सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग रह रहे एक कपल को तलाक की अनुमति देने वाले मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि शादी एक ऐसा रिश्ता है जो आपसी भरोसे, साथ और साझा अनुभवों पर बनता है, अगर ये चीजें न हों तो फिर शादी को बचाने का कोई मतलब नहीं है.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने कहा कि अलगाव की अवधि और पति-पत्नी के बीच तल्खी यह स्पष्ट करती है कि विवाह को बचाने की कोई संभावना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'विवाह आपसी विश्वास, साहचर्य और साझा अनुभवों पर बना एक रिश्ता है. जब ये जरूरी चीजें लंबे समय तक गायब रहती हैं तो वैवाहिक बंधन किसी भी सार से रहित सिर्फ कानूनी औपचारिकता बनकर रह जाती है.'
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अदालत ने लगातार माना है कि लंबे समय तक अलगाव और मेल-मिलाप करने की अक्षमता वैवाहिक विवादों पर निर्णय लेने में एक प्रासंगिक कारक हैं. बेंच ने कहा कि मौजूदा मामले में अलगाव की अवधि और दोनों पक्षों के बीच दुश्मनी से यह साफ हो जाता है कि शादी को बचाने की कोई संभावना नहीं है.
बेंच ने कहा कि पति और पत्नी बीस साल से अलग-अलग रह रहे हैं और यह तथ्य इस निष्कर्ष को और पुष्ट करता है कि यह विवाह अब व्यवहार्य नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने उन महिलाओं की अपील खारिज कर दी जिन्होंने क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद की अनुमति देने वाले मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ के आठ जून, 2018 के फैसले को चुनौती दी थी.
पीठ ने कहा कि पति ने यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराए हैं कि अपीलकर्ता (पत्नी) ऐसे व्यवहार में शामिल थी जिससे उसे अत्यधिक मानसिक और भावनात्मक परेशानी हुई. दोनों ने 30 जून, 2002 को शादी की थी और दोनों से नौ जुलाई, 2003 को एक बेटी का जन्म हुआ. दोनों पक्षों के बीच कलह बच्ची के जन्म के ठीक बाद शुरू हुई जब पत्नी ने अपने माता-पिता के घर से लौटने से इनकार कर दिया. पत्नी प्रसव के लिए माता-पिता के घर गई थी, लेकिन वह वहां से वापस ससुराल नहीं आना चाहती है.
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