Supreme Court On Election Commission: सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को लेकर चिंता जाहिर की है. सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि एक के बाद एक सरकारों ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) की स्वतंत्रता को 'पूरी तरह से नष्ट' कर दिया है. कोर्ट ने इस बात का भी जिक्र किया कि 1996 से किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को चुनाव निकाय के प्रमुख के रूप में पूरे छह साल का कार्यकाल नहीं मिला है.
पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि सीईसी और चुनाव आयुक्त (EC) को कैसे चुना जाए, इस पर संविधान की चुप्पी का सभी रंगों के राजनीतिक दलों ने फायदा उठाया है. अगर नियुक्त लोगों से व्यवस्था की बोली लगाने की अपेक्षा की जाती है, तो यह प्रासंगिक समय पर चिंता पैदा करता है.
'यह एक बहुत ही परेशान करने वाली प्रवृत्ति है'
जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, "यह एक बहुत ही परेशान करने वाली प्रवृत्ति है. टीएन शेषन (जो 1990 और 1996 के बीच छह साल के लिए CEC थे) के बाद गिरावट तब शुरू हुई जब किसी भी व्यक्ति को पूर्ण कार्यकाल नहीं दिया गया. सरकार जो कर रही है वह यह है क्योंकि वह जानती है कि जन्म तिथि, यह सुनिश्चित करता है कि जिसे सीईसी के रूप में नियुक्त किया गया है, उसे अपने पूरे छह साल नहीं मिले हैं… चाहे वह यूपीए (कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार हो या यह सरकार, यह एक प्रवृत्ति रही है."
'तथाकथित स्वतंत्रता पूरी तरह नष्ट हो जाती है'
संविधान पीठ ने आगे कहा, "इस तरह, तथाकथित स्वतंत्रता, जो सिर्फ जुबानी सेवा है, पूरी तरह से नष्ट हो जाती है. विशेष रूप से परेशान करने वाली प्रवृत्ति को देखते हुए कोई भी उन पर सवाल नहीं उठा सकता है क्योंकि कोई जांच नहीं है. इस तरह संविधान की चुप्पी का फायदा उठाया जा सकता है. कोई कानून नहीं है, कोई जांच नहीं है. सभी ने इसे अपने हित में इस्तेमाल किया है. हम ऐसा नहीं कह रहे हैं लेकिन ऐसा लग रहा है."
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