Supreme Court: निखिल चंद्र मोंडल नाम का एक व्यक्ति 13 साल से अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल की सजा काट रहा था. 40 साल से वह बेगुनाही साबित करने के लिए कानून से जूझ रहा था. अब जब वह जेल से रिहा हुआ है तो उसकी उम्र 64 साल है. इस हफ्ते की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए उसकी रिहाई का आदेश दिया कि यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल कन्फेशन सबूत का एक कमजोर टुकड़ा है. 


जस्टिस बीआर गवई और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल कन्फेशन (Extra Judicial Confession) सबूत कमजोर होता है और विशेष रूप से जब इसे परीक्षण के दौरान वापस ले लिया गया हो. इसकी पुष्टि करने के लिए मजबूत सबूत की जरूरत है और यह भी स्थापित किया जाना चाहिए कि यह पूरी तरह से स्वैच्छिक और सच्चा था. पीठ ने कहा कि यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि संदेह कितना भी मजबूत क्यों न हो वह उचित संदेह से परे सबूत का स्थान नहीं ले सकता. 


राज्य सरकार ने दी थी फैसले को चुनौती


दरअसल, इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी पति मोंडल 31 मार्च 1987 को ही रिहा कर दिया था, लेकिन राज्य सरकार इसको लेकर कोलकाता हाई कोर्ट पहुंच गई. यहां मोंडल को 15 दिसंबर 2008 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. इसके बाद हाई कोर्ट के फैसले पर मोंडल ने भी 2010 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जज बीआर गवई और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने 1984 के आदेश का हवाला देते हुए हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. कोर्ट ने आगे कहा कि गवाहों के बयानों में भी विरोधाभास है. 


रेलवे ट्रैक के पास मिला था महिला का शव 


आज से 30 साल पहले 11 मार्च 1983 को केटूग्राम पुलिस स्टेशन में 25 वर्षीय महिला का शव रेलवे ट्रैक पर पाए जाने का मामला दर्ज हुआ था. जांच में पाया गया था कि महिला की हत्या धारदार हथियार से कर उसे रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया था. पुलिस ने कहा था कि उसके पति मोंडल ने तीन ग्रामीणों (माणिक पाल, प्रवत कुमार मिश्रा और कनई साहा) के सामने पत्नी को मारने की बात कबूल ली थी, लेकिन मोंडल ने इससे कोर्ट में इनकार कर दिया था.


ये भी पढ़ें:  


American Airlines: फ्लाइट में फिर सामने आया पेशाबकांड, एक पैसेंजर ने साथी यात्री पर किया टॉयलेट, एयरपोर्ट पर ही हुआ गिरफ्तार