J&K: जम्मू-कश्मीर के लोगों में बढ़ी आत्महत्या की प्रवृत्ति, क्या है इसके पीछे की वजह? जानें
जम्मू-कश्मीर घाटी में लोगों में आत्महत्याओं का चलन बढ़ रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1990 से जब से जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा मिला तब से सात हजार से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की हैं. एक्सपर्ट की राय में यह चिंता का विषय है.
1990 से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के कारण जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा मिला. राज्य में आतंकवाद को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान ने हजारों कश्मीरी युवाओं को अपने जाल में फंसाया और उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया. पिछले 30 साल से भारत इस आतंकवाद के घाव को झेल रहा है. कश्मीरी युवाओं का एक धड़ा आज भी पाक प्रायोजित झांसे में फंसा हुआ है और उन्हें बरगलाया जा रहा है.
सुरक्षाबल भी मुस्तैदी से इन आतंकी गतिविधियों को नाकाम करने में जुटे हुए हैं और सैकड़ों आतंकवादी मारे गए हैं. वहीं सैकड़ों को छोटी सी जगह पर छुपकर रहने पर मजबूर कर दिया गया है, उन्हें भागने का रास्ता नहीं मिल रहा. लेकिन पिछले 30 साल से लगातार इन गतिविधियों के कारण जम्मू-कश्मीर के लोगों में अवसाद बढ़ा है और इस कारण वहां आत्महत्याएं भी बढ़ी है. प्रशासन के लिए हालिया आत्महत्या के मामले चिंता का विषय बन गए हैं.
एक महीने में 13 महिलाओं ने की आत्महत्या
गुरुवार को श्रीनगर के दो युवा तोहा मोइउद्दीन और तहजीव अकबर ने एक साथ अपने-अपने घरों में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. इससे एक दिन पहले गांदरबल जिले के कमरवाली चतरवल इलाके में झेलम नदी पर बने पुल से कूदकर 56 साल की एक महिला ने अपनी जान दे दी. पिछले एक महीने में किसी महिला द्वारा आत्महत्या कर लेने का यह 13वां मामला था. यानी पिछले एक महीने में 13 महिलाओं ने आत्महत्या कर ली. हालांकि आधे से ज्यादा मामलों में आत्महत्या का प्रयास कर रहे लोगों को बचा लिया जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि नदी में कूदकर जान देने वालों की कोशिश करने वालों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है. क्योंकि कई मामलों में सेना द्वारा रेस्क्यू ऑपरेशन भी चलाया जाता है. इस तरह देखें तो घाटी की स्थिति बहुत खराब है. घाटी में बढ़े रहे आत्महत्या के मामले से एक्सपर्ट चिंतित हैं और इसे खतरे की घंटी मान रहे हैं.
1.8 प्रतिशत आबादी आत्महत्या के मुहाने पर
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1990 से लेकर अब तक पूर्व के जम्मू-कश्मीर में सात हजार से ज्यादा लोगों ने आत्महत्याएं की हैं. 1990 के बाद राज्य में ज्यादातर जगहों पर लोगों ने अलगाववादियों द्वारा किए गए कई हिंसक गतिविधियों को देखा है. फ्रांस स्थिति अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार से संबंधित मेडिकल गैर-सरकारी संस्था मेडिसीन सेंस फ्रंटियर (MSF) द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक कश्मीर के 45 प्रतिशत लोग गंभीर मनोवैज्ञानिक अवसाद में जी रहे हैं. एक अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्था एक्शन एड की रिसर्च में कहा गया है कि कश्मीर घाटी के 1.8 प्रतिशत आबादी सक्रिय रूप से आत्महत्या के मुहाने पर खड़ी है. एक्सपर्ट बताते हैं कि इस प्रवृति में बढ़ोतरी की मुख्य वजह राज्य में चारों ओर फैली हिंसा है. लगातार झेल रही हिंसा के बाद पिछले एक साल से कोविड महामारी ने इस प्रवृति को बढ़ाने में आग में घी डालने का काम किया है.
कोविड ने अवसाद को और बढ़ाया
एक्सपर्ट की मानें तो कोविड ने लोगों की आर्थिक स्थिति को तंगहाल कर दिया जिससे लोगों की भावनाओं को गहरा धक्का लग रहा है और वे अवसाद में जाने लगे हैं. घाटी के प्रमुख बाल रोग चिकित्सक डॉ अब्दुल वाहिद ने बताया कि कोविड के बाद आर्थिक परेशानी बढ़ गई. सोशल आइसोलेशन के कारण एक-दूसरे से संपर्क कम हो गया और सबसे ज्यादा भविष्य की चिंता होने लगी है. इन कारणों से घाटी में आत्महत्या करने की प्रवृति बढ़ गई है.
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