इस्लाम को न मानने वाले मुस्लिम परिवार पर क्यों लागू हो शरीयत? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि शरिया के अनुसार पिता की प्रॉपर्टी में बेटी की एक तिहाई हिस्सेदारी है, अगर भविष्य में पिता और भाई की मृत्यु हो जाती है तो बाकी की प्रॉपर्टी पिता के भाईयों को मिल जाएगी.

मुस्लिम परिवार में जन्म होने के बावजूद नास्तिक व्यक्ति पर क्या शरीयत की जगह सामान्य सिविल कानून लागू हो सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने इस अहम सवाल पर केंद्र से 4 सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है. इसके बाद याचिकाकर्ता को 4 सप्ताह में जवाब देना होगा. मई के दूसरे सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट मामले को सुनेगा.
याचिका केरल की रहने वाली साफिया पीएम नाम की लड़की ने दाखिल की है. उसका कहना है कि उसका परिवार नास्तिक है, लेकिन शरीयत के प्रावधान के चलते पिता चाह कर भी उसे अपनी 1 तिहाई से अधिक संपत्ति नहीं दे सकते हैं. बाकी संपत्ति पर भविष्य में पिता के भाइयों के परिवार का कब्जा हो जाने की आशंका है.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल को अहम बताते हुए अटॉर्नी जनरल से कहा था कि वह उसकी सहायता के लिए किसी वकील को नियुक्त करें. इसके बाद 24 अक्टूबर 2024 को सुनवाई हुई. इस सुनवाई में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि केंद्र सरकार इस पर जवाब दाखिल करेगी. उन्होंने यह भी कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने पर विचार चल रहा है, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि यह कब तक आएगा या आएगा भी या नहीं.
याचिका दाखिल करने वाली साफिया और उसके पिता नास्तिक हैं, लेकिन जन्म से मुस्लिम होने के चलते उन पर शरीयत कानून लागू होता है. याचिकाकर्ता का भाई डाउन सिंड्रोम नाम की बीमारी के चलते असहाय है. वह उसकी देखभाल करती है. शरीयत कानून में बेटी को बेटे से आधी संपत्ति मिलती है. ऐसे में पिता बेटी को 1 तिहाई संपत्ति दे सकते हैं, बाकी 2 तिहाई उन्हें बेटे को देनी होगी. अगर भविष्य में पिता और भाई की मृत्यु हो जाएगी तो भाई के हिस्से वाली संपत्ति पर पिता के भाइयों के परिवार का दावा बन जाएगा.
मामले में याचिकाकर्ता की दलील है कि संविधान का अनुच्छेद 25 लोगों को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार देता है. यही अनुच्छेद इस बात का भी अधिकार देता है कि कोई चाहे तो नास्तिक हो सकता है. इसके बावजूद सिर्फ किसी विशेष मजहब को मानने वाले परिवार में जन्म लेने के चलते उसे उस मजहब का पर्सनल लॉ मानने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए. वकील ने यह भी कहा था कि अगर याचिकाकर्ता और उसके पिता लिखित में यह कह देंगे कि वह मुस्लिम नहीं है, तब भी शरीयत के मुताबिक उनकी संपत्ति पर उनके रिश्तेदारों का दावा बन जाएगा.
दरअसल, शरीयत एक्ट की धारा 3 में प्रावधान है कि मुस्लिम व्यक्ति को यह घोषणा करता है कि वह शरीयत के मुताबिक उत्तराधिकार के नियमों का पालन करेगा, लेकिन जो ऐसा नहीं करता, उसे 'भारतीय उत्तराधिकार कानून' का लाभ नहीं मिल पाता, क्योंकि उत्तराधिकार कानून की धारा 58 में यह प्रावधान है कि यह मुसलमानों पर लागू नहीं हो सकता.
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