नई दिल्ली: न्यायपालिका की छवि खराब करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट्स पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराज़गी जताई है. कोर्ट ने कहा, "बिना तथ्यों की पुष्टि किए सोशल मीडिया में अदालती कार्रवाई के बारे में कुछ भी लिख दिया जाता है. जज वकील से कोई सवाल पूछे तो उसे फैसला मान लिया जाता है."
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच जजों को सरकार का पक्ष लेने वाला बताने पर ख़ास तौर पर नाखुश नज़र आई. बेंच के सदस्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, "हाल ही में एक वरिष्ठ वकील ने जजों के बारे में टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ज़्यादातर जज सरकार के लिए नर्म रूख रखते हैं. इस तरह की सोच वाले लोग पूरा दिन कोर्ट में बैठें और ये देखें कि जज किस तरह जनहित से जुड़े मामलों में सरकार को आड़े हाथों लेते हैं."
हाल ही में दो वरिष्ठ वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के जजों के बारे में नकारात्मक टिप्पणी की है. गुजरात हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष असीम पांड्या ने चिट्ठी लिख कर जजों को सरकार के लिए नरम बताया है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके दुष्यंत दवे ने भी चीफ जस्टिस और दूसरे वरिष्ठ जजों के कामकाज पर अंगुली उठाई है.
इस तरह की टिप्पणियों और उन्हें फ़ैलाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिए जाने पर जज नाखुश नज़र आ रहे थे. कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने इससे सहमति जताते हुए कहा, "सोशल मीडिया अभद्र भाषा बोलने वाले लोगों से भरा है. इसलिए मैंने अपना ट्विटर अकाउंट बंद कर दिया."
सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक मामलों की जांच के दौरान मंत्रियों, अफसरों की बयानबाज़ी के मसले पर सुनवाई हो रही थी. ये मामला बुलंदशहर गैंगरेप पर आज़म खान की बयानबाज़ी के बाद सुप्रीम कोर्ट आया था. कोर्ट ने ये मसला आज संविधान पीठ को सौंप दिया. संविधान पीठ ये तय करेगी कि क्या ऐसे बयानों पर रोक लगाई जा सकती है.