Bilkis Bano Case : बिलकिस बानो मामले की सुनवाई 3 हफ्ते तक टली, रिहा हुए लोगों को भी पक्ष रखने का मिलेगा मौका
Supreme Court On Bilkis Bano Case: गुजरात के बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषियों की रिहाई का मामला लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. आज सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई को तीन हफ्ते के लिए टाल दिया है.
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Bilkis Bano Case Update: बिलकिस बानो (Bilkis Bano ) केस के दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई 3 हफ्ते टल गई है. रिहा हुए 11 लोगों को पक्ष बनाने में याचिकाकर्ताओं की तरफ से की गई देरी के चलते यह सुनवाई टली है. कोर्ट चाहता है कि मामले में वह लोग भी जवाब दाखिल करें. साथ ही, कोर्ट ने गुजरात सरकार से भी याचिका पर 2 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है.
पहले ही जारी हो चुका है नोटिस
15 अगस्त को बिलकिस मामले के दोषियों की रिहाई हुई थी. सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा, रेवती लाल और तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने इस रिहाई से जुड़े गुजरात सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. 25 अगस्त को तत्कालीन चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की बेंच ने इस पर नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने 2 हफ्ते बाद मामले की सुनवाई की बात कही.
याचिकाकर्ता ने की देरी
पिछ्ली सुनवाई में कोर्ट ने यह भी कहा था कि याचिकाकर्ता रिहा हुए दोषियों को भी मामले में पक्ष बनाएं लेकिन, आज दोषियों के वकील ऋषि मल्होत्रा ने जजों को बताया कि याचिकाकर्ताओं ने कल उन्हें पक्ष बनाने का आवेदन दाखिल दिया है. अब तक उन्हें याचिकाओं की कॉपी भी नहीं मिली है कि वह जवाब दाखिल कर सकें. इस स्थिति पर विचार करते हुए जस्टिस अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की बेंच ने सुनवाई 3 हफ्ते के लिए टाल दी.
2002 की है घटना
2002 के गुजरात दंगों के दौरान दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव की बिलकिस अपने परिवार के 16 सदस्यों के साथ भाग कर पास के गांव छापरवाड के खेतों में छिप गई. 3 मार्च 2002 को वहां 20 से अधिक दंगाइयों ने हमला बोल दिया था. 5 महीने की गर्भवती बिलकिस समेत कुछ और महिलाओं का बलात्कार किया. बिलकिस की 3 साल की बेटी समेत 7 लोगों की हत्या कर दी.
2008 में मिली उम्र कैद
आरोपियों की तरफ से पीड़ित पक्ष पर दबाव बनाने की शिकायत मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमा महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया था. 21 जनवरी 2008 को मुंबई की विशेष सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को उम्र कैद की सजा दी. 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते हुई रिहाई
मामले के एक दोषी राधेश्याम शाह की याचिका को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 13 मई को माना था कि उसे 2008 में उम्र कैद की सज़ा मिली. इसलिए, 2014 में बने रिहाई से जुड़े सख्त नियम उस पर लागू नहीं होंगे. गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाते हुए सभी 11 दोषियों की तरफ से दिए गए रिहाई के आवेदन पर विचार किया और 1992 के नियमों के मुताबिक उन्हें रिहा कर दिया.
यह सभी लोग जेल में 14 साल से अधिक समय बिता चुके हैं. 1992 के नियमों में उम्र कैद की सजा पाए कैदियों की 14 साल बाद रिहाई की बात कही गई थी, जबकि 2014 में लागू नए नियमों में जघन्य अपराध के दोषियों को इस छूट से वंचित किया गया है.
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