धार्मिक नाम वाली पार्टियों की मान्यता रद्द करने पर SC में सुनवाई टली, मुस्लिम लीग ने कहा- हमें पार्टी बनाया तो अकाली दल को क्यों नहीं?
Supreme Court: जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ वसीम रिज़वी ने सुप्रीम कोर्ट में धार्मिक नामों का इस्तेमाल करने वाली राजनीतिक पार्टियों पर रोक की मांग को लेकर याचिका दाखिल की थी.
Parties With Religious Name: धार्मिक नाम और प्रतीक चिन्हों का इस्तेमाल करने वाली राजनीतिक पार्टियों पर रोक की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से जवाब दाखिल करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 31 जनवरी को होगी. शुक्रवार (25 नवंबर) को हुई सुनवाई के समय इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के वकील दुष्यंत दवे ने याचिकाकर्ता जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ वसीम रिजवी की मंशा पर सवाल उठाए. वहीं चुनाव आयोग ने कहा कि धार्मिक नाम वाली पार्टियां काफी पुरानी हैं. ऐसे में उनकी मान्यता रद्द करने पर सुप्रीम कोर्ट ही फैसला ले.
अब धर्म परिवर्तन कर वसीम रिज़वी से जितेंद्र त्यागी बन चुके याचिकाकर्ता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 5 सितंबर को नोटिस जारी किया था. उनकी तरफ से वरिष्ठ वकील गौरव भाटिया ने दलील दी थी कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत किसी उम्मीदवार का धर्म के नाम पर वोट मांगना गलत है. अगर उम्मीदवार ऐसी किसी पार्टी का है, जिसके नाम में धर्म का इस्तेमाल किया गया है, तो यह धर्म के नाम पर वोट मांगने जैसा ही है.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में चुनाव आयोग से जवाब मांगा था. साथ ही याचिकाकर्ता से कहा था कि वह उन राजनीतिक दलों को भी मामले में पक्ष बनाए, जो इस तरह के नाम का इस्तेमाल कर रही हैं. याचिकाकर्ता ने इसके बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) को पक्ष बनाया है.
शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान IUML के वकील दुष्यंत दवे ने कहा, "याचिकाकर्ता खुद नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले में जमानत पर है. उसने 2 पार्टी IUML और AIMIM को पक्ष बनाया है. शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना जैसी पार्टियों को नहीं."
इसका जवाब देते हुए याचिकाकर्ता के वकील गौरव भाटिया ने कहा, "शिवसेना का नाम भगवान शिव नहीं, शिवाजी महाराज के नाम पर है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा था कि वह जिसे ज़रूरी समझे पक्ष बना सकता है."
'नहीं कर सकते मान्यता रद्द' : चुनाव आयोग
चुनाव आयोग ने मामले पर जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि IUML और AIMIM जैसी पार्टियों के नाम लंबे समय से चले आ रहे हैं. धार्मिक आधार पर वोट मांगने पर रोक का कानून बनने से पहले यह पार्टियां रजिस्टर्ड हो चुकी थीं. अब इनकी मान्यता रद्द करनी है या नहीं, यह सुप्रीम कोर्ट तय करे.
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