता एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं. उनकी इसी प्रवृत्ति ने लोगों को उन्हें मोदी के प्रबल दावेदार के रूप में देखने पर मजबूर कर दिया है. बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, यह न केवल ममता को राज्य से बांधे रखने की पार्टी की रणनीति का एक हिस्सा है, बल्कि उनके दावे को विपक्ष के प्रमुख चेहरे के पद पर बनाने की चाल भी है. बीजेपी के सूत्र ये भी मानते हैं कि ममता अगर अपना दावा कायम रखती हैं तो 2024 में विपक्ष की एकजुटता पर असर पड़ना तय है.