नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट 36 राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर खुद के फैसले पर पुनर्विचार के लिए तैयार हो गया है. इस बारे में सुप्रीम कोर्ट राफेल सौदे पर पुनर्विचार याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा. यह बात कोर्ट ने गुरुवार को कही. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि राफेल मुद्दे पर चार याचिकाएं दाखिल की गई हैं और इनमें से एक तो अब तक खामी की वजह से रजिस्ट्री में ही पड़ी है. इस पीठ में जस्टिस एल एन राव और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी हैं. वकील प्रशांत भूषण ने राफेल मामले में याचिकाओं को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की तो पीठ ने कहा ‘‘पीठ के जजों में बदलाव करना होगा. यह बहुत मुश्किल है. हमें इसके लिए कुछ करना होगा.’’


भूषण ने कहा कि आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह की पुनर्विचार याचिका में खामी है और अन्य याचिकाओं में खामी नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं के अलावा एक ऐसा आवेदन भी दाखिल किया गया है जिसमें अदालत को गुमराह करने वाली जानकारी देने के लिए केंद्र सरकार के कुछ कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है. पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ याचिकाओं को खारिज कर दिया था. इन याचिकाओं में पूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी और वकील प्रशांत भूषण की याचिकाएं भी थीं. तब कोर्ट ने कहा था कि फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद में केंद्र के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह का सवाल ही नहीं उठता.


भूषण, सिन्हा और शौरी तीनों ने सुप्रीम कोर्ट को हाईप्रोफाइल राफेल मामले में सीलबंद लिफाफे में ‘झूठी या भ्रामक’ जानकारी कथित तौर पर देने के लिए केंद्र सरकार के कुछ कर्मचारियों के खिलाफ झूठे साक्ष्य का मुकदमा शुरू करने का अनुरोध करते हुये सोमवार को एक आवेदन दायर किया था. यह मुकदमा आईपीसी की धाराओं 193 और 195 के तहत दायर करने की मांग की गई है. ये धाराएं झूठे प्रमाण देने, प्रमाण के तौर पर झूठे दस्तावेज देने और नौकरशाहों के कानूनी प्राधिकार की अवमानना के अपराध से संबंधित हैं. आवेदन में कहा गया है कि नोट्स में जानकारी को छिपाने और असत्य बातें लिखने से झूठे साक्ष्य और अवमानना का मामला बनता है क्योंकि ये नोट्स अदालत के आदेश की अनुपालना में जमा किए गए थे.


इसमें कहा गया है कि मूल्य से संबंधित जानकारी याचिकाकर्ताओं के साथ साझा नहीं की गई. आगे कहा गया है कि सरकार की ओर से सूचना छिपाए जाने की वजह से अदालत को पूरे तथ्यों की जानकारी नहीं मिल पाई जिसके कारण जनहित याचिकाएं खारिज कर दी गईं. इनमें कहा गया है कि अदालत को गुमराह करने वाले अधिकारियों की पहचान की जाए और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए. आवेदन में कैग की रिपोर्ट का हवाला भी दिया गया है. इसमें कहा गया है ‘‘तब कैग की रिपोर्ट नहीं आई थी. सरकार ने इस रिपोर्ट के आए बिना इसे लेकर अदालत को गुमराह कर दिया और यह बात फैसले में दामों को लेकर किए गए आकलन का आधार बनी.’’ इसमें कहा गया है कि अपनी गलती मानने के बजाय सरकार की ओर से व्याख्या और अंग्रेजी व्याकरण की गलती बता दी गई.


साथ ही इसमें मीडिया में आई हालिया खबरों का भी संदर्भ दिया गया है जिनके अनुसार रक्षा मंत्रालय और भारतीय वार्ताकार दल को दरकिनार कर प्रधानमंत्री कार्यालय ने ‘अनधिकृत समानांतर वार्ताएं’ कीं और इसे कथित तौर पर दबा दिया गया. इस मामले में पहली याचिका अधिवक्ता एम एल शर्मा ने दायर की थी. इसके बाद एक अन्य वकील विनीत ढांडा ने याचिका दाखिल कर मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की. आप नेता संजय सिंह ने भी याचिका दायर की थी. तीनों याचिकाओं के बाद सिन्हा, शौरी और भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सीबीआई को, राफेल सौदे में कथित अनियमितताओं को लेकर एक प्राथमिकी दर्ज करने के लिए निर्देश देने का आग्रह किया था.


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