नई दिल्ली: राफेल विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से अब तक की सबसे जानकारी मांगी है. कोर्ट ने सरकार से कीमत से जुड़ी जानकारी सीलबंद लिफाफे में देने को कहा है. हालांकि, सरकार के वकील का कहना है कि ऐसा संभव नहीं है. वहीं, कोर्ट ने सरकार से ये भी सार्वजनिक करने को कहा है कि ऑफसेट पार्टनर चुनने की प्रक्रिया क्या थी?


देश के सबसे बड़े कोर्ट ने जब सीलबंद लिफाफे में विमान की कीमतों की जानकारी मांगी तो सरकार के वकील यानी अटॉर्नी जनरल ने कहा, "ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है." इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप (अटर्नी जनरल) ये कहते हुए लिखित हलफनामा दाखिल कर दें कि ऐसा मुमकिन नहीं है. कोर्ट ने ये भी कहा कि ऑफसेट पार्टनर को चुने जाने की प्रक्रिया भी याचिकाकर्ताओं को बताएं.


मामले में सरकार से वो जानकारी सार्वजनिक करने को कहा गया है जो इस लायक हो और इसी के तहत ऑफसेट पार्टनर को चुने जाने की प्रक्रिया भी याचिकाकर्ताओं को देने की बात कही गई है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा, "हमें दी गई जानकारी में से जो भी सार्वजनिक करने लायक है, वो जानकारी याचिकाकर्ताओं को उपलब्ध कराइए.


राफेल विवाद है क्या?
यूपीए सरकार ने 600 करोड़ रुपये में एक राफेल का सौदा किया था. अब बताया जा रहा है कि सरकार को एक राफेल करीब 1600 करोड़ रुपये का पड़ेगा. राफेल डील में 50 प्रतिशत ऑफसेट क्लॉज यानि प्रावधान है. यानि इस सौदे की पचास प्रतिशत कीमत को रफाल बनाने वाली कंपनी, डसॉल्ट को भारत में ही रक्षा और एयरो-स्पेस इंडस्ट्री में लगाना होगा.


इसके लिए डसॉल्ट ने भारत की रिलायंस इंडस्ट्री से करार किया है. अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस इंडस्ट्री ने जो कंपनी बनाई है, उसके साथ मिलकर दसॉल्ट कंपनी भारत में ज्वाइंट वेंचर कर रही है. ये दोनों मिलकर भारत में नागरिक विमानों के स्पेयर पार्ट्स बनाने जा रही हैं.


रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया था कि "36 राफेल आईजीए (इंटर गर्वमेंटल एग्रीमेंट) में ऑफसेट्स की मात्रा 50 प्रतिशत है, जिसमें योग्य उत्पादों और सेवाओं के निर्माण या रखरखाव के लिए प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण में निवेश शामिल हैं.''


दरअसल, फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने फ्रांस के अखबार मीडियापार्ट को इंटरव्यू दिया था. इसमें ओलांद ने कहा है कि राफेल सौदे के लिए भारत सरकार ने अनिल अंबानी की रिलायंस का नाम प्रस्तावित किया था और डसॉल्ट एविएशन कंपनी के पास दूसरा विकल्प नहीं था. इंटरव्यू के मुताबिक, ओलांद ने कहा कि भारत सरकार की तरफ से ही रिलायंस का नाम दिया गया था. इसे चुनने में डसॉल्ट एविएशन की भूमिका नहीं है. ओलांद ने कहा, 'भारत की सरकार ने जिस सर्विस ग्रुप का नाम दिया, उससे डसॉल्ट ने बातचीत की. डसॉल्ट ने अनिल अंबानी से संपर्क किया. हमारे पास कोई विकल्प नहीं था. हमें जो वार्ताकार दिया गया, हमने स्वीकार किया.'


राहुल गांधी के आरोप
राहुल गांधी ने कहा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने जो आरोप लगाए हैं उसका साफ मतलब है कि पीएम मोदी ने राफेल सौदे में भ्रष्टाचार किया है, चोरी की है. जो राफेल विमान यूपीए सरकार ने 526 करोड़ रुपये का खरीदा था वो अनिल अंबानी की मदद करने के लिए 1600 करोड़ रुपये में खरीदा गया.


राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि ओलांद ने बता दिया है कि अनिल अंबानी को जो हजारों करोड़ रुपये का कॉन्ट्रेक्ट मिला वो पीएम मोदी के कहने पर दिया गया था. इसका साफ अर्थ है कि ओलांद पीएम मोदी को चोर कह रहे हैं और पीएम मोदी के मुंह से एक शब्द नहीं निकल रहा है. प्रधानमंत्री को देश को जवाब देना चाहिए वर्ना देश की जनता के दिमाग में ये घुस गया है कि देश का चौकीदार चोर है. राहुल गांधी ने पूरे मामले में संसद की संयुक्त समिति के गठन की मांग की है.


जेटली की सफाई
कांग्रेस के आरोपों पर सफाई देते हुए कहा, ''फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट और रिलायंस के बीच क्या हुआ उससे सरकार का कोई लेना देना नहीं है. दोनों कम्पनियों के बीच 12 फरवरी 2012 को एक समझौता हुआ था और पीटीआई ने इसकी ख़बर भी दी थी.''


राहुल गांधी पर हमला करते हुए जेटली बोले, ''30 अगस्त को ट्वीट करते हैं कि फ्रांस के अंदर कुछ बम चलने वाले हैं. ये उनको (राहुल गांधी) कैसे मालूम कि ऐसा बयान आने वाला है? ये जो जुगल बंदी है इस तरह की, मेरे पास कुछ सबूत नहीं है लेकिन प्रश्न खड़ा होता है.''


अनिल अंबानी की सफाई
कांग्रेस की ओर कंपनी पर उठाए जा रहे सवालों पर अनिल अंबानी ने भी सफाई दी है. आरोप को आधारहीन और दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए अंबानी ने कहा, ‘‘सच्चाई की जीत होगी.’’ उन्होंने कहा कि जो भी आरोप लगाये जा रहे हैं, वह दुर्भाग्यपूर्ण, स्वार्थ से प्रेरित और कंपनी की प्रतिद्वंद्विता से प्रेरित है.


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