SC Advice to Delhi LG And CM: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल विनय सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सलाह दी है कि वह राजनीतिक विवाद छोड़ कर दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (DERC) का अध्यक्ष चुनें.


इस मसले पर लंबे अरसे से चले आ रहे विवाद पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बड़े पद पर बैठे इन दोनों लोगों को आपस में मिल कर चर्चा करनी चाहिए और किसी एक नाम पर सहमति बनानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट 20 जुलाई को इस मामले को सुनेगा. तब तक इस बात की कोशिश की जाए कि दोनों को मान्य कोई नाम कोर्ट के सामने रखा जा सके.



क्या है मामला?


दिल्ली सरकार की दलील है कि उसने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व जज राजीव कुमार श्रीवास्तव को इस पद पर नियुक्त करने का प्रस्ताव उपराज्यपाल के पास भेजा था. जस्टिस श्रीवास्तव ने इस पद के लिए असमर्थता जता दी. इसके बाद एलजी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस उमेश कुमार को DERC अध्यक्ष बनाने जी अधिसूचना जारी कर दी. इस मामले को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 4 जुलाई को जस्टिस उमेश कुमार को DERC अध्यक्ष के रूप में शपथ लेने से रोक दिया था.


'संसद के इसी सत्र में केंद्र अध्यादेश को पास करवाने की कोशिश करेगा'


यह मामला दिल्ली में IAS अधिकारियों पर नियंत्रण से जुड़े अध्यादेश से भी जुड़ा है. इस अध्यादेश के ज़रिए GNCTD एक्ट में बदलाव किया गया है. बदले हुए एक्ट की धारा 45-D के तहत एलजी ने नए DERC अध्यक्ष की नियुक्ति की है. आज केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 20 जुलाई से शुरू हो रहे संसद सत्र में नए अध्यादेश को विधेयक के रूप में पेश किया जाएगा.


मेहता ने सलाह दी कि संसद से संशोधन विधेयक पास होने तक प्रतीक्षा करना बेहतर होगा. तभी पता चलेगा कि धारा 45-D अपने इसी स्वरूप में रहेगी या बदल जाएगी. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि संसद में बिल लाना सरकार का अधिकार है, लेकिन DERC अध्यक्ष का पद लंबे समय से खाली है. इसलिए, एलजी और सीएम को साथ बैठकर सहमति बनानी चाहिए.


'अध्यादेश का मसला संविधान पीठ को सौंप सकते हैं' : चीफ जस्टिस


DERC अध्यक्ष मामले के बाद अगला केस केंद्र के नए अध्यादेश से जुड़ा था. इस दौरान चीफ जस्टिस ने इस बात को दोहराया कि केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत दिल्ली से जुड़े मामलों पर संसद में बिल पेश करने का अधिकार है. इसलिए अध्यादेश को विधेयक के रूप में संसद में रखा जा सकता है. लेकिन यह देखने की भी ज़रूरत है कि संसद जाए बिना सिर्फ अध्यादेश के ज़रिए क्या संविधान की व्यवस्था को बदला जा सकता है.


अनुच्छेद 239AA के तहत भूमि, विधि-व्यवस्था और पुलिस दिल्ली सरकार के तहत नहीं आते. नए अध्यादेश के ज़रिए इन 3 मामलों के साथ सर्विसेज (सेवाओं) को भी जोड़ दिया गया है. इसलिए मामला संविधान पीठ को सौंपने की ज़रूरत है. दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मामला संविधान पीठ को न सौंपा है. इसे 3 जजों की बेंच ही सुने. सिंघवी इस मुद्दे पर 20 जुलाई को अपनी दलील रखेंगे.



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