'इंटर्नशिप के लिए हमसे लिया गया वचन...', मेडिकल छात्रों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने NMC से पूछा- चुनिंदा डॉक्टर्स को क्यों नहीं मिल रहा स्टाइपेंड
याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि विदेशी मेडिकल छात्रों के साथ भेदभाद का कोई कारण नहीं है. उन्होंने कहा कि कुछ मेडिकल कॉलेज को छोड़कर बाकी जगह स्टाइपेंड दिया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मेडिकल कॉलेजों में इंटर्नशिप कर विदेशी छात्रों को स्टाइपेंड नहीं दिए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं को लेकर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) से जवाब मांगा है. इनमें राजस्थान के आठ और दिल्ली का राम मनोहर लोहिया संस्थान शामिल है. विदेशी छात्रों ने याचिका दायर कर भारतीय चिकित्सा स्नातकों की तरह इंटर्नशिप के लिए स्टाइपेंड दिए जाने का अनुरोध किया है.
जस्टिस भूष रामकृष्ण गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की बेंच ने जसवंत सिंह और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एनएमसी को नोटिस जारी किया है. याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि मेडिकल कॉलेज की तरफ से उनसे वचन लिया गया कि वह स्टाइपेंड के बगैर ही इंटर्नशिप करेंगे. याचिकाकर्ताओं की वकील तन्वी दुबे ने दलील दी कि छात्रों को स्टाइपेंड न दिया जाना, उनके मौलिक अधिकारों का साफतौर पर उल्लंघन है, जबकि दूसरे इंटर्नस को पे किया जा रहा है.
तन्वी दुबे ने आगे कहा कि अगर कई अन्य कॉलेज विदेशी मेडिकल स्नातकों को स्टाइपेंड दे रहे हैं, तो इस भेदभाव का कोई कारण नहीं है. उन्होंने कहा कि वर्तमान याचिका विदेशी मेडिकल स्नातकों द्वारा दायर की गई है, जो वर्तमान में राजस्थान के सिरोही, अलवर, दौसा और चित्तौड़गढ़ समेत विभिन्न सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इंटर्नशिप कर रहे हैं.
अधिवक्ता चारु माथुर ने याचिका दायर कर कहा, 'एनएमसी के चार मार्च, 2022 और 19 मई, 2022 के परिपत्र के अनुसार स्पष्ट रूप से प्रावधान किया गया है कि भारतीय चिकित्सा स्नातकों के समान स्टाइपेंड दिया जाना चाहिए.' याचिका में कहा गया है, 'छात्रों को पहले यह अनुमान था कि उन्हें नियमों के अनुसार उनकी इंटर्नशिप की अवधि के लिए मानदेय दिया जाएगा. उन्हें यह जानकर हालांकि आश्चर्य हुआ कि जब वे इंटर्नशिप करने लगे तो उन्हें एक हलफनामे के जरिए यह वचन देने के लिए मजबूर किया गया कि इंटर्नशिप बिना किसी मानदेय के होगी.'
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