Genetically Modified Mustard Cultivation: जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों की खेती की सिफारिश का मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच गया है. एंटी जीएम कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पक्ष रखने को कहा है. 10 नवंबर को सुनवाई की तारीख तय करते हुए कोर्ट ने कहा है कि सरकार फिलहाल इस मसले पर आगे कदम न उठाए. वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) के ज़रिए दाखिल याचिका में कहा गया है कि जीएम खेती पर्यावरण जैव विविधता के लिए नुकसानदायक हैं. वहीं जीएम सरसों (GM Mustard) को जीईएसी से मंजूरी मिलने के बाद कई स्वयंसेवी कार्यकर्ता, किसान संगठन और मधुमक्खी पालकों (Beekeepers) ने विरोध किया है.


सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया ये आदेश


2012 में कोर्ट की तरफ गठित कमिटी ने जीएम फसलों के खिलाफ सिफारिश दी थी. 2016 और 17 में हुई सुनवाई में केंद्र सरकार यह कहती रही कि अभी जीएम सरसों पर कोई फैसला नहीं हुआ है लेकिन अब पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमिटी ने इसकी सिफारिश कर दी है. केंद्र सरकार इस पर फैसला लेने जा रही है.


प्रशांत भूषण की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और सुधांशु धूलिया की बेंच ने कोर्ट में मौजूद एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से सवाल पूछा. उन्होंने बताया कि फिलहाल सिर्फ इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) के खेतों में इसे रोपा जा रहा है. इस पर जजों ने कहा कि मामले पर 10 नवंबर को सुनवाई की जाएगी. फिलहाल सरकार इस मसले पर आगे कदम न बढ़ाए.


जीएम सरसों का विरोध क्यों?


भारत में सरसों की खेती के साथ-साथ मधुमक्खी पालन भी किसानों की आय का मुख्य साधन है. सरसों से बेहद अच्छी क्वालिटी का शहद मिलता है. देश-विदेश में सरसों के प्राकृतिक शहद की काफी मांग रहती है, लेकिन धारा मास्टर 11 जीएम सरसों की खेती को लेकर कई हरित समूह और मधुमक्खी पालकों ने विरोध किया है. इसका मुख्य कारण यह है कि मधुमक्खियां सरसों का परागण करके शहद इकट्ठा करती हैं, लेकिन कई देशों में चिकित्सा के गुणों के कारण जीएम मुक्त सरसों से तैयार शहद ही इस्तेमाल किया जाता है.


यही कारण है कि जीएम सरसों की खेती से न सिर्फ शहद की क्वालिटी प्रभावित होगी, बल्कि शहद का निर्यात भी कम हो सकता है. इस मामले में मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में कार्यरत कनफेडरेशन ऑफ एपीकल्चर इंडस्ट्री सीएआई का मानना है कि भारत में जीएम सरसों की खेती होने पर लाखों मधुमक्खी पालकों को अपना शहद निर्यात करने के लिए गैर जीएम फसल टेस्टिंग से गुजरना होगा. ये टेस्टिंग काफी महंगा होता है, जो मधुमक्खी पालन की लागत और चिंताओं को बढ़ा देगा. विशेषज्ञों की मानें तो जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों की खेती से करीब 10 लाख मधुमक्खी पालक की आजीविका प्रभावित हो सकती है.


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