अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्त किए मध्यस्थ, 8 हफ्ते में प्रक्रिया पूरी करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों मध्यस्थों को ये भी अधिकार दिया है कि अगर वह चाहें तो कुछ और लोगों को अपनी टीम में शामिल कर सकते हैं.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि अयोध्या विवाद से जुड़े पक्ष बातचीत के ज़रिए हल निकालने की कोशिश करें. कोर्ट ने इसके लिए पूर्व जस्टिस एम खलीफुल्ला की अध्यक्षता में 3 मध्यस्थों का एक पैनल भी बनाया है. कोर्ट ने मध्यस्थों से कहा है कि वो 8 हफ्ते में काम खत्म करें. अगर इस प्रक्रिया से कोई हल नहीं निकलता तो कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी.
क्यों बनाया मध्यस्थ पैनल
कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई फिलहाल दस्तावेजों के अनुवाद पर हुए विवाद के चलते अटकी है. कोर्ट ने सभी पक्षों को यूपी सरकार की तरफ से करवाए गए अनुवाद को देख कर अपनी सहमति बताने को कहा है.
इसमें करीब 8 हफ्ते का वक्त लगना है. सुनवाई कर रही 5 जजों की संविधान पीठ का विचार था कि इस समय का इस्तेमाल बातचीत के ज़रिए किसी समाधान तक पहुंचने के लिए हो.
कौन हैं 3 मध्यस्थ
बुधवार को मामले पर आदेश सुरक्षित रखते वक्त कोर्ट ने पक्षकारों से कहा था कि वो चाहें तो मध्यस्थों के नाम पर सुझाव दे सकते हैं. कुछ पक्षकारों ने सुझाव दिए भी. लेकिन नाम कोर्ट ने तय किए हैं.
जस्टिस एफ एम आई खलीफुल्ला
2016 में रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के जज फकीर मोहम्मद इब्राहिम खलीफुल्ला एक विद्वान और ईमानदार जज की रही है. BCCI मामले में उनके योगदान की तत्कालीन चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर ने खुल कर तारीफ की थी.
टीचर भर्ती घोटाले में 10 साल की सज़ा पाने वाले हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला की अपील को उन्होंने पहली सुनवाई में ही खारिज कर दिया था.
मद्रास हाई कोर्ट में जज रहते विश्विद्यालयों में वैदिक ज्योतिष को विषय बनाने की मंजूरी दी. जम्मू-कश्मीर के चीफ जस्टिस रहते राज्य भर का दौरा किया. लोगों ने न्याय के प्रति भरोसा बढाने की कोशिश की.
श्री श्री रविशंकर
आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री पहले भी इस मामले में मध्यस्थता की कोशिश कर चुके हैं. हिंदू पक्ष के एक बड़े वर्ग के साथ मुस्लिम पक्ष में भी एक हद तक उनके लिए स्वीकार्यता है.
श्रीराम पांचु
चेन्नई के बड़े वकील पांचु को मध्यस्थता का विशेषज्ञ माना जाता है. भारत की अदालती प्रक्रिया में मध्यस्थता को जगह दिलाने में उनका काफी योगदान माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट पहले भी उन्हें असम-नगालैंड सीमा विवाद समेत कुछ और मामलों में मध्यस्थता का ज़िम्मा सौंप चुका है.
कैसे काम करेंगे मध्यस्थ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थ 1 हफ्ते में अपना काम शुरू कर दें. बातचीत फैज़ाबाद में हो. इसके लिए जगह और दूसरी ज़रूरी सुविधाएं उत्तर प्रदेश सरकार दे. यानी मध्यस्थता की इस प्रक्रिया में होने वाला खर्च यूपी सरकार को उठाना होगा.
कोर्ट ने मध्यस्थों को ये अधिकार दिया है कि वो ये तय करें कि प्रक्रिया किस तरह चलेगी. अगर वो कुछ और लोगों को अपनी टीम में शामिल करना चाहते हैं, तो इसकी उन्हें इजाज़त है.
5 जजों की बेंच की तरफ से फैसला पढ़ते वक्त चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने ये साफ कर दिया कि बातचीत बंद कमरे में होगी, उसे गोपनीय रखा जाएगा. कोर्ट ने कहा है कि इस दौरान की जा रही बातों की मीडिया रिपोर्टिंग न हो.
कोर्ट ने पैनल से 4 हफ्ते में पहली रिपोर्ट देने को कहा है. 8 हफ्ते में प्रक्रिया पूरी करनी होगी. अगर बातचीत सफल रहती है, उसमें कोई ऐसा हल निकलता है जो सबको स्वीकार हो तो कोर्ट उसे औपचारिक आदेश की शक्ल दे सकता है. अगर हल नहीं निकलता तो सुनवाई जारी रहेगी.
सबको स्वीकार नहीं मध्यस्थता
अयोध्या विवाद के मुस्लिम पक्षकार बातचीत में गोपनीयता बरते जाने की शर्त पर मध्यस्थता के लिए तैयार हुए. निर्मोही अखाड़ा ने भी बातचीत के टेबल पर बैठने की सहमति दी. लेकिन अहम पक्षकार रामलला विराजमान इसके लिए तैयार नहीं था. रामलला के वकील ने इस कोशिश का विरोध किया.
हालांकि, नियमों के मुताबिक कोर्ट के लिए ये ज़रूरी नहीं कि वो किसी सिविल विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने से पहले सभी पक्षों की मंजूरी ले. ऐसे में कोर्ट ने रामलला विराजमान की आपत्ति को दरकिनार कर अपने अधिकार का इस्तेमाल किया है. लेकिन कानून पक्षकार को इस बात का अधिकार देता है कि वो मध्यस्थ के सामने किसी बातचीत या समझौते के लिए मना कर दे.
इसलिए कोर्ट ने मध्यस्थ पैनल से 4 हफ्ते में पहली रिपोर्ट देने को कहा है. कोर्ट ये देखना चाहता है कि प्रक्रिया शुरू हो पाई या नहीं. अगर शुरू हुई तो क्या किसी समझौते की तरफ बढ़ने की कोई उम्मीद है.
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