नई दिल्ली: अब किसी व्यक्ति को ये कहने का अधिकार होगा कि लाइलाज स्थिति में पहुँचने पर उसे जबरन ज़िंदा न रखा जाए. लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा कर मरने दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 'लिविंग विल' की मांग को मान लिया है.


कैसे होगा लिविंग विल


लिविंग विल की प्रक्रिया कोर्ट की निगरानी में होगी. कोई व्यक्ति डिस्ट्रिक्ट जज की तरफ से नियुक्त ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के सामने लिविंग विल कर सकता है. इसे 2 गवाहों की मौजूदगी में तैयार किया जाएगा. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में लिविंग विल का रिकॉर्ड रखा जाएगा.


लिविंग विल के बिना भी मृत्यु


अगर 'लिविंग विल' न लिखने वाला कोई व्यक्ति लाइलाज स्थिति में पहुंचे तो उसके रिश्तेदार हाई कोर्ट जा सकते हैं. हाई कोर्ट मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर फैसला लेगा.


एक्टिव यूथेनेशिया को मंज़ूरी नहीं


सुप्रीम कोर्ट से पैसिव यूथेनेशिया यानी जीवन रक्षक प्रणाली हटा कर मृत्यु की इजाज़त मांगी गई थी. कोर्ट ने इसे मान लिया है. लेकिन एक्टिव यूथेनेशिया अब भी गैरकानूनी होगा. यानी शारीरिक तकलीफ झेल रहे किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा से भी ज़हर का इंजेक्शन देकर या दूसरे तरीकों से नहीं मारा जा सकता.


13 साल पुरानी याचिका


एनजीओ कॉमन कॉज़ ने 2005 में याचिका दाखिल की थी. उसी पर आज चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने फैसला दिया है.


इससे पहले 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने 35 साल से कोमा में पड़ी मुंबई की नर्स अरुणा शानबॉग को पैसिव युथनेशिया देने से मना कर दिया था. हालांकि, उसी फैसले में कोर्ट ने कहा था कि डॉक्टरों के पैनल की सिफारिश, परिवार की सहमति और हाई कोर्ट की इजाज़त से कोमा में पहुंचे लाइलाज मरीज़ों को लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाया जा सकता है.


तुरंत लागू होगा फैसला


सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने विशेष परिस्थितियों में मरीज़ का लाइफ स्पोर्ट सिस्टम हटाने पर सहमति जताई. सरकार ने कहा था कि वो इस तरह के फैसले लेने के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन पर जल्द ही कानून बनाएगी.


लेकिन आज कोर्ट ने कह दिया कि जब तक सरकार कानून नहीं बना लेती तब तक ये फैसला कानून की तरह काम करता रहेगा. साफ है कि लिविंग विल और पैसिव यूथेनेशिया का ये फैसला तुरंत प्रभावी हो गया है.


कोर्ट की अहम टिप्पणी


पांचों जजों ने इस बात को माना है कि शांति और सम्मान के साथ मौत हर व्यक्ति का अधिकार है. जजों ने जीवन और मृत्यु को लेकर भारतीय आध्यात्मिक सिद्धांतों के साथ ही कई पश्चिमी विद्वानों की बातों को फैसले में जगह दी है.


कोर्ट ने लिखा है, "जब जीवन का इंद्रधनुष बेरंग हो जाए. जीवन ठहर जाए, रुक जाए. ज़िंदा रहना निरर्थक हो जाता है. क्या तब हमें ऐसे लोगों को जीवन की दहलीज से बाहर जाने, सम्मान से मौत को गले लगाने की इजाज़त नहीं देनी चाहिए? कुछ लोगों के लिए मौत भी एक खुशी का मौका हो सकती है."



कोर्ट ने फ़िल्म मुकद्दर के सिकंदर के गाने का भी हवाला दिया है. लिखा है :-


रोते हुए आते हैं सब, हंसता हुआ जो जाएगा

वो मुकद्दर का सिकंदर, जानेमन कहलाएगा