विकास दुबे मुठभेड़ की जांच के लिए SC ने 3 सदस्यीय आयोग को मंजूरी दी, 2 महीने में रिपोर्ट देने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग का दफ्तर दिल्ली में रखने की मांग को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि आयोग यूपी से ही काम करेगा. कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि आयोग को स्टाफ यूपी सरकार नहीं, बल्कि केंद्र सरकार मुहैया करवाएगी.
नई दिल्ली: विकास दुबे एनकाउंटर से जुड़े पूरे घटनाक्रम की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्य आयोग के गठन का आदेश दिया है. आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बी एस चौहान करेंगे. हाई कोर्ट के पूर्व जज शशिकांत अग्रवाल और यूपी के पूर्व डीजीपी के एल गुप्ता भी आयोग के सदस्य होंगे. कोर्ट ने कहा है कि आयोग एक हफ्ते में काम करना शुरू कर दे और इसके बाद 2 महीने में रिपोर्ट दे.
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग का दफ्तर दिल्ली में रखने की मांग को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि आयोग यूपी से ही काम करेगा. कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि आयोग को स्टाफ यूपी सरकार नहीं, बल्कि केंद्र सरकार मुहैया करवाएगी. आयोग के अध्यक्ष अपनी इच्छा से भी स्टाफ का चयन कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में 2 जुलाई की रात कानपुर के बिखरु गांव में गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने पहुंचे 8 पुलिसकर्मियों की हत्या और बाद में पुलिस की तरफ से विकास दुबे समेत छह लोगों को एनकाउंटर में मार गिराए जाने की निष्पक्ष जांच की मांग की गई थी. याचिकाओं में कहा गया था कि यूपी सरकार की तरफ से करवाई जा रही जांच से सच कभी सामने नहीं आ पाएगा. इस मामले में नेताओं, पुलिस और अपराधियों के गठजोड़ की तह तक पहुंचना जरूरी है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में जांच करवाए.
मामले को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए अपनी तरफ से आयोग के गठन का प्रस्ताव दिया था. इस पर यूपी सरकार ने बताया था कि उसने पहले ही पूर्व हाई कोर्ट जज शशिकांत अग्रवाल के नेतृत्व में एक आयोग का गठन कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आयोग में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और डीजीपी स्तर के रिटायर्ड पुलिस अधिकारी को भी जोड़ने के लिए कहा था. आज यूपी सरकार ने जस्टिस बी एस चौहान और पूर्व डीजीपी के एल गुप्ता का नाम सुझाया. इसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी.
याचिकाकर्ताओं ने यूपी सरकार की तरफ से आयोग के सदस्यों का नाम सुझाए जाने पर ऐतराज जताया. लेकिन मामले की सुनवाई कर रही बेंच के अध्यक्ष चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने इसे खारिज कर दिया. चीफ जस्टिस ने कहा,” मैंने खुद जस्टिस चौहान के साथ काम किया है. शायद मैं भी उनका नाम आयोग के अध्यक्ष के तौर पर सुझाता."
2009 से 2014 के बीच सुप्रीम कोर्ट के जज रहे जस्टिस चौहान 21वें लॉ कमीशन के भी अध्यक्ष रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले से जुड़े सभी पहलुओं की विस्तृत पड़ताल को जरूरी बताते हुए कहा, “इस मामले का सबसे अहम पहलू यही है कि गंभीर अपराध के दर्जनों मुकदमे दर्ज होने के बावजूद विकास दुबे जमानत पर जेल से बाहर कैसे था?” कोर्ट ने साफ किया है कि आयोग बिखरु गांव में पुलिसकर्मियों की हत्या और बाद में विकास दुबे समेत 6 लोगों के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने से जुड़ी परिस्थितियों की जांच करेगा.
कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि पुलिसकर्मियों की हत्या की जांच के लिए यूपी सरकार की तरफ से गठित एसआईटी अपना काम करती रहेगी. सुप्रीम कोर्ट एसआईटी के तरफ से की जा रही जांच की निगरानी नहीं करेगा. जजों ने कहा कि अगर किसी याचिकाकर्ता को एसआईटी पर ऐतराज़ है, तो वो हाई कोर्ट जा सकता है.
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