Center Vs Delhi: अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज, किसकी क्या है मांग?
Center Vs Delhi: दिल्ली सरकार ने दलील दी कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कह चुकी है कि भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता रहेगी.
Supreme Court's Verdict On AAP Gov Plea: अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार मांग रही दिल्ली सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ आज (11 मई) फैसला देगी. इस साल 18 जनवरी को बेंच ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था. मामले को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने सुना है. बेंच के बाकी 4 सदस्य हैं- जस्टिस एम आर शाह, कृष्णा मुरारी, हिमा कोहली और पी एस नरसिम्हा.
4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र बनाम दिल्ली विवाद के कई मसलों पर फैसला दिया था लेकिन सर्विसेज यानी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मुद्दों को आगे की सुनवाई के लिए छोड़ दिया था. 14 फरवरी 2019 को इस मसले पर 2 जजों की बेंच ने फैसला दिया था. लेकिन दोनों जजों, जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण का निर्णय अलग-अलग था.
2 जजों के अलग फैसले
जस्टिस सीकरी ने माना था कि दिल्ली सरकार को अपने यहां काम कर रहे अफसरों पर नियंत्रण मिलना चाहिए. हालांकि, उन्होंने भी यही कहा कि जॉइंट सेक्रेट्री या उससे ऊपर के अधिकारियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण रहेगा. उनकी ट्रांसफर-पोस्टिंग उपराज्यपाल करेंगे. उससे नीचे के अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग दिल्ली सरकार कर सकती है. लेकिन जस्टिस भूषण ने यह माना था कि दिल्ली एक केंद्रशासित क्षेत्र है. उसे केंद्र से भेजे गए अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं मिल सकता. ऐसे में ये मसला 3 जजों की बेंच के पास भेज दिया गया था.
दोनों पक्षों की दलील
दिल्ली सरकार ने दलील दी कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कह चुकी है कि भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता रहेगी. दिल्ली का प्रशासन चलाने के लिए आईएएस अधिकारियों पर राज्य सरकार का पूरा नियंत्रण ज़रूरी है.
केंद्र सरकार ने कहा कि गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट (GNCTD Act) में किए गए संशोधन से स्थिति में बदलाव हुआ है. दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है. यहां की सरकार को पूर्ण राज्य की सरकार जैसे अधिकार नहीं दिए जा सकते. केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार राजनीतिक अपरिपक्वता के चलते लगातार विवाद की स्थिति बनाए रखना चाहती है.
केंद्र की मांग
सुनवाई के आखिरी दिन केंद्र सरकार के लिए पेश सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने मामला बड़ी बेंच को भेजने की मांग की. जजों ने सुनवाई के अंत में ऐसी मांग पर हैरानी जताई, लेकिन उन्हें इसका आवेदन दाखिल करने की अनुमति दे दी थी. दिल्ली सरकार के लिए पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी केंद्र की मांग का विरोध किया था.
सॉलीसीटर जनरल ने कहा था कि देश की राजधानी को अराजकता में नहीं झोंका जा सकता. मामला 9 जजों की बेंच के पास भेजने की जरूरत है. मेहता ने 1996 में आए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए यह मांग की थी.
'पूरा मामला 9 जजों की बेंच सुने'
सॉलिसिटर जनरल ने 2018 में आए फैसले को भी गलत बताया. उन्होंने कहा कि इस फैसले में दिल्ली को अलग दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 239AA की गलत व्याख्या की गई है. 1996 में एनडीएमसी बनाम पंजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने कहा था कि दिल्ली का दर्जा केंद्र शासित क्षेत्र का है. इसलिए, पूरा मामला 9 जजों की बेंच के पास भेजा जाना चाहिए.