आवारा कुत्तों के आतंक का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कोर्ट रूम में बातचीत के दौरान सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ से कहा कि सड़क पर कुत्तों की समस्या से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी आवारा कुत्तों के आतंक को गंभीर बताया है.
दरअसल, एक मामले की सुनवाई के दौरान वकील के पैर में पट्टी बंधा देख चीफ जस्टिस ने वजह पूछी, तो वकील ने आवारा कुत्तों के हमले का जिक्र किया. इस पर तुषार मेहता ने कहा कि यह दिल्ली और गाजियाबाद ही नहीं, पूरे देश की समस्या बनती जा रही है.
मेहता ने कहा कि रेबीज का मामला गंभीर है और डॉक्टर भी कुछ नहीं कर पाते हैं. सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्तों के आतंक पर सामान्य बातचीत के बाद माना जा रहा है कि इसके एक्शन प्लान को लेकर जल्द सुनवाई हो सकती है.
2016 में भी आवारा कुत्तों का मामला सुप्रीम कोर्ट गया था. उस वक्त कोर्ट ने नसबंदी को लेकर पशु कल्याण बोर्ड को जरूरी निर्देश दिए थे. कोर्ट ने कहा था कि यह गंभीर मसला है और आप इसमें ढील न बरतें.
कागज पर कुत्तों के आतंक का आंकड़ा
सरकार ने आवारा कुत्तों के हमले को लेकर हाल ही में लोकसभा में एक विस्तृत जवाब पेश किया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 2020 में आवारा कुत्तों के काटने की संख्या 4.31 लाख थी. 2021 में यह 1.92 लाख और 2022 में 1.69 लाख हो गई है.
घंटे के हिसाब से अगर देखा जाए, तो देश में प्रति घंटे 19 लोग आवारा कुत्तों के आतंक की चपेट में आ जाते हैं. तमिलनाडु और महाराष्ट्र में कुत्तों के हमले के सबसे ज्यादा केस सामने आए हैं.
मंत्रालय के डेटा के मुताबिक रेबीज से मरने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. साल 2022 में रेबीज से पूरे भारत में 342 लोगों की मौत हो गई. 2022 में दिल्ली में 48, पश्चिम बंगाल में 38 , महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र में 29-29 मौतें हुई है.
हालांकि, जानकारों का कहना है कि सरकारी डेटा में कई झोल है, इसलिए यह संख्या कम दिखता है. भारत में हर साल अनुमानित 20 हजार लोगों की मौत रेबीज की वजह से होती है.
एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ रेबीज इन इंडिया (NPCRI) के अनुसार भारत में लगभग 96% रेबीज से मौतें कुत्ते के काटने से होती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में रेबीज एक स्थानिक बीमारी बन चुका है. अंडमान द्वीप को छोड़कर पूरे भारत इसकी चपेट में है.
शरीर को कैसे शून्य कर देता है रेबीज?
आरएनए वायरस की एक फैमिली है- लासा वायरस. इस फैमिली में कुल 12 तरह के वायरस हैं, जिनसे रेबीज होता है. साइंस डेली के मुताबिक लासा वायरस पश्चिम अफ्रीका का एक घातक वायरस है. एक्सपर्ट का कहना है कि यह वायरस कुत्तों के लार में पाया जाता है.
कुत्ता जब किसी इंसान को काटता है, तो यह धीरे-धीरे एंटी बॉडी को निष्क्रिय करने लगता है. एंटी बॉडी के कमजोर करने के बाद यह वायरस सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर हमला करता है. फिर उसके जरिए ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड तक पहुंच जाता है.
एक्सपर्ट का कहना है कि रेबीज के ब्रेन में पहुंचने के बाद मरीज को तुरंत लकवा मार देता है. अधिकांश केस में कुत्ते के काटने के 3-5 दिन के भीतर ही पीड़ित व्यक्ति की मौत हो जाती है.
भारत में 1.6 करोड़ आवारा कुत्ते
केंद्रीय पशुधन विभाग ने आखिरी बार 2019 में आवारा कुत्तों को लेकर एक डेटा जारी किया था. विभाग के मुताबिक भारत में करीब 1.6 करोड़ आवारा कुत्ते सड़कों पर हैं. विभाग का कहना था कि 2012 के मुकाबले यह कम है. 2012 में आवारा कुत्तों की संख्या 1.7 करोड़ के आसपास था.
जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में आवारा कुत्तों की संख्या 20 लाख से ज्यादा है. इसी डेटा के मुताबिक भारत के कर्नाटक, केरल, राजस्थान, ओडिशा जैसे राज्यों में आवारा कुत्तों की संख्या में 2012 के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है.
आवारा कुत्तों पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार ने 2001 में पशु जन्म नियंत्रण कानून बनाया था, जिसे 2010 में संशोधित भी किया गया. इसके मुताबिक विभाग आवारा कुत्तों की नसबंदी करेगा, जिससे संख्या में भारी कमी आए.
जानकारों का कहना है कि इस स्कीम को अधिक प्रभावी तरीके से लागू करने की जरूरत है. क्योंकि, 10 साल में इसमें कोई बहुत बड़ी गिरावट नहीं देखी गई है.
आवारा कुत्तों के आतंक पर कंट्रोल क्यों नहीं?
1. हर कुत्ते को नहीं हटाया जा सकता है- नियम के मुताबिक हर आवारा कुत्ते को सोसाइटी या जहां पर उसका जन्म हुआ है, वहां से नहीं हटाया जा सकता है. इसकी बड़ी वजह अधिनियम की धारा 428 और 429 है, जिसमें कहा गया है कि किसी जानवर के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार नहीं किया जा सकता है.
कुत्तों को कंट्रोल करने की जिम्मेदारी शहर में नगर निगम विभाग के पास है. गांव में स्थानीय प्राधिकरण को इसकी जिम्मेदारी दी गई है.
नियम में कहा गया है कि जो कुत्ते हिंसक प्रवृति के होते हैं, सिर्फ उसे ही हटाया जा सकता है. हालांकि, निगम और स्थानीय प्राधिकरण के सुस्त रवैए की वजह से हिंसक कुत्तों की जल्द पहचान नहीं हो पाती है.
2. निगरानी की कोई सीधी व्यवस्था नहीं- आवारा कुत्तों को कंट्रोल की जिम्मेदारी केंद्र पर है. केंद्र में पशु नियंत्रण बोर्ड भी बनाया गया है, लेकिन इसके पास निगरानी की कोई सीधी व्यवस्था नहीं है.
जानकारों का कहना है कि बोर्ड जो नियम बनाता है, उसे लागू करने के लिए सक्षम प्राधिकरण हर राज्य में नहीं है. कई जगहों पर एनजीओ के सहारे ही यह काम चल रहा है. शिकायत और प्रतिउत्तर को लेकर कोई बेहतरीन सिस्टम भी नहीं है.
3. ठंड में कुत्ते अधिक आक्रामक हो जाते हैं- ह्यूमेन फाउंडेशन फॉर पीपल एंड एनिमल्स का कहना है कि अधिकांशत: आवारा कुत्ते आत्मरक्षा में ही काटते हैं. वो हमला तब करते हैं, जब उन्हें लगता है कि कोई व्यक्ति उन्हें मारने आ रहा हो.
जानकारों का कहना है कि आवारा कुत्तों का आतंक ठंड के महीने में अधिक बढ़ जाता है. इसी समय कुत्ते अपने बच्चे को जन्म देते हैं. उनकी सुरक्षा और खाने की व्यवस्था करने के दौरान वे लोगों पर हमला कर देते हैं.
ठंड के महीने में अगर विभाग इस पर कंट्रोल कर ले, तो कुत्तों के आतंक में भारी कमी आ सकती है.