सुप्रीम कोर्ट ने वन भूमि पर इमारतों के निर्माण और प्रभावित निजी पक्ष को मुआवजा देने के मामले में जवाब दाखिल नहीं करने को लेकर बुधवार (7 अगस्त, 2024) को महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र सरकार के पास 'लाडली बहना' और 'लड़का भाऊ' जैसी योजनाओं के तहत मुफ्त चीजें बांटने के लिए धनराशि है, लेकिन जमीन के नुकसान की भरपाई के लिए धन नहीं है.
जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस के वी विश्वनाथन और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 13 अगस्त तक का समय देते हुए कहा कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया तो चीफ सेक्रेटरी को न्यायालय में पेश होना होगा.
सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र में वन भूमि पर इमारतों के निर्माण से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा था, जहां एक निजी पक्ष ने शीर्ष अदालत से उस भूमि पर कब्जा पाने में सफलता प्राप्त कर ली है, जिस पर राज्य सरकार ने अवैध रूप से कब्जा किया था.
महाराष्ट्र सरकार ने दावा किया है कि बताई गई भूमि पर आयुध अनुसंधान विकास प्रतिष्ठान संस्थान (ARDEI) का कब्जा था, जो केंद्र के रक्षा विभाग की एक इकाई थी.
सरकार ने कहा कि बाद में ARDEI के कब्जे वाली जमीन के बदले निजी पक्ष को दूसरी जमीन एलॅाट कर दी गई. हालांकि, बाद में पता चला कि निजी पक्ष को दी गई एलॅाटेड जमीन को वन भूमि के रूप में अधिसूचित किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, ‘23 जुलाई के हमारे दिए गए आदेश के अनुसार, हमने आपको (राज्य सरकार को) हलफनामे पर भूमि के ओनरशिप पर अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया है. अगर आप अपना जवाब दाखिल नहीं करेंगे तो हम आपके मुख्य सचिव को अगली बार यहां उपस्थित रहने को कहेंगे... आपके पास 'लाडली बहना' और 'लड़का भाऊ' के तहत मुफ्त सामान बांटने के लिए पैसे हैं, लेकिन जमीन के नुकसान की भरपाई के लिए पैसे नहीं हैं.'
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