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जजों की नियुक्ति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, केंद्र को फटकार लगाते हुए कहा- कॉलेजियम सर्च पैनल नहीं

Supreme Court On Appointment of Judges: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि दोबारा सिफारिश किए गए नामों को लेकर क्या कठिनाई है.

Pending Collegium Recommendation: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 20 सितंबर को केंद्र सरकार से उन उम्मीदवारों की लिस्ट देने को कहा, जिनके नाम हाई कोर्ट के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की ओर से पुनर्विचार के बाद भेजे गए थे, लेकिन जिन्हें अभी तक मंजूरी नहीं मिली है. 

पारंपरिक तौर पर, जब कॉलेजियम किसी नाम को दोबारा सिफारिश करता है तो सरकार को उसे स्वीकार करना होता है. कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के पांच मोस्ट सीनियर जज होते हैं, जिनमें चीफ जस्टिस भी शामिल होते हैं. सबसे पहले जानते हैं कि कॉलेजियम है क्या? यह न्यायाधीशों की नियुक्ति और ट्रांसफर की प्रक्रिया है, जो न तो संसद के किसी कानून से स्थापित की गई है और न ही संविधान के किसी प्रावधान से, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए ये अस्तित्व में आया है.

सरकार को स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश

चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, "सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि दोबारा सिफारिश किए गए नामों को लेकर क्या कठिनाई है. एक चार्ट दीजिए, जिसमें यह दिखाएं कि कितने नामों पर अब तक कार्रवाई (नियुक्ति की दिशा में ) हुई है."

इस दौरान अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत के सामने यह सुझाव दिया कि पुनर्विचार किए गए नामों पर फैसले के लिए एक समय सीमा निर्धारित की जा सकती है. 

नियुक्ति में देरी पर प्रशांत भूषण की आपत्ति 

प्रशांतभूषण ने कहा, "एक नियम होना चाहिए कि अगर सरकार किसी सिफारिश को एक निश्चित समय सीमा तक मंजूरी नहीं देती है तो वह सिफारिश स्वीकृत मानी जाएगी." इसके जवाब में चीफ जस्टिस ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि से उन लंबित नामों की सूची मांगी, जो पुनर्विचार के बाद भी केंद्र सरकार के पास अटकी हुई हैं.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हमें उन नामों की स्थिति बताएं और यह बताएं कि कठिनाई क्या है. देखिए, कॉलेजियम कोई खोज समिति नहीं है. अगर यह सिर्फ एक खोज समिति की तरह होता तो आपके पास विवेकाधिकार होता. हमारा मकसद किसी पुरानी गलतियों को उजागर करना नहीं है, बल्कि आगे बढ़ना है."

झारखंड सरकार की अवमानना याचिका

ये याचिका अधिवक्ता हर्ष विभोर सिंघल की ओर से दायर की गई थी. इस याचिका में कॉलेजियम की ओर सिफारिश किए गए जजों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी करने के लिए एक निश्चित समय सीमा की मांग की गई है.

एक अन्य मामले में, झारखंड सरकार ने भी केंद्र के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही की मांग करते हुए एक याचिका दायर की है. यह याचिका कॉलेजियम की ओर से जस्टिस एम.एस. रामचंद्र राव को झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश को केंद्र की अभी तक मंजूरी न देने के कारण दायर की गई है. 

कपिल सिब्बल ने सरकार की देरी पर जताई नाराजगी

झारखंड सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, "कॉलेजियम ने ओडिशा हाई कोर्ट के जस्टिस बी.आर. सरंगी को बहुत पहले झारखंड के चीफ जस्टिस के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र ने इसे उनके सेवानिवृत्त होने से केवल 15 दिन पहले ही मंजूरी दी. यह पूरी तरह गलत है."

इस पर, अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने अदालत की हस्तक्षेप की सीमा पर संदेह जताया. इसके जवाब में मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "आप हमें बताइए कि वे नियुक्तियां क्यों नहीं की जा रही हैं."

गौरतलब है कि इसी सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में एक नया प्रस्ताव पारित किया है. कॉलेजियम ने अपने पूर्व के कुछ सिफारिशों में बदलाव किया है, जिनमें दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस सुरेश कुमार कैत, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस जी.एस. संधवालिया और जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हाई कोर्ट के जस्टिस ताशी राबस्तान के नाम शामिल हैं.

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