नई दिल्ली: लड़कियों के लिए नेशनल डिफेंस एकेडमी यानी एनडीए के दरवाजे खुलने की संभावना बढ़ गई है. सुप्रीम कोर्ट ने आज लड़कियों को 5 सितंबर को होने जा रही एनडीए की प्रवेश परीक्षा में हिस्सा लेने की अनुमति दे दी. हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि दाखिले पर अंतिम फैसला बाद में होगा. अब तक लड़कियों को एनडीए की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं थी. कोर्ट ने आज लड़कियों को 28 अगस्त को होने वाली राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज (RIMC) की परीक्षा में भी शामिल होने की अनुमति दी.


मामले को अहम मानते हुए 10 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी विस्तृत बहस के मामले पर नोटिस जारी कर दिया था. केंद्र ने इस नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि महिलाओं के साथ भेदभाव की दलील सही नहीं है. एनडीए में महिलाओं का प्रवेश एक नीतिगत विषय है. कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए. एनडीए में महिलाओं को प्रवेश भले ही न मिलता हो, लेकिन इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) और ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (OTA) के ज़रिए सेना में अधिकारी बनने का मौका मिलता है.


लेकिन जस्टिस संजय किशन कौल और ऋषिकेश रॉय की बेंच इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई. जजों ने कहा कि सेना को महिलाओं के प्रति अपना रवैया बदलना चाहिए. सिर्फ कोर्ट के आदेश के बाद ही काम नहीं करना चाहिए. महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के मामले में भी इसी तरह का प्रतिरोध भरा रवैया अपनाया गया था.


याचिकाओं में क्या कहा गया है?
कुश कालरा और कैलाश मोरे की तरफ से दाखिल अलग-अलग याचिका में बताया गया है कि लड़कियों को सेना की नौकरी देते समय ग्रेजुएशन की शर्त रखी गई है. जबकि लड़कों को 12वीं की परीक्षा के बाद नेशनल डिफेंस एकेडमी में शामिल होने दिया जाता है. इस तरह से लड़कियां सेना में अपनी सेवा की शुरुआत में ही लड़कों से पिछड़ जाती हैं. 


लड़कियों के लिए सेना में शामिल होने के जो अलग-अलग विकल्प हैं, उनकी शुरुआत ही 19 साल से लेकर 21 साल तक से होती है. ऐसे में जब तक लड़कियां सेना की सेवा में जाती हैं, तब तक 17-18 साल की उम्र में सेना में शामिल हो चुके लड़के स्थायी कमीशन पाए अधिकारी बन चुके होते हैं. इस भेदभाव को दूर किया जाना चाहिए.


याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि सेना में युवा अधिकारियों की नियुक्ति करने वाले नेशनल डिफेंस एकेडमी और नेवल एकेडमी में सिर्फ लड़कों को ही दाखिला मिलता है. ऐसा करना उन योग्य लड़कियों के मौलिक अधिकारों का हनन है, जो सेना में शामिल होकर देश की सेवा करना चाहती हैं. 


याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल आए उस फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए कहा गया था. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि जिस तरह कोर्ट ने सेवारत महिला सैन्य अधिकारियों को पुरुषों से बराबरी का अधिकार दिया, वैसा ही उन लड़कियों को भी दिया जाए जो सेना में शामिल होने की इच्छा रखती हैं.


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