Supreme Court on Delhi LG Rights: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (5 अगस्त) को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में 10 'एल्डरमैन' यानी मनोनीत पार्षद को नामित करने के दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) के फैसले को बरकरार रखा. अदालत ने साफ कर दिया कि एलजी को एमसीडी में पार्षद मनोनीत करने का अधिकार है. इसके लिए दिल्ली सरकार की सहमति जरूरी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल एमसीडी में 10 मनोनीत पार्षद बिना सरकार की सलाह के नियुक्त कर सकते हैं.
देश की शीर्ष अदालत के फैसले को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सरकार के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है. मनोनीत पार्षद की नियुक्ति पर लंबे समय से विवाद चल रहा था. इसी के चलते एमसीडी में स्टैंडिंग कमिटी का चुनाव भी रुका था, क्योंकि मनोनीत पार्षद भी इसमें मतदान करते हैं. एमसीडी में आप के 134 और बीजेपी के 104 निर्वाचित पार्षद हैं. इसके अलावा एमसीडी में 10 मनोनीत पार्षद भी नियुक्त किए जाते हैं, जिनकी नियुक्ति उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना करेंगे.
पार्षद की नियुक्ति एलजी का वैधानिक कर्तव्य: सुप्रीम कोर्ट
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने एमसीडी में मनोनीत पार्षद नियुक्त करने का अधिकार एलजी को देने का फैसला सुनाया. इस पीठ में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी थे. जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि एल्डरमैन की नियुक्ति एलजी का वैधानिक कर्तव्य है. वह इस मामले में राज्य कैबिनेट की सहायता और उसकी सलाह से बंधे हुए नहीं हैं.
पीठ ने स्पष्ट किया कि 1993 में संशोधित दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) अधिनियम की धारा 3(3)(बी)(आई) एलजी को एल्डरमैन नियुक्त करने का अधिकार देती है. दिल्ली के प्रशासक के तौर पर मिला ये अधिकार न तो 'अतीत का अवशेष' है और न ही इसके जरिए संवैधानिक शक्ति का अतिक्रमण होता है.
कैसा रहा था एमसीडी चुनाव का नतीजा?
दरअसल, दिसंबर 2022 में दिल्ली में हुए एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी को 134 वार्डों में जीत मिली है, जबकि बीजेपी को 104 वार्ड्स में जीत हासिल हुई. इस तरह एमसीडी में पिछले 15 सालों से चले आ रहे बीजेपी के शासन को आम आदमी पार्टी ने खत्म किया. कांग्रेस को 9 वार्डों में जीत मिली थी. फिलहाल एमसीडी में आप को ही बहुमत है.
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