Supreme Court and Government Tussle: मोदी सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच कई मसलों को लेकर तनातनी चल रही है. फिर चाहे वो कोलेजियम की सिफारिशों को न मानना हो या फिर चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का मामला हो, इन तमाम मसलों पर तनाव लगातार बढ़ता दिख रहा है. अब सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे का एक बयान सामने आया है, जिसमें उन्होंने कानून मंत्री किरेन रिजिजू को लेकर कहा है कि उन्होंने अपनी लक्ष्मण रेखा को लांघने का काम किया है. इस बयान ने साफ कर दिया है कि मौजूदा वक्त में सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच का विवाद किस हद तक बढ़ता नजर आ रहा है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल कुछ दिन पहले सरकार की तरफ से एक नोटिफिकेशन जारी कर बताया गया कि अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है. इस नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कड़े सवाल किए. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस नियुक्ति का पूरा ब्योरा मांगा और कहा कि 24 घंटे से कम वक्त में कैसे फैसला लिया गया. सरकार पर आरोप है कि अरुण गोयल को रिटायरमेंट देकर तुरंत इस पद पर बिठा दिया गया. जो नियमों के खिलाफ है. वहीं सरकार ने जवाब देते हुए कहा कि ऐसा पहले भी होता आया है और किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया.
क्या बोले थे कानून मंत्री?
अब बात करते हैं कि सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने कानून मंत्री को लेकर ऐसा बयान क्यों दिया. सुप्रीम कोर्ट ने जब चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सरकार से सख्त लहजे में सवाल किए तो कानून मंत्री ने इसका जवाब दिया. रिजिजू ने एक कार्यक्रम के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर सवाल खड़े करते हुए कहा, ये किस तरह का सवाल है? अगर ऐसा है तो आगे लोग ये भी पूछ सकते हैं कि कोलेजियम किस तरह से जजों के नामों को चुनता है. इस पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं. जजों को अपने फैसलों के जरिए बोलना चाहिए और इस तरह की टिप्पणी करने से बचना चाहिए.
अब कानून मंत्री के उस बयान का जिक्र करते हुए हरीश साल्वे ने एक इवेंट के दौरान इसे लक्ष्मण रेखा लांघना बताया है. बार एंड बेंच के मुताबिक साल्वे ने कहा, "मेरा मानना है कि कानून मंत्री ने जो कुछ भी कहा उससे उन्होंने लक्ष्मण रेखा को पार किया. अगर वो सोचते हैं कि सुप्रीम कोर्ट को किसी ऐसी चीज जो कि असंवैधानिक है उससे अपने हाथ पीछे रखने चाहिए और कानून में संशोधन के लिए सरकार की दया पर निर्भर रहना चाहिए तो माफ करें ये बिल्कुल गलत है."
अपने इस संबोधन के दौरान साल्वे ने राजद्रोह कानून का भी जिक्र किया. जिसमें उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को राजद्रोह कानून को खत्म करना चाहिए. क्योंकि उनकी राय में ये एक औपनिवेशिक कानून था जो फ्री स्पीच के खिलाफ है.
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