नई दिल्ली: असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतम् गमय. यानी, हे ईश्वर, हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, शरीर की मृत्यु से ज्ञान की अमरता की ओर ले चलो. देश भर के सभी 1125 केंद्रीय विद्यालयों में होने वाली इस प्रार्थना पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट में एक दायर एक याचिका में कहा गया है कि ये प्रार्थना हिन्दू धर्म की है. इसमें कई जगह ॐ शब्द भी आता है. इस प्रार्थना को दूसरे धर्म के बच्चों से गवाना गलत है.
जबलपुर के रहने वाले वकील विनायक शाह की याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय विद्यालय सरकार के पैसों से चलते हैं. संविधान के मुताबिक सरकारी पैसों का इस्तेमाल किसी खास धर्म को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया जा सकता. उन्होंने अनुच्छेद 28 (1) का हवाला दिया है जिसमें लिखा गया है कि सरकारी पैसों से चलने वाले स्कूल में किसी धर्म पर आधारित शिक्षा नहीं दी जा सकती है.
याचिकाकर्ता ने हिंदी में होने वाली प्रार्थना, "दया कर दान विद्या का, हमें परमात्मा देना" पर भी एतराज जताया है. उसका कहना है कि स्कूल में ऐसे परिवारों के भी बच्चे पढ़ते हैं जो नास्तिक हैं, जो ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानते हैं. उन्हें ईश्वर के नाम पर प्रार्थना करने को कहना गलत है.
याचिका में संस्कृत और हिंदी में बच्चों से गवाई जाने वाली कुछ और पंक्तियों का भी ज़िक्र किया गया है. याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि जो बच्चे ऐसी प्रार्थना करने से मना करते हैं, उन्हें सजा का डर दिखाया जाता है. स्कूल के शिक्षक बकायदा प्रार्थना पर नजर रखते हैं. वो ये देखते हैं कि सभी बच्चे प्रार्थना गा रहे हैं या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए मंज़ूर करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया है. मामले पर अगली सुनवाई फरवरी में होने की उम्मीद है.