नई दिल्ली: दुनिया के कारोबार की रीढ़ समझी जाने वाली मिस्र की स्वेज़ नहर में फंसे मालवाहक कार्गो जहाज के आज सुरक्षित चलने के बाद भारत समेत एशिया और यूरोप के कई देशों ने चैन की सांस ली है. इस विशालकाय जहाज के फंसने का असर भारतीय व्यापार पर भी पड़ रहा था. सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए कार्य योजना भी बना ली थी. दूसरे देशों से आयात-निर्यात में लगे भारतीय मालवाहक जहाजों को स्वेज नहर के जाम से बचने के लिए केप ऑफ गुड होप (Cape of Good Hope) से जाने की सलाह दी गई थी, जो बेहद लंबा समुद्री मार्ग है.
ऐसी आशंका जताई जा रही थी कि अगर यह जहाज कुछ दिन और यों ही फंसा रहता, तो कई मुल्कों की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने का खतरा बन गया था. भारत को भी भारी आर्थिक नुकसान होने की आंशका थी. एशिया व यूरोप के बीच चलने वाले 'एवरग्रीन' नाम के विशाल जहाज के लगातार छह दिन तक समुद्र में फंसने का कुछ असर तो अब भी होगा ही क्योंकि कई देशों के बन्दरगाहों पर जरूरत का सामान पिछले हफ्ते भर से नहीं पहुंच पाया है और इसमें अभी और वक़्त लगेगा, जिससे महंगाई बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है.
इस जहाज के फंसने से समुद्र के बड़े हिस्से में ट्रैफिक जाम का वैसा ही नज़ारा बन गया था, जो आमतौर पर हमें महानगरों की सड़कों पर देखने को मिलता है. इस जाम में करीब 150 जहाज फंसे हुए थे, जिनमें 13 मिलियन बैरल कच्चे तेल से लदे लगभग 10 क्रूड टैंकर भी शामिल थे. इसके चलते कई देशों में पेट्रोलियम पदार्थों की डिलिवरी में देरी हो रही थी. कार्गो के फंसने के बाद से कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया था और इससे हर घंटे करीब 400 मिलियन डॉलर का नुकसान हो रहा था.
उल्लेखनीय है कि विश्व व्यापार की रीढ़ के रूप में मशहूर स्वेज़ नहर दुनिया की मुख्य समुद्री क्रॉसिंग में से एक है. इससे दुनिया के कुल कारोबार का 12 फ़ीसदी माल गुज़रता है. ऐसे में चीन से नीदरलैंड जा रहा यह मालवाहक जहाज़ धूल भरी तेज आंधी के बाद मंगलवार की सुबह नहर में फंस गया और उसने बाकी जहाजों के रास्ते को रोक दिया.
बता दें कि स्वेज़ नहर पूरब और पश्चिम को एकजुट करने की महत्वपूर्ण कड़ी है और यह 193 किलोमीटर लंबी है जो कि भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है. यह एशिया और यूरोप के बीच सबसे छोटा समुद्री लिंक है. इस नहर में तीन प्राकृतिक झीलें भी शामिल हैं. 1869 से सक्रिय इस नहर का महत्व इसलिए है कि दुनिया के पूर्वी और पश्चिमी भाग को आने-जाने वाले जहाज़ इसके पहले अफ्रीका के दक्षिणी सिरे पर मौज़ूद केप ऑफ गुड होप होकर जाते थे. लेकिन इस जलमार्ग के बन जाने के बाद पश्चिमी एशिया के इस हिस्से से होकर यूरोप और एशिया के जहाज़ जाने लगे. खास बात यह भी है कि इस नहर के बनने के बाद एशिया और यूरोप को जोड़ने वाले जहाज़ को नौ हजार किलोमीटर की दूरी कम तय करनी पड़ती है, जो कुल दूरी का 43 फ़ीसदी हिस्सा है.
एक अनुमान के अनुसार स्वेज़ नहर से क़रीब 19 हजार जहाज़ों से हर साल 120 करोड़ टन माल की ढुलाई होती है. इस नहर से हर दिन 9.5 अरब डॉलर मूल्य के मालवाहक जहाज़ गुजरते हैं. इनमें से लगभग पांच अरब डॉलर के जहाज़ पश्चिम को और 4.5 अरब डॉलर पूरब को जाते हैं. जानकारों का कहना है कि यह चैनल दुनिया में माल की सप्लाई के लिए काफ़ी ज़रूरी है. इसलिए इसके अवरुद्ध होने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
ये पहली बार नहीं है जब स्वेज़ नहर का रास्ता कारोबार के लिए बंद हुआ है. जून, 1967 में मिस्र, सीरिया और जॉर्डन की इसराइल से लड़ाई चल रही थी और दोनों धड़ों की गोलाबारी के बीच 15 व्यापारिक जहाज स्वेज़ नहर के रास्ते में फंस गए. इतिहास की किताबों में उस जंग का जिक्र 'सिक्स डे वॉर' के नाम से होता है. इतिहास गवाह है कि वो जंग केवल छह दिनों तक चली थी. तब स्वेज़ नहर का रास्ता बंद कर दिया गया था. नहर में फंसे 15 जहाजों में एक डूब गया और बाक़ी 14 जहाज आने वाले आठ सालों के लिए एक तरह से वहीं कैद होकर रह गए.