हिमाचल में कांग्रेस सरकार गठन के 10 दिन का समय बीत चुका है, लेकिन अब तक कैबिनेट का गठन नहीं हो पाया है. इसी बीच मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं. माना जा रहा है कि कैबिनेट का गठन अब अगले साल ही होगा.
राहुल गांधी के करीबी सुक्खू को सीएम की कुर्सी तो मिल गई, लेकिन उनके लिए सरकार चलाना आसान नहीं हैं. जनता के वादे पूरे करने से लेकर पार्टी में गुटबाजी रोकने तक का काम उनको करना है. इसके अलावा, 2024 तक हिमाचल को मॉडल स्टेट बनाने की भी बड़ी चुनौती है, जिसके बूते कांग्रेस देश के अन्य राज्यों में वोट मांग सके.
सुक्खू के लिए सरकार चलाना आसान नहीं... 5 वजहें
1. विधायकों को बागी होने से बचाना- हिमाचल में बीजेपी काफी करीबी मुकाबले में चुनाव हारी है. 68 सीटों वाली हिमाचल विधानसभा में बहुमत के लिए 35 सीटों की जरूरत है. कांग्रेस ने चुनाव में 40 सीटें जीतकर सरकार बनाई है.
ऐसे में सुक्खू के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने विधायकों को बचाकर रखने की है. कर्नाटक और एमपी में सरकार बनाने के बावजूद कांग्रेस विधायकों को जोड़कर नहीं रख पाई थी, जिस वजह से वहां सरकार गिर गई.
2. गुटबाजी पर कंट्रोल करना- छोटे राज्य होने की वजह से हिमाचल कांग्रेस में जिले स्तर पर सबसे अधिक गुटबाजी है. इसका असर चुनाव में भी दिखा. भले कांग्रेस चुनाव जीत गई, लेकिन मंडी समेत कई जिलों में पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका. ऐसे में कांग्रेस में जिला स्तर पर गुटबाजी कंट्रोल करना बड़ी चुनौती है.
इसके अलावा, सीएम सुक्खू को प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह, कौल सिंह ठाकुर, आनंद शर्मा जैसे दिग्गज नेताओं को भी साधना होगा.
3. कैबिनेट विस्तार और विभागों का बंटवारा- सीएम सुक्खू के कोरोना पॉजिटिव हो जाने की वजह से कैबिनेट विस्तार फिलहाल टल गया है. हालांकि, मंत्रिमंडल में जगह पाने के लिए कई नेता दिल्ली में अभी भी डेरा डाले हुए हैं.
सरकार बनाने के बाद पहले कैबिनेट विस्तार और फिर मंत्रियों के विभाग बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती है. प्रतिभा सिंह गुट कैबिनेट में अपने करीबियों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में शामिल कराने पर अड़ गई हैं. ऐसे में सुक्खू के सामने उन्हें साधना भी आसान नहीं है.
4. हॉली लॉज के वर्चस्व को तोड़ना- कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे वीरभद्र सिंह के समय से ही उनका सरकारी आवास हॉली लॉज सत्ता का केंद्र रहा है. अभी उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह प्रदेश अध्यक्ष और सांसद हैं. प्रतिभा के करीब 10 करीबी विधायक जीत कर आए हैं.
ऐसे में हॉली लॉज के वर्चस्व को भी तोड़ना आसान नहीं है. 2024 तक शायद ही प्रतिभा सिंह को कांग्रेस हाईकमान प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हटाएं. ऐसे में उनके साथ मिलकर काम करने की भी चुनौती है.
5. ओपीएस समेत चुनावी वादे पूरा करना- हिमाचल कांग्रेस ने चुनावी मेनिफेस्टो में ओल्ड पेंशन स्कीम, सेब की सरकारी कीमत तय करने समेत कई वादे किए हैं. ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने से केंद्र ने मना कर दिया है. ऐसे में ओपीएस लागू करना आसान नहीं है. सेब की कीमत तय करके GST से मुक्ति दिलाने के लिए भी केंद्र पर ही निर्भर रहना पड़ेगा.
कांग्रेस ने महिलाओं को प्रति महीने 1500 रुपए और 5 लाख युवाओं को नौकरी देने का भी वादा किया है. इन वादाओं को पूरा करना भी एक चुनौती है. राज्य पर अभी करीब 63 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है.
'इंतजार कीजिए, अभी जज करना सही नहीं'
सरकार के कामकाज को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में विधायक विक्रमादित्य सिंह कहते हैं- अभी 10 दिन हुए हैं. सीएम बीमार हैं. ऐसे में सरकार के कामकाज को जज करना सही नहीं हैं. जो भी वादे हमने किए हैं, उसे हर हाल में पूरा किया जाएगा.
मजबूत विपक्ष, आप भी टेंशन बढ़ाएगी
25 सीटों के साथ बीजेपी इस बार विपक्ष में काफी मजबूत है. सुक्खू के गृह जिले हमीरपुर भी बीजेपी का गढ़ माना जाता है. हालांकि, इस चुनाव में गुटबाजी की वजह से पार्टी को काफी नुकसान हुआ.
इधर, आम आदमी पार्टी भी हिमाचल में सक्रिय हो गई है. इस चुनाव में भले ही आप कोई बड़ा चमत्कार नहीं किया है, लेकिन उसका आधार वोट बन गया है. विधानसभा चुनाव में आप ने 1.10% वोट हासिल किया. पार्टी मिशन 2024 में जुट गई है.
पहाड़ी और मैदानी हिमाचल के बीच कॉर्डिनेशन
कांग्रेस ने पहली बार पहाड़ी राज्य हिमाचल में मैदानी भाग से आने वाले सुक्खू को सीएम बनाया है. सुक्खू के सामने पहाड़ी और मैदानी भाग के पॉलिटिक्स को साधने की चुनौती है.
राज्य में लोकसभा की 4 सीटें हैं. इनमें से तीन सीट पहाड़ी हिस्से में और एक सीट मैदानी भाग में हैं. अभी चारों सीट पर बीजेपी जीती है. लोकसभा चुनाव में यहां प्रदर्शन करना भी चुनौती भरा है.