Supreme Court Judgement: सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में मुकदमे से छूट को लेकर सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने सोमवार (04 मार्च) को साल 1996 में आए फैसले को पलट दिया है. बेंच ने कहा कि विशेषाधिकार के तहत सांसदों और विधायकों को ऐसे मामलों से छूट नहीं दी जा सकती.


लाइव लॉ के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “पीवी नरसिम्हा फैसले के परिणामस्वरूप एक विरोधाभासी स्थिति उत्पन्न होती है, जहां एक विधायक, जो रिश्वत लेता है और उसके अनुसार वोट देता है, उसको सुरक्षित कर दिया जाता है, जबकि एक विधायक, जो रिश्वत लेने के बावजूद स्वतंत्र रूप से वोट देता है, उस पर मुकदमा चलाया जाता है.”


इस मामले में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच सुनवाई कर रही है, जिसमें जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा शामिल हैं. 


क्या कहकर खारिज किया फैसला


सीजेआई ने कहा, “हम सातों लोग सर्वसम्मत नतीजे पर पहुंचे हैं. हम पीवी नरसिम्हा मामले में फैसले से असहमत हैं. पीवी नरसिम्हा मामले के फैसले में विधायक को वोट देने या भाषण देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने से छूट दी जाती है, उसके व्यापक प्रभाव हैं और इसे खारिज कर दिया गया है.”


उन्होंने आगे कहा, “अनुच्छेद 105 या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है क्योंकि रिश्वतखोरी में लिप्ट पाया गया एक सदस्य एक आपराधिक कृत्य में शामिल होता है. जो वोट देने या विधायिका में भाषण देने के कार्य के लिए जरूरी नहीं है. हमारा मानना है कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है. विधायकों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को खत्म कर देती है.”


डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "रिश्वत लेने पर अपराध साफ हो जाता है. ये इस बात पर निर्भर नहीं करता कि वोट या भाषण बाद में दिया गया है या नहीं. अपराध उस समय पूरा हो जाता है जब विधायक रिश्वत लेता है. राज्यसभा चुनाव में वोट देने के लिए रिश्वत लेने वाले विधायक भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत उत्तरदायी हैं."


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