नई दिल्ली: सुदर्शन टीवी के UPSC जिहाद कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज भी अधूरी रही. चैनल ने अपने कार्यक्रम में ज़्यादा बदलाव करने में असमर्थता जताई. जजों ने इस पर हल्की निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि वह कार्यक्रम की प्रस्तुति के तरीके पर अपनी तरफ से कोई आदेश नहीं देना चाहते.


क्या है मामला


सिविल सर्विस में पहले की तुलना में ज्यादा मुसलमानों के आने को एक साजिश का हिस्सा बताने वाले इस कार्यक्रम का प्रसारण 4 एपिसोड के बाद रोक दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने पिछ्ली सुनवाई में कहा था कि किसी विदेशी संस्था की तरफ से यूपीएससी की तैयारी में मदद पर कार्यक्रम दिखाना अलग बात है, लेकिन कार्यक्रम में अब तक जैसी भाषा और प्रस्तुति रखी गई है, उसमें कई बातें आपत्तिजनक हैं.


दूसरे चैनल का हवाला देने पर फटकार


इसके जवाब में दाखिल हलफनामे में चैनल ने कहा कि वह प्रोग्राम कोड और सूचना-प्रसारण मंत्रालय के निर्देशों का पालन करेगा. साथ ही हिंदुओं से जुड़े मामलों में दूसरे चैनल की आपत्तिजनक प्रस्तुति की भी बात कही. हलफनामे में NDTV के कुछ कार्यक्रमों का हवाला दिया और कहा कि कथित हिन्दू आतंकवाद पर कार्यक्रम में उस चैनल ने चिलम पीते तिलकधारी साधु का ग्राफिक्स लगाया. शिव जी के पवित्र प्रतीक त्रिशूल को दिखाया.


आज सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सुदर्शन को अपने हलफनामे में NDTV का हवाला देने के लिए आड़े हाथों लिया. कहा- आपसे पूछा गया था कि आप अपने कार्यक्रम में किस तरह का बदलाव करेंगे. जवाब में यह लिखना ज़रूरी नहीं था.


कोर्ट का कार्यक्रम देखने से इनकार


कोर्ट ने सुदर्शन के वकील विष्णु जैन से सवाल किया क्या आपने पहले 4 एपिसोड में प्रोग्राम कोड का पालन किया? क्या आगे भी कार्यक्रम की प्रस्तुति इसी तरह की रहेगी. वकील का जवाब था कि चैनल ने नियमों का पालन किया है. हम आगे भी नौकरशाही में कब्जे की विदेशी साज़िश का पर्दाफाश करेंगे.


इस पर बेंच के अध्यक्ष जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “हमें जवाब मिल गया. अब दूसरे वकीलों को सुनने दीजिए." वकील ने कोर्ट से अब तक प्रसारित सभी एपिसोड देखने के लिए कहा. जज का जवाब था, "अगर 700 पन्नों की किताब के खिलाफ याचिका हो तो कहीं भी वकील यह दलील नहीं देते कि जज पूरे 700 पन्ने पढ़ें."


कार्यक्रम पर स्थायी रोक की मांग


जामिया के 3 छात्रों के वकील शादान फरासत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 साल पहले एक फैसले में कहा था कि हेट स्पीच को लेकर नियम बनने चाहिए. लेकिन सरकार ने यह उम्मीद अब तक पूरी नहीं की. सुदर्शन के इस कार्यक्रम में मुसलमानों को यूपीएससी में घुसपैठिया बताया जा रहा है. उनके ब्यूरोक्रेट बनने को हिंदुस्तान पर कब्जे पर साज़िश बताया जा रहा है. ओवैसी और दूसरे लोगों को नमकहराम, गद्दार कहा जा रहा है.


मुस्लिम नेताओं के भड़काऊ भाषण पर सवाल


बेंच की सदस्य जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने फरासत को रोकते हुए कहा, "अकबरुद्दीन ओवैसी, इमरान प्रतापगढ़ी के भाषण भी आपत्तिजनक थे. क्या उन्हें सही ठहराया जा सकता है?" वकील ने जवाब दिया कि उनके बयान के कुछ हिस्से आक्रामक लग सकते हैं. लेकिन संदेश में गलती नहीं थी. इस पर जस्टिस मल्होत्रा ने कहा, "ऐसा तो सुदर्शन के वकील भी कह चुके हैं कि कार्यक्रम एक समुदाय के खिलाफ नहीं. विदेशी साज़िश के खिलाफ है."


अफ्रीकी देश का हवाला


बेंच के अध्यक्ष जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर किसी को कार्यक्रम पसंद नहीं आ रहा तो वो उसके बदले उपन्यास पढ़ सकता है. अगर कार्यक्रम ज़कात फॉउंडेशन के खिलाफ है, तो हम अपना समय बर्बाद नहीं करेंगे. फाउंडेशन अपनी मानहानि के लिए सिविल केस करे.


वकील ने इसका जवाब देते हुए कहा कि कार्यक्रम में मुसलमानों के किसी भी काम में जाने को घुसपैठ बताया गया है. कहा गया है कि कर्नल पुरोहित को इसलिए फंसाया गया क्योंकि मुसलमान सिस्टम में घुसपैठ कर गए हैं. लोगों को मुसलमानों के खिलाफ लगातार भड़काया जा रहा है. कहा जा रहा है कि आस्तीन के सांपों को ब्यूरोक्रेसी में नहीं आने देंगे. भीम-मीम भाईचारे के नारे को भी धोखा और दूर रहने लायक बताया गया. यानी भाईचारा भी गलत बताया जा रहा है.


फरासत ने 1994 में रवांडा में हुतु अतिवादियों की संस्था अकाजु की तरफ से वहां के बहुसंख्यक वर्ग को भड़काने का हवाला दिया. बताया कि रवांडा में बहुसंख्यकों को कहा गया कि दूसरा वर्ग तुम्हें निशाना बनाना चाहता है. आखिर इसका परिणाम वीभत्स नरसंहार के रूप में हुआ.


मौलिक अधिकारों की दलील


बेंच के सदस्य जस्टिस के एम जोसफ ने कहा कि केबल टीवी रेग्युलेशन एक्ट की धारा 19 और 20 सरकार को आपत्तिजनक कार्यक्रम के प्रसारण पर पाबंदी लगाने का अधिकार देती है. जज ने कहा कि अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो कोर्ट दखल दे सकता है.


वकील ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि यहां सवाल सिर्फ आर्टिकल 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का नहीं है. आर्टिकल 14 (समानता) और 21 (सम्मान से जीवन के अधिकार) को भी ध्यान में रखना है. सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों का संरक्षक है. उसे इस कार्यक्रम पर स्थायी रोक लगा देनी चाहिए.


सुनवाई बुधवार तक टली
कोर्ट ने कहा कि सॉलिसीटर जनरल को बताना चाहिए कि क्या सरकार ने 4 एपिसोड को देखा? उन्हें नियमों के खिलाफ पाया? हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि वह हर मामले में प्रोग्राम कोड का पालन सुनिश्चित करवाने का काम नहीं कर सकता. उसके ऊपर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की भी ज़िम्मेदारी है. उसे यह देखना होगा कि क्या कार्यक्रम में जो बातें कही गई हैं, वह पत्रकारीय स्वतंत्रता के दायरे में आती हैं. इस मामले में यह देखना भी ज़रूरी है कि कार्यक्रम एक समुदाय के खिलाफ लोगों को भड़काने वाला तो नहीं है.


मामले की सुनवाई बुधवार दोपहर 2 बजे जारी रहेगी. कोर्ट ने कहा है कि वह मामले से जुड़े पक्षों के अलावा सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता को उस दिन विस्तार से सुनना चाहेगा. यह भी जानना चाहेगा कि मीडिया की सामग्री पर नियंत्रण को लेकर उनके क्या विचार हैं.


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