राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर संरक्षण देने की मांग पर जल्द सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी को आश्वासन दिया है कि मामला 9 मार्च को सुनवाई के लिए लगाया जाएगा. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के शासनकाल में शुरू की गई सेतु समुद्रम परियोजना के तहत जहाजों के लिए रास्ता बनाने के लिए राम सेतु को तोड़ा जाना था. बाद में कोर्ट के दखल के बाद यह कार्रवाई रुक गई थी. तब से राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई लंबित है.


2014 में एनडीए सरकार ने सत्ता संभालने के बाद सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि राष्ट्रीय हित में यह तय किया गया है कि राम सेतु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. सरकार सेतु समुद्रम परियोजना के लिए वैकल्पिक रास्ता तलाश रही है. हालांकि, राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देकर उसे भविष्य के लिए भी संरक्षित रखने पर सरकार ने अभी तक रुख स्पष्ट नहीं किया है.


2017 से लेकर अब तक स्वामी कई बार अपनी याचिका पर सुनवाई के अनुरोध कर चुके हैं. कोर्ट ने 13 नवंबर 2019 को केंद्र को मामले पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था. पिछले साल अप्रैल में तत्कालीन चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने कहा था कि उनका कार्यकाल पूरा होने वाला है। इसे अगले चीफ जस्टिस एन वी रमना के सामने उचित निर्देश के लिए लगाया जाए.


बीजेपी के राज्यसभा सांसद स्वामी ने आज मामला चीफ जस्टिस रमना, जस्टिस ए एस बोपन्ना और हिमा कोहली की बेंच में रखा. उन्होंने अनुरोध किया कि मामले को जल्द सुना जाए. कोर्ट यह निर्देश भी दे कि अंतिम मौके पर इसे सुनवाई की लिस्ट से न हटा दिया जाए. इस पर चीफ जस्टिस ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि उनकी याचिका और इससे जुड़ी सभी याचिकाओं को 9 मार्च को सुना जाएगा.


क्या है राम सेतु?


तमिलनाडु के रामेश्वरम और श्रीलंका के मन्नार के बीच आपस में जुड़ी लाइमस्टोन की एक श्रृंखला है. भूगर्भशास्त्री मानते हैं कि पहले यह श्रृंखला समुद्र से पूरी तरह ऊपर थी. इससे श्रीलंका तक चल कर जाया जा सकता था. हिंदू धर्म में इसे भगवान राम की सेना द्वारा बनाया गया सेतु माना जाता है. दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इसके मानव निर्मित होने की मान्यता है. वहां इसे एडम्स ब्रिज कहा जाता है.