भारत के जंगलों में फिर दौड़ेंगे चीते, सुप्रीम कोर्ट ने परियोजना को दी मंजूरी
2010 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने भारत मे चीतों को दोबारा बसाने की योजना तैयार की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस परियोजना पर रोक लगा दी थी. अब सुप्रीम को कोर्ट ने रोक हटाते हुए दुबारा चीतों को बसाने की मंजूरी दे दी है
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारत में चीतों को दोबारा बसाने की इजाजत दे दी है. कोर्ट ने 2013 के उस आदेश में बदलाव कर दिया है, जिसमें इस प्रोजेक्ट पर रोक लगाई गई थी. कोर्ट ने कहा है की जरूरी अध्ययन के बाद भारत में उचित जगह पर चीतों को बसाया जाए.
2010 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण यानी नेशनल टाइगर कंजर्वेशन ऑथोरिटी (NTCA) ने भारत मे चीतों को दोबारा बसाने की योजना तैयार की थी. दरअसल, भारत में जिस एशियाई नस्ल के चीते मिलते थे, वह अब विलुप्त हो चुके हैं. इसलिए, अफ्रीकी नस्ल के चीतों को भारत में लाकर बसाने की जना बनाई गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस परियोजना पर रोक लगा दी. उस याचिका में कहा गया था कि अगर मध्य प्रदेश के कुनो पालपुर में चीतों को बसाया गया, तो इससे वहां गुजरात से शेरों को लाकर बसाने के परियोजना टल जाएगी. साथ ही, चीतों को जंगल में बसाने से वहां का पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ सकता है.
इससे पहले हुई सुनवाई में एनटीसीए ने कोर्ट को बताया था कि उसने अफ्रीकी देश नामीबिया से 19 चीतों को लाकर भारत में बसाने की योजना तैयार की है. इन्हें मध्य प्रदेश के कुनो पालपुर, नौरादेही और राजस्थान में बसाया जा सकता है. एनटीसीए ने यह भी बताया था कि ईरान में कुछ एशियाई नस्ल के चीते मौजूद हैं, लेकिन वह अनुवांशिक रूप से काफी कमजोर हैं. उनके भारत आने के बाद जिंदा बचने की संभावना कम है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की थी, "हम वन्य जीवन के विशेषज्ञ नहीं हैं. कोर्ट में मौजूद किसी भी व्यक्ति को चीतों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. ऐसे में कोर्ट कैसे कह सकता है कि उन्हें भारत में बसाया जाए या नहीं? यह कोई कानूनी मामला नहीं है." कोर्ट ने एनटीसीए से परियोजना पर दोबारा रिपोर्ट देने के लिए कहा था. उसको देखने के बाद आज चीतों को भारत लाने पर रोक हटा दी.
कोर्ट ने यह भी कहा है, "चीतों को बसाने से पहले एक बार फिर जरूरी अध्ययन कर लिया जाए. अध्ययन का जिम्मा वन्यजीव विशेषज्ञ एम के रणजीत सिंह, धनंजय मोहन और वन मंत्रालय के डीआईजी (वाइल्डलाइफ) को सौंपा गया है. कोर्ट ने चार महीने बाद फिर रिपोर्ट देने के लिए कहा है.
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