पढ़ाई के दम पर गौतमबुद्ध नगर जिले के छोटे से गांव डेयरी स्कैनर से अमेरिका पहुंची थीं सुदीक्षा
देश का नाम रोशन करने वाली सुदीक्षा की 19 साल की उम्र में मौत हो गई. स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका में पढ़ने वाली सुदीक्षा को कुछ मंचलों ने छेड़ा, जिस कारण सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई.
नई दिल्ली: सुदीक्षा भाटी ने न केवल दादरी के डेयरी स्कैनर गांव का बल्कि उत्तर-प्रदेश और भारत का नाम भी रोशन किया. सुदीक्षा महज 19 साल की थीं, लेकिन इतनी छोटी सी उम्र में सुदीक्षा गरीब बच्चों की पढ़ाई को लेकर काम शुरू कर चुकी थीं. उसने इसके लिए अमेरिका की कुछ एनजीओ से बात भी की थी.
सुदीक्षा ने "उभरती" नाम से एनजीओ शुरू करने की तैयारी भी पूरी कर ली थी. इसके लिए उसने अपने गांव में ही अपने बहन भाइयों व उन लोगों से, जिनसे उसने शिक्षा में मदद ली थी, उनसे बात करके एक टीम भी बनाई थी. सुदीक्षा का सपना था कि वह इस एनजीओ के माध्यम से गांव के तमाम बच्चों को खासतौर से गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवा सकें. जिसमें बच्चों से खींच के नाम पर एक पैसा भी ना लिया जाए जबकि जो उसमें शिक्षक पढ़ाएंगे उनकी पूरी पगार भी दी जाए. इसी के लिए सुदीक्षा ने अमेरिका की कुछ एनजीओ से बात भी की थी.
बचपन से ही पढ़ाई के लिए लालायित रहती थीं सुदीक्षा सुदीक्षा के पिता जितेंद्र भाटी बताते हैं कि सुदीक्षा भाई बहनों में सबसे बड़ी थी. उसकी पढ़ाई में शुरू से ही रुचि थी. यह ललक उसके अंदर बचपन से ही देखने को मिली थी. यही वजह भी है कि जो हम छोटे से गांव में रहने के बावजूद आर्थिक तौर पर कमजोर होने के बावजूद उसको पढ़ाई में आगे बढ़ाते रहें. सुदीक्षा खुद ही पढ़ाई के लिए किताब उठाती थी. उसको कोई भी चीज एक बार बता दी जाए तो वह उसे समझ जाती थी और याद कर लेती थी.
हमारे परिवार में कोई भी इतना पढ़ा लिखा नहीं है, उसके बावजूद भी सुदीक्षा ने अपनी मेहनत लगन और होनहार की वजह से सबसे पहले तो विद्या ज्ञान स्कूल में दाखिला लिया और फिर अमेरिका में उसे दाखिला मिला. वह भी स्कॉलरशिप के साथ.
सुदीक्षा की शिक्षा का सफर
सुदीक्षा के रिश्ते में लगने वाले चाचा सुमित बताते हैं कि सुदीक्षा बचपन से ही मेधावी छात्रा थी. वह सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई की बात करती थी. सबसे अलग बात उसकी यह थी कि वह खुद आकर पढ़ने की बात कहती थी. खुद कहती थी कि मुझे इस बारे में पढ़ा दीजिए, इस विषय में बता दीजिए. सुदीक्षा ने अपनी पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई गांव के ही प्राथमिक स्कूल से की है.
इसके बाद उसे विद्या ज्ञान स्कूल का पता चला कि अगर उसे स्कूल में दाखिला चाहिए तो आपको मेहनत करनी होगी. क्योंकि एंट्रेंस एग्जाम पास करने के बाद ही उस स्कूल में दाखिला मिलता है. यह मालूम होने के बाद सुदीक्षा तैयारियों में जुट गई. वह मेरे पास भी पढ़ने के लिए आती थी और एंट्रेंस कैसे पास करना है हमेशा इसी विषय पर बात करती थी.
अपनी मेहनत लगन और होनहार की बदौलत सुदीक्षा ने विद्याज्ञान स्कूल में दाखिला पा लिया. वह अपने स्कूल में भी सबसे होशियार थी. उसने वर्ष 2018 में 12वीं कक्षा में 500 में से 498 अंक हासिल करते हुए टॉप किया था. जिसकी वजह से पूरे बुलंदशहर में और गांव में उसका नाम हुआ था. उसके बाद ही उसे अमेरिका की यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप भी मिली और वह अमेरिका चली गई. अमेरिका जाने के बाद भी वह व्हाट्सएप के माध्यम से हमारे संपर्क में रहती थी और हमेशा पढ़ाई के लिए ही बात करती रहती थी. उसने न केवल अपने छोटे भाई बहनों बल्कि गांव के अन्य बच्चों को भी पढ़ाई की ओर अग्रसर करने का काम किया. इस छोटी उम्र में वह इस तरह की बात करती थी जैसे कोई बहुत समझदार व्यक्ति, कोई बहुत अनुभवी व्यक्ति बात करता है.
सुमित बताते हैं कि वह अभी जब अमेरिका से भारत लौटी थी तो उसने मुझे बताया कि वह एक ऐसी संस्थान शुरू करना चाहती है, जिससे जो भी गरीब बच्चे हैं उनकी शिक्षा में किसी प्रकार की कोई अड़चन न आए. साथ ही उन्हें शिक्षा हासिल करने में मदद उपलब्ध हो सके. अभी हाल ही में 1 अगस्त को ही उसने व्हाट्सएप पर एक ग्रुप तैयार किया था, जिसमें गांव के कई बच्चों को जोड़ा था.
वह ग्रुप इंग्लिश स्पीकिंग सिखाने के लिए बनाया था. सुदीक्षा का कहना था कि सबसे बड़ी समस्या जो हमारे क्षेत्र के बच्चों को आती है, वह कम्युनिकेशन स्किल की होती है, क्योंकि हमारे यहां के बच्चे बेशक पढ़ाई में अच्छे हो लेकिन जब इंग्लिश बोलने की बात आती है तो उनके अंदर डर बैठ जाता है. उसी डर और झिझक को दूर करना सबसे जरूरी है.
वह सभी बच्चों को, अपने सभी छोटे भाई बहनों को यही कहती थी कि आप इंग्लिश बोलने पर काम कीजिए और इंग्लिश स्पीकिंग कीजिए और इसी वजह से उसने यह ग्रुप बनाया था. जिसमें उसने अपनी एक सहेली को भी जोड़ा था दोनों मिलकर सभी बच्चों को इंग्लिश स्पीकिंग काम सिखा रहे थे.
50 साल की उम्र में खोलना चाहती थीं एक शिक्षण संस्थान, जिसमें गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सके
सुदीक्षा के पिता जितेंद्र भाटी बताते हैं कि लगभग 10 से 15 दिन पहले वह मथुरा जा रहे थे. सुदीक्षा भी उनके साथ थी. रास्ते में उसे हरियाली दिखी और एक बहुत बड़ा आश्रम सा नजर आया. उसने कहा कि पापा मैंने सोचा हुआ है कि 30 साल की उम्र तक मुझे पढ़ाई करनी है और अगले 20 साल मुझे अपने काम की बदौलत अच्छे खासे पैसे कमाने हैं. और 50 साल की उम्र पर मुझे एक ऐसी संस्थान शुरू करनी है जो आश्रम की तरह बड़ा हो. हरियाली वाला हो और उसमें जरूरतमंद बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाई जा सके. उसने सभी चीज सोच रखी थी, लेकिन अब सब खत्म हो गया है. हमारी बेटी अब नहीं रही है.
दीदी पढ़ाई के लिए कहती थीं
सुदीक्षा की बहन स्वाति का कहना है की दीदी सबसे ज्यादा जोर पढ़ाई पर देती थी. उन्होंने मुझे कहा था कि तू पढ़ाई पर फोकस कर और इंग्लिश स्पीकिंग पर फोकस कर. जब तू अच्छे मार्क्स लेकर आएगी तो तुझे आगे अच्छे कॉलेज में दाखिला मिलेगा. वह मुझे कहती थी कि या तो दिल्ली यूनिवर्सिटी में या फिर राजस्थान की एक यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेना. वहां पर अच्छी सुविधा और अच्छी पढ़ाई हैं. दीदी ने मुझे भी इंग्लिश स्पीकिंग पर जोर देने के लिए कहा था. उन्होंने जो ग्रुप बनाया था उसके लिए मुझे भी जोड़ने वाली थी. उन्होंने कहा था लेकिन उससे पहले तू अच्छी तरह से तैयारी कर. वह गांव में उभरती नाम से एक संस्था भी खोलने जा रही थी. उसका काम भी काफी हो चुका था लेकिन कोरोना की वजह से काम रुक गया. उस एनजीओ का मकसद गांव के बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाना है.
सुदीक्षा की मौत की कहानी
सुदीक्षा न केवल अपने परिवार का बल्कि पूरे गांव का सितारा थी, जिसने न केवल पूरे समाज का बल्कि गांव, प्रदेश और देश का नाम रोशन किया था. सुदीक्षा के पिता जितेंद्र भाटी का कहना है कि सोमवार सुबह वह अपने चाचा के साथ अपने चचेरे भाई के स्कूल टीसी लेने के लिए जा रही थी. उसे 20 अगस्त को अमेरिका वापस लौटना था.
इसलिए वह चाहती थी कि अपने सामने ही अपने भाई का दाखिला दूसरे स्कूल में करवा दें. सुबह लगभग 9:30 से 10 बजे के आसपास मेरे पास फोन आया तो मुझे पता चला कि उनका एक्सीडेंट हो गया है. उससे पहले मैं सुदीक्षा के फोन पर फोन मिला रहा था. उसने फोन नहीं उठाया. फिर किसी और व्यक्ति ने उसका फोन रिसीव किया और मुझे बताया कि लड़की का तो एक्सीडेंट हो गया है और उसकी बचने की उम्मीद भी बहुत कम है.
हम लोग फटाफट सिकंदराबाद से आगे औरंगाबाद पहुंचे जहां पर एक्सीडेंट हुआ था. मेरे छोटे भाई सत्येंद्र जो सुदीक्षा का चाचा है ने बताया कि उनके पीछे बुलेट पर सवार दो लड़के आ रहे थे. और लगातार उनकी बाइक का पीछा कर रहे थे. कभी दाएं कभी बाएं से उनकी बाइक के पास आ रहे थे. स्टंट करते और सुदीक्षा को परेशान कर रहे थे.
हम लोग बाइक आगे बढ़ाए जा रहे थे. बाइक की स्पीड तेज भी नहीं थी जब हम लोग नहीं रुके तो उन लड़कों ने अचानक से हमारी बाइक के आगे अपनी बाइक रोक दी. जब ब्रेक लगाए तो बाइक एक तरफ गिर गई. सुदीक्षा का सिर पीछे जमीन पर लगा और उसके गंभीर चोट आई. जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई. हमारा कहना है कि सुदीक्षा की मौत एक सड़क दुर्घटना नहीं है. यह एक हत्या है, जो उन मनचलों की वजह से हुई है. जो राह चलते हमारी बेटी को परेशान कर रहे थे. इसी डर की वजह से हमारे क्षेत्र के लोग अपनी बेटियों को गांव से बाहर पढ़ाई के लिए नहीं भेजते हैं. मेरे अंदर भी यह डर था. मेरी बेटी के अंदर भी डर बैठा था.
अगर मैं अपनी बेटी के साथ होता तो ऐसा नहीं होता क्योंकि मैं उन लोगों से मुकाबला करता. मैं उसे कभी अकेला नहीं भेजता. उसके चाचा के साथ भी नहीं. कल अकेली गई और हमारे बीच में नहीं है. इसके अलावा पुलिस भी इस मामले में गोलमोल कर रही है. इसे सिंपल सड़क दुर्घटना का मामला बता रही है, लेकिन वे युवक इस तरीके से परेशान नहीं करते तो हादसा नहीं होता. इसलिए यह मामला हत्या का है. मेरी बेटी तो गई लेकिन मैं चाहता हूं कि किसी और के साथ ऐसा न हो.
आज का घटनाक्रम
मीडिया में मामला उछलने के बाद लगभग 12:30 से 1 बजे के बीच गौतम बुद्ध नगर जिला पुलिस के अधिकारी पहुंचे क्योंकि सुदीक्षा इसी जिले की निवासी थी. साथ ही बुलंदशहर जिले के एक इंस्पेक्टर भी आये. उन्होंने परिवार से बात की. लगभग 2 बजे बुलंदशहर जिला पुलिस के 2 सीओ व अन्य पुलिस कर्मी भी आये, जिन्होंने सुदीक्षा के परिजनों से बात की और उनकी लिखित शिकायत भी ली.
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